-सुनील कुमार।।
अभूतपूर्व और असाधारण हालात असाधारण फैसलों की मांग करते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में 21 दिन का कोरोना-लॉकडाऊन करके यही काम किया है। यह वक्त इस चूक को गिनाने का नहीं है कि मोदी ने राहुल गांधी की चेतावनी के करीब चालीस दिन बाद यह कार्रवाई की। यह वक्त यह गिनाने का भी नहीं है कि मोदी ने लॉकडाऊन के वक्त को देश पर एक धक्के की तरह क्यों लादा और संभलने का मौका क्यों नहीं दिया। लेकिन यह वक्त कुछ बुनियादी सवालों को उठाने का है जिनसे आज हिंदुस्तान के करोड़ों लोगों की जिंदगी जुड़ी हुई है। इन सवालों का अंदाज लगाने और उनके जवाब तैयार करने के लिए केन्द्र सरकार के पास कई हफ्ते थे, और आज भी वे सारे सवाल सूनी सडक़ों के किनारे फुटपाथों पर मानो किसी सवारी के इंतजार में खड़े हैं।
सबसे पहले सबसे कमजोर इंसानों की सबसे जरूरी बात। आज देश भर में लाखों बेबस और गरीब सडक़ों पर फंस गए हैं। अपने घर या गांव लौटने के लिए उनके पास कोई साधन नहीं है। मीडिया की वजह से ऐसे लोगों की तस्वीरें और खबरें सामने आ रही हैं कि वे किस तरह हजार किलोमीटर तक के पैदल सफर पर निकल पड़े हैं। कोई ऐसा भी है कि बच्चे को कंधे पर बिठाए चल ही रहा है। कुछ लोग गर्भवती महिला के साथ हैं, बिना खाने के हैं। जिस सरकार के हाथ में पल भर में लॉकआऊट का हक था, उसी के हाथ में यह चेतावनी भी थी कि ट्रेनें बंद होने से पहले लोग घर लौट जाएं। ऐसे किसी इतने कड़े फैसले की घोषणा इतनी रहस्यमय और इतनी एकाएक होगी क्यों जरूरी थी कि सबसे कमजोर करोड़ों लोगों के पैर प्रतिबंधों की सुनामी में ऐसे उखड़ जाएं ? ये सवाल आज मुसीबत के बीच में जरूरी इसलिए है कि आने वाला वक्त कई और प्रतिबंधों का हो सकता है, होगा, और उन्हें भाषण में एक लिस्ट की तरह जारी करने के बजाय, तय करते ही जल्द से जल्द जारी करना चाहिए। फैसलों का राष्ट्र के नाम संदेश होना जरूरी नहीं होता, राज्यों को विश्वास में लेकर हर चेतावनी, हर रोक ऐसे लागू करनी चाहिए कि गरीब बेबस संभल सकें। अब हर कोई मुकेश अंबानी तो है नहीं जिसके आसमान छूते घर में उसके सैकड़ों दास-दासी भी रह सकें। समाज के सबसे कमजोर को दरिद्रनारायण कह देने से ही उस नारायण को भोग नहीं लग जाता। आज देश में करोड़ों लोग इतने असंगठित और इतने बेसहारा हैं कि सरकारों की कोई तैयारी उनके लिए नहीं है। केन्द्र सरकार तो कोरोना चेतावनी पर चालीस दिन बैठी रही, लेकिन आज जनता फुटपाथ पर चालीस दिन कैसे रहे ? अस्सी बरस की बूढ़ी औरत सैकड़ों किलोमीटर का सफर कैसे पैदल तय करे ?
आज जब मुसीबत की इस घड़ी में पूरे देश को एक-दूसरे के दुख-दर्द से जुड़ा रहना चाहिए तब लोगों के बीच यह बात कचोट रही है कि विदेशों में बसे हुए या वहां गए हुए हिंदुस्तानियों को वापिस लाने के लिए तो भारत सरकार हवाई जहाज भेज रही है लेकिन देश के भीतर जो करोड़ों लोग जगह-जगह फंसे हुए हैं वे अब भी बेसहारा हैं।
आज अब राज्यों में तमाम इंतजाम राज्यों के जिम्मे आ गया है। ऐसी नौबत में जो भी करना है वह राज्यों को करना है, जिलों को करना है। केन्द्र सरकार ने राज्यों पर यह मुसीबत बाकी कई मुसीबतों की तरह एकाएक लाद दी है। यह नौबत भयानक है, और राज्य सरकारों के साथ हमारी हमदर्दी है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तक ने बिना किसी आलोचना के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हर कदम का साथ देने की खुली घोषणा की है। लेकिन अकेले सरकारों के बस का कुछ है नहीं। जनता में मामूली सक्षम लोगों को भी अपने आसपास के जरूरतमंद लोगों का साथ देना होगा, तभी बेबस जिंदा रह पाएंगे।
(दैनिक छत्तीसगढ़)