उत्तर आधुनिक महाभारत (छठी किश्त) न्यू इंडिया में..
-चंद्र प्रकाश झा।।
भारत के संविधान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वप्न न्यू इंडिया में पलट देने की अर्से से चल रही कोशिशें अब नंगे रूप में सामने आने लगी हैं. भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य राकेश सिन्हा ने सदन में एक प्राईवेट बिल लाने की नोटिस दी है। प्रस्ताव है कि भारतीय संविधान से समाजवाद शब्द ही हटा दिया जाए।ये वही सिन्हा जी हैं जो पिछले कई वर्षों से टीवी चैनलों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस ) ‘ एक्सपर्ट ‘ के रूप में प्रगट होते रहे हैं.वे पहले सिर्फ एक्सपर्ट थे और उन्होंने आरएसएस के संस्थापक के बी हेडगेवार की जीवनी टाइप समेत कुछेक किताब लिखी थी।उन्हें 14 जुलाई 2018 से बाकायदा सांसदगिरि भी नसीब हो गई है। उन्हें ये सांसादगिरि, मोदी सरकार की अनुशंसा पर राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा सदस्य मनोनीत किये जाने से नसीब हुई।



संविधान के प्रिअंबल (उद्देशिका या प्रस्तावना) में भारत को ‘ सम्प्रभुता संपन्न,समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य ‘ घोषित किया गया है।प्रिअंबल में समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष टर्म बाद में इंदिरा गांधी राज में आंतरिक आपात काल के दौरान 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम (1976) के अंग के रूप में भारत गणराज्य के चरित्र को सुस्पष्ट करने के लिए जोड़े गए थे। तब से ही दक्षिणपंथी प्रतिक्रियावादी ताकतों की ओर से मूल प्रिअंबल बहाल करने की मांग की जाती रही है।



गौरतलब है कि सिन्हा जी ने अपने प्रस्ताव में धर्मनिरपेक्ष टर्म हटाने नहीं कहा है। उन्होंने इसके बारे में पूछे जाने पर इंडियन एक्सप्रेस अखबार से यही कहा कि “ सेकुलर शब्द पर कई मंतव्य हो सकते है।कुछ महसूस कर सकते हैं कि यह अभी भी आवश्यक है, हालांकि भारत का सेकुलर चरित्र हमारी संस्कृति,सभ्यता और कार्यों में फैला हुआ है। लेकिन मौजूदा सामाजिक-आर्थिक विकास सन्दर्भ में समाजवाद पूरी तरह से बेकार शब्द है। उनके अनुसार प्रिअंबल में 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत समाजवाद शब्द जोड़ने के लिए संसद में कोई बहस नहीं की गई थी। उनका यह भी कहना है कि संविधान सभा में जब के टी शाह ने प्रस्तावना में ‘ संघीय , धर्मनिरपेक्ष,समाजवादी संघ-राज्य ‘ जोड़ने का प्रस्ताव किया तो उस पर गहन विमर्श के बाद तय हुआ कि इसकी कोई जरुरत नहीं है। खुद डॉ बी आर आम्बेडकर ने यह कह इसका प्रतिवाद किया था कि राज्य के दिशानिर्देशक सिद्धांतों में भारत के समतामूलक राज्य होने की अपेक्षा है और संविधान में समाजवादी सिद्धांत पहले से मौजूद हैं। वो यह भी कहते हैं कि खुद कांग्रेस की सरकार ने 1990 के दशक में नवउदारवादी आर्थिक नीतियां अपना कर समाजवाद के प्रति अपना पहले का रूख पलट दिया है।
सिन्हा जी द्वारा शुक्रवार को दाखिल नोटिस में कहा गया है कि संविधान प्रिअंबल से सोशलिज़्म हटा दिया जाए, क्योंकि यह मौजूदा माहौल में बेकार हो चुका है. इसे हटा देने से किसी खास विचारधारा के बगैर आर्थिक चिंतन की जगह बनेगी। उन्होंने अपनी नोटिस में सदन में यह प्रस्ताव पेश करने के लिए सभापति से अनुमति मांगी। सभापति एवं उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने बुधवार को ही विचार के लिए दाखिल कर लिया। सदन में प्राईवेट बिल शुक्रवार को पेश किये जाते हैं. ऐसा कोई प्राईवेट बिल पास हो जाने पर उसे सम्बंधित मंत्री को अग्रसरित कर दिया जाता है, जो चाहें तो इस बिल की लाइन पर यथोचित नया अधिनियम का मसौदा ला सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी की केंद्र में मई 2014 में बनी पहली सरकार का पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के पहले से संविधान पलटने की कोशिशों की चर्चा रही है जो 2019 के आम चुनाव के बाद उनकी सरकार फिर बन जाने के उपरान्त और बढ़ी है। 2015 में तब बड़ा बवाल हुआ था जब गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में जारी विज्ञापन में छपे प्रिअंबल में सोशलिस्ट और सेकुलर दोनों नदारद थे।
मोदी जी अक्सर अपने स्वप्न का ‘ न्यू इंडिया ’ बनाने की बात कहते है। इसका निर्माण अभी तक तो नही हो सका है। जाहिर बात है वह आगे की सोच रहे हैं।राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि उन्हें ऐसे बहुत काम पूरे करने हैं जिनके लिए उन्हें प्रधानमंत्री पद पर आसीन किया गया। इन कामों में भारत को ‘ हिन्दू राष्ट्र ‘ घोषित करने की जमीन तैयार करना भी है जिसमें मौजूदा संविधान बाधक है। मौजूदा संविधान में कहीं भी न्यू इंडिया का जिक्र नहीं है। अलबत्ता , संविधान सभा की 26 नवम्बर 1949 को पारित और कार्यान्वित संविधान की प्रस्तावना में ही स्पष्ट लिखा है ‘ इंडिया दैट इज भारत ‘ .
यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपनी ‘ मातृ संस्था ‘ कहती है उसे यह संविधान कभी रास नहीं आया। आरएसएस का भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कभी भी कोई योगदान नहीं रहा। उसने संविधान निर्माण के समय उसके मूल स्वरुप का विरोध किया था। यही नहीं उसके स्वयंसेवकों ने स्वतंत्र भारत का मौजूदा संविधान बनने पर उसकी प्रतियां जलाईं थी। आरएसएस को संविधान की प्रस्तावना में शामिल सेक्यूलर ( धर्मनिरपेक्ष / पंथनिरपेक्ष ) पदबंध नहीं सुहाता है। उसके अनुसार धर्मनिरपेक्ष शब्द मात्र से भारत के धर्मविहीन होने की बू आती है। जबकि यह जनसंख्या के आधार पर हिन्दू धर्म-प्रधान देश है। आरएसएस का राजनीतिक अंग कही जाने वाली भाजपा का हमेशा से कहना रहा है कि आज़ादी के बाद से सत्ता में रहे अन्य सभी दलों और ख़ास कर कांग्रेस ने वोट की राजनीति कर अल्पसंख्यक मुसलमानों का तुष्टीकरण किया है और हिन्दू हितों की घोर उपेक्षा की है जिसका ज्वलंत उदाहरण अयोध्या में विवादित परिसर में राम मंदिर के निर्माण में अवरोध है.
विश्व के एकमेव हिन्दू राष्ट्र रहे पड़ौसी नेपाल में जबर्दस्त जन आंदोलन के बाद राजशाही की समाप्ति के उपरान्त अपनाये नए संविधान में इस देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किये जाने के प्रति मोदी सरकार की खिन्नता छुपाये छुप नहीं सकी और उसने इसके प्रतिकार के रूप में कुछ वर्ष पहले नेपाल की कई माह तक अघोषित आर्थिक नाकाबंदी कर दी।
भाजपा किसी भी देश को इस्लामी घोषित किये जाने से चिढ़ती है और साफ कहती है कि उसे ‘ मज़हबी राष्ट्र ‘ मंजूर नहीं है।फिर भी आरएसएस के भाजपा समेत सभी आनुषांगिक संगठन , भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने के पक्षधर हैं.
मोदी जी का न्यू इंडिया आरएसएस के सपनों के हिन्दू राष्ट्र का ही सर्वनाम है जिसकी परतें खुलने में अभी समय लगेगा। क्योंकि मौजूदा संविधान में भले ही अब तक एक सौ से भी अधिक संशोधन किये जा चुके हैं उसके मूल चरित्र को पलटना असंभव नहीं तो आसान भी नहीं है।