-श्याम मीरा सिंह।।
WHO ने भारत को चेतावनी दी है कि कंट्रीवाइड लॉकडाउन कम्प्लीट सॉल्यूशन नहीं है। इससे सिर्फ और सिर्फ तैयारी करने के लिए अधिक समय मिल सकता है, कम्प्लीट सॉल्यूशन के लिए हेल्थ डिपार्टमेंट को अग्रेशिव तरीके से एक्शन लेने होंगे, अधिक से अधिक टेस्ट लेने होंगे ताकि कोरोना इंफेक्शन के मरीजों को पहचाना जा सके और अन्य लोगों को इन्फेक्टेड मरीजों से अलग करके कोरोना को रोका जा सके। भारत में कंट्रीवाइड लॉकडाउन तो किया गया है लेकिन टेस्ट क्यों नहीं किए जा रहे?
लॉकडाउन में सिर्फ भाषण देना होता है, ये तो कोई भी कर सकता था, आदेश देना काम करना नहीं होता। आदेशों के स्वागत नहीं होते। जैसा कि भारत की मीडिया इस समय करती है। भाषण देने में करना कुछ नहीं होता। जो भी आफत आई है, मजदूर प्रवासियों पर आई है, अर्थव्यवस्था पर आई है।
यहां दक्षिण कोरिया के उदाहरण को समझने की जरूरत है। साउथ कोरिया में अभी तक कोई लॉकडाउन नहीं किया गया है। हालांकि वहां लोगों को कम आवाजाही करने के इंस्ट्रक्शन दिए हुए हैं, स्कूल-कॉलेज बन्द हैं, लेकिन आवाजाही पर कोई रोक नहीं है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि साउथ कोरिया हाथ पर हाथ धरे बैठा है। दक्षिण कोरिया में हर रोज़ क़रीब 20 हज़ार लोगों के टेस्ट लिए जा रहे हैं. मैं दोबारा रिपीट कर रहा हूँ एक दिन में 20 हजार लोगों के टेस्ट!
बल्कि भारत में 23 मार्च तक सिर्फ 17,493 टेस्ट किए गए हैं। ऐसा मैं नहीं कर रहा, ऐसा भारत सरकार की संस्था ICMR का कहना है।
जैसे ही जनवरी में दक्षिण कोरिया में पहला मामला सामने आया। सरकार ने इस चुनौती का सामना करने के लिए प्रयोगशालाओं को लगा दिया। पूरे देश में प्रयोगशालाओं का एक ऐसा नेटवर्क तैयार किया जो महज़ 17 दिनों के भीतर ही सक्रिय तौर पर काम करने लगा. इसका परिणाम ये हुआ कि साउथ कोरिया, कोरोना टेस्ट करने का तरीक़ा खोजने में कामयाब रहा। इन केंद्रों पर सिर से लेकर पैर तक सफ़ेद सुरक्षात्मक कपड़े पहने डॉक्टर खड़े रहते हैं. उनके हाथों में सुरक्षित दस्ताने होते हैं, आंखों पर चश्मे और मुंह पर सर्जिकल मास्क. भारत में डॉक्टरों की हालत क्या है इसकी स्थिति बयान करने वाली तमाम वीडियोज आप तक पहुंच ही चुकी होंगी। मरीजों का इलाज बाद में होगा यहां प्रोटेक्टिव किट्स न होने के चलते कई डॉक्टर ही संक्रमित हो चुके हैं। सोचिए एक डॉक्टर के संक्रमण का मतलब कितने नए मरीज तैयार होना होता है। लेकिन दक्षिण कोरिया में ये स्थिति नहीं है। दक्षिण कोरिया में दर्जनों ऐसे केंद्र बनाए गए हैं जहां आप गाड़ी में बैठे-बैठे टेस्ट करा सकते हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार मात्र 2 मिनट में मरीज का सेम्पल ले लिया जाता है। जिसे बाद में Low Pressure Centres पर ले जाया जाता है। सिर्फ 6 घण्टे के अंदर ये प्रक्रिया पूरी कर ली जाती है। 6 घण्टे में ही सैंकड़ों मामलों की जांच कर ली जाती है। पॉजिटिव पाए जाने पर मरीज को कॉल किया जाता है। तुंरत आगे की प्रोसेज की जाती है। नेगेटिव रहने पर सिर्फ मैसेज करके ही सूचना दे दी जाती है। साउथ कोरिया अपनी मेहनत के बल पर 1 दिन में 20 हजार लोगों की जांच कर पा रहा है। लेकिन हम क्या कर रहे हैं? हमारे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री क्या कर रहे हैं?
उन्होंने बिना तैयारी का लॉकडाउन करके लाखों प्रवासियों को सड़क पर ला दिया है। ये अबूझी सी डरी हुई भीड़ यत्र-तत्र कहीं भी चली जा रही है। ये भीड़ यदि संक्रमित हुई तो सोचिए गांव के लोगों की सुरक्षा के साथ कितना बड़ा समझौता है?
मुझे WHO की ये चेतावनी रह रहकर याद आ रही है जिसमें WHO के अधिकारी भारत को सचेत कर रहे हैं कि कंट्रीवाइड लॉकडाउन इस गंभीर समस्या से लड़ने का हल नहीं है, हल अधिक से अधिक टेस्ट करने में है। लेकिन हम क्या कर रहे हैं? ऐसे में एक मंत्री की पैर-पैर डालकर रामायण देखती तस्वीर और अधिक डिस्टर्ब कर रही है।