-सुनील कुमार।।
न सिर्फ चीन, बल्कि दुनिया के दर्जनों देशों में बड़े-बड़े अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट रद्द हो गए, ओलंपिक पर खतरा मंडरा रहा है, ईरान को अपनी जेलों से आधा लाख कैदियों को छोडऩा पड़ा, क्योंकि कोरोना वायरस का खतरा कैसे रोका जाए, कैसे कम किया जाए, किसी को समझ नहीं आ रहा है। विमानतलों से लेकर अस्पतालों तक दुनिया की हर सरकार पर जो दबाव पड़ रहा है, जितना नुकसान हो रहा है, जितना खर्च बढ़ रहा है, उसका अंदाज अभी तक सामने नहीं आया है। हिन्दुस्तान जैसे देश में जहां अधिकतर सामानों के लिए चीन से कलपुर्जे आते हैं, या दूसरे किस्म का कच्चा माल आता है, उसके पास अब दुनिया के दूसरे देशों से कारोबारी सौदों के अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा है, और भारतीय अर्थव्यवस्था, यहां की मेन्यूफेक्चरिंग एक नाजुक हालत में पहुंच चुकी हैं। ताजा खबर मध्यप्रदेश के इंदौर में फिल्म पुरस्कार का आईफा समारोह स्थगित होने की है। दुनिया भर में लोग सफर रद्द कर रहे हैं, सैलानी कहीं जाने से कतरा रहे हैं, लोग नए लोगों से मिलना कम कर रहे हैं, और हिन्दुस्तान की राजधानी दिल्ली में स्कूलों को इस पूरे महीने के लिए बंद कर दिया गया है।
यह दुनिया न तो ऐसी बीमारी के फैलने पर उसकी रोकथाम के लिए तैयार है, न मरीजों के इलाज के लिए तैयार है, और न ही अर्थव्यवस्था इस बात के लिए तैयार है कि चीन के बिना वह चार कदम भी चल सके। जितने किस्म के कार्यक्रम पूरी दुनिया में रद्द हो रहे हैं उनकी वजह से उन जगहों पर कई किस्म का कारोबार भी चौपट हो रहा है। कहने के लिए हिन्दुस्तान के रिजर्व बैंक ने दो दिन पहले यह कहा था कि कोरोना वायरस की वजह से भारत के कारोबार पर पडऩे वाले बुरे असर से जूझने के लिए वह बैंकों की तैयारी कर रहा है, लेकिन यह तैयारी कैसी हो सकती है यह कल ही सामने आ गया जब खतरनाक अंदाज में काम करने वाला एक निजी बैंक, यस बैंक, डूबते दिख रहा है, और उस पर प्रशासक बिठा दिया गया है, वहां जमा करने वाले लोग अब सिर्फ पचास हजार रूपए तक निकाल सकते हैं। यह नौबत सिर्फ हिन्दुस्तान में नहीं है, और सिर्फ इस हद तक नहीं है। दुनिया की अर्थव्यवस्था वैसे भी चौपट चल रही थी, हिन्दुस्तान में बुरा हाल पहले से चल रहा था, और अब कोरोना के साथ-साथ यस बैंक की शक्ल में भारतीय शेयर बाजार में एक बड़ी बिजली गिरी है, जिससे पता नहीं कितना नुकसान होगा। ऐसे में एक खबर यह भी है कि तीन दिन पहले ही रिजर्व बैंक के एक और डिप्टी गवर्नर ने इस्तीफा दिया था, और वह किस वजह से था, यह अब तक साफ नहीं है।
हम कुछ दिन पहले भी इस बात पर लिख चुके हैं कि देशों को, प्रदेशों को, अपनी अर्थव्यवस्था को इस लायक बनाकर रखना चाहिए कि वे किसी प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदा का सामना कर सकें। अभी-अभी यह जानकारी सामने आई है कि देश में सबसे ज्यादा अनाज पैदा करने वाले, संपन्न किसानों वाले, विदेशों में बसे सबसे अधिक रिश्तेदारों वाले पंजाब की माली हालत ऐसी बुरी हो गई है कि अभी उसने सरकारी कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए कर्ज लिया है। अब अगर सोचा जाए कि ऐसा प्रदेश कोरोना के अधिक मामलों का शिकार होता है, या किसी दिन भोपाल गैस त्रासदी जैसा कुछ उसके साथ होता है, तो उसका क्या हाल होगा? कोरोना से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था बुरी तरह चौपट हुई है, और अभी उसका पूरा असर दिख नहीं रहा है। बाकी दुनिया की वजह से, और चीन पर कच्चे माल के लिए मोहताज रहने की वजह से, हिन्दुस्तान बहुत बुरी मंदी और नुकसान को झेलने जा रहा है। आने वाले कई महीने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत खराब रहेंगे। केन्द्र और राज्यों को कोरोना से बचाव और इलाज की तैयारी में खासा खर्च करना पड़ेगा, और इस वायरस से बचने के लिए पूरे देश में कार्यक्रम रद्द होंगे, आर्थिक गतिविधियां ठप्प होंगी।
कोरोना वायरस दुनिया की सरकारों के लिए एक चेतावनी लेकर भी आया है कि अर्थव्यवस्था को फौलादी मानने वाले लोग यह जान और मान लें कि अर्थव्यवस्था एक बुलबुले से अधिक मजबूत नहीं होती है, और एक बड़ा झटका उसे फोड़ सकता है। कहने के लिए तो कोरोना से अब तक मौतें तीन हजार के करीब ही हुई हैं, लेकिन दुनिया का कारोबार इसकी दहशत में ठप्प हो गया है। ऐसी नौबत अगर हर बरस आने लगे, अलग-अलग वजहों से आने लगे, तो क्या दुनिया के देश और प्रदेश वैसी नौबतों के लिए तैयार हैं?
(दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय, 6 मार्च 2020)