-श्याम मीरा सिंह।।
भले ही कोविड-19 का वाजिब इलाज अभी तक नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं है कि इसके होने से मृत्यु होना तय ही है. असल में इससे संक्रमित लोगों की मृत्यु दर बेहद सामान्य है. कुछ आंकड़े आपके लिए हैं, जो पैनिक हो चुके माहौल को शायद कुछ कम करें, WHO की रिपोर्ट ने पिछले दिनों बताया था कि कोरोना के संक्रमण से मृत्यु दर मात्र 5 है. यानी यदि 100 लोगों को कोरोना पॉजिटिव पाया गया है तो उसमें से मरने वालों की संख्या केवल 5 है. इन पांच में भी अधिकतर बुजुर्ग हैं नौजवान नहीं. यहां भी एक झोल है, WHO की रिपोर्ट तब की है जब कोरोना के अधिकतर मामले सामने ही नहीं आए थे, इससे क्या हुआ कि ज्यादातर वही मामले सामने आए थे जो गंभीर थे, जिनके लक्षण साफ साफ दिखाई दे रहे थे। लेकिन ऐसे अनगिनत मामले तब सामने नहीं आए थे जिसमें लोगों में कोरोना वायरस का संक्रमण था लेकिन वह सामने ही नहीं आए थे। क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम आसानी से कोरोना से लड़ गया था, या लड़ रहा था। ऐसे में सिर्फ गम्भीर मामले ही सामने आए थे, स्वभाविक है उनकी मृत्यु दर अधिक रहनी थी, असल में मृत्यु दर तो और भी कम है, जैसे ब्रिटेन की सरकार के वैज्ञानिक सलाहकारों के अनुसार ब्रिटेन में कोरोना संक्रमण से मरने की आशंका केवल 0.5 फीसदी से 1 फीसदी के ही बीच है.

इसे एक नार्मल उदाहरण से समझिए। बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कुछ दिन पहले यानी 17 मार्च को ब्रिटेन के लिए मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार सर पैट्रिक वॉलेंस ने बताया कि देश में कोरोना संक्रमण के क़रीब 55 हज़ार मामले हो सकते हैं, हालांकि अब तक यहां केवल 2,000 मामलों की ही पुष्टि हुई है.
अब यहां एक गणित लगाइए, कोरोना के कारण हुई मौतों को अगर 2,000 से आप विभाजित करेंगे तो मृत्यु दर अधिक आनी ही है, हालांकि वह भी उतनी नहीं है कि उसपर एकदम पैनिक हो जाया जाए, वह भी 4 से 5 करीब के बीच में होगी। लेकिन यदि आप अनुमानित 55 हज़ार से कोरोना के कारण हो चुकी मौतों का अनुमान लगाएंगे तो वह और भी अधिक गिरकर 0.5 से लेकर 1 के करीब ही रह जाएगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ब्रिटेन में अब तक कोरोना संक्रमण के 6,600 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और इस कारण अब तक 335 मौतें हुई हैं. इस लिहाज से वर्तमान में ब्रिटेन में केवल 5.5 मृत्यु दर है. इसका अर्थ है 100 संक्रमित लोगों में से केवल 5 की मृत्यु हुई है। आप जानकर हैरान होंगे कि जर्मनी में कोरोना के कारण हुई मृत्यु दर मात्र 0.5 ही है।
लेकिन फिलहाल के लिए मानकर चलते हैं कि मृत्यु दर 5 ही है, लेकिन ये पांच लोग किस उम्र वर्ग के हैं, इनकी संक्रमण के पहले से ही स्वास्थ्य स्थिति क्या थी ये भी जान लेना जरूरी है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन में कोरोना वायरस के संक्रमण के 44 हज़ार मामलों का विश्लेषण किया गया, जिसमें पाया गया कि जिन लोगों को पहले से ही डायबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, दिल या सांस की बीमारी थी, कोरोना से लड़ना उन्हीं के लिए मुश्किल हुआ है। उम्र के हिसाब से इस विश्लेषण को वर्गीकृत करें तो कोरोना से अधिकतर खतरा 60 से 70 ऊपर की उम्र वालों को ही है। 40 से कम उम्र वालों का इम्यून सिस्टम इतना सक्षम तो होता है कि सही हेल्थ केयर मिलने पर वह कोरोना से लड़ ही लेंगे।
लेकिन ऐसा नहीं है कि इस उम्र वर्ग के लोग कोरोना के खतरे से मुक्त हैं, कोरोना के संक्रमण ने इस उम्र वर्ग के नौजवानों को भी लील लिया है। लेकिन अन्य के मुकाबले इस उम्र वर्ग के लोगों के लड़ने की क्षमता कुछ अधिक होती है इसलिए इन्हें खतरा कुछ कम है।
कुछ दिन पहले इकोनॉमिक टाइम्स ने एक खबर की थी, जिसके अनुसार जिन 17 लोगों को पुणे शहर में संक्रमण पाया गया था, उनमें से 16 की हालत सही हो गई थी, उन्हें सब होम क्वारंटाइन के लिए अस्पताल से छुट्टी देने की बात भी हो रही थी।
कुलमिलाकर सावधान रहने की जरूरत है, अनुशासन में रहने की जरूरत है लेकिन पैनिक होने की आवश्यकता नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी ने 21 दिन कंट्रीवाइड लॉकडाउन का फैसला सही किया है, ये सतर्कता बहुत आवश्यक थी। लेकिन वेन्टीलेटरों, टेस्ट किट और प्रोटेक्टिव किट्स के लिए भी उसी मुस्तैदी को दिखाने की आवश्यकता थी। यही कारण है कि फिलहाल तो चीजें अभी भी हाथ में हैं, लेकिन यदि स्थिति बिगड़ी तो ब्रिटेन, जर्मनी, यूरोप के मुकाबले भारत में होने वाली मृत्यु दर काफी अधिक रह सकती है। यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था और अस्पतालों की स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है।
बहरहाल! चारों तरफ़ महामारी की चर्चा ने आदमी को सतर्क तो किया ही है, लेकिन सतर्क करने के अलावा आम जनमानस के मन में भय भी भर दिया है, जो अनावश्यक है। कोरोना की सावधानियों को जानना तो आवश्यक है ही, लेकिन उससे जुड़े आंकड़ों को भी जान लेना आवश्यक है। ताकि माहौल अत्यधिक पैनिक न बने।