-संजय कुमार सिंह।।
नागरिकता के तीन चरणों को लेकर बच्चों में जो डर फैला है उसका प्रदर्शन एक कला शिविर में किया गया। इसका नाम था, आर्ट अटैक। बुधवार को इसका आयोजन पार्क सर्कस कोलकाता में वीमेन्स विजिल के साथ-साथ किया गया था। कक्षा छह के छात्र मोजम्मिल अंसारी (बाएं), 11 (वर्ष) ने तीन छन्ने बनाए जो नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी), नेशनल पोपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) और सिटिजनशिप अमेंडमेंट ऐक्ट (सीएए) का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन छन्नों में लोगों को छाना गया है। मुसलमान एक पिंजड़े में रखे और बाकी एक अलग नागरिकता पेटी में। मोजम्मिल ने शुरू में कुछ नहीं बनाने का निर्णय किया था। वह अपनी बहन, महविश लरीब, 15 (साल) के साथ (दाएं) आया था। उसे खाली बैठे देखकर महविश ने सुझाया कि वह भी कुछ बनाए। द टेलीग्राफ में आज पहले पन्ने पर प्रकाशित विश्वरुप दत्ता की तस्वीरें।
कहने की जरूरत नहीं है कि नागरिकता को लेकर देश में शुरू की गई नौटंकी का मुसलिम बच्चों पर गहरा असर है और यह एक डर है। मुझे याद आता है कि न्यूयॉर्क में जब वहां के जुड़वां टावर विमान टकराकर गिरा दिए गए थे तो मित्र संजय सिन्हा ने जो खबर भेजी थी उसका भाव यही था कि वहां लोग डरे हुए थे कि बच्चे न डर जाएं। तब वहां सारा काम इस अंदाज में हो रहा था कि बच्चों के मन में डर न समा जाए। संजय ने इस बारे में लिखा भी था और जनसत्ता में उस समय उसकी खबर का शीर्षक अगर मुझे ठीक याद है तो, “लोग डरे हुए हैं कि बच्चे न डर जाएं था”। उसके बाद एक देश के रूप में अमेरिका ने क्या किया वह इतिहास है। आप उसे अमेरिका की दबंगई कह सकते हैं पर यह भी सच है कि उसके बाद अमेरिका में कोई आतंकवादी घटना नहीं हुई। हमारे यहां क्या हालत है आप देख रहे हैं। चुनाव से पहले आतंकवाद खत्म करने के लिए घर में घुसकर मारने का दावा चुनाव बाद पुलवामा पर चुप्पी। देविन्दर सिंह की गिरफ्तारी पर तो मीडिया को भी सांप सूंघ गया है। ऐसे में यह आरोप लगाया जाता रहा है कि धर्म विशेष के लोग आतंकवादी बनते हैं (और दूसरे धर्म के हो ही नहीं सकते का दावा भी है)। पर मुद्दा यह है कि आप डरा कर रखेंगे तो बच्चा क्या बनेगा यह कैसे तय होगा। बच्चे किसी भी धर्म का हो उसका मन कौन जानता है। बात इतनी ही नहीं है। एक धर्म का बच्चा गोली चला कर किसी को जख्मी कर दे तो वह बच्चा हो जाता है क्योंकि गोली चलाने की उसकी उम्र नहीं थी और दूसरे धर्म का बच्चा गोली चलाए (आत्म रक्षा में या हवा में) तो वह आतंकवादी करार दिया जाता है क्योंकि बच्चा मानने की हमारी उम्र से वह बड़ा है। अपराध बड़ों का सजा बच्चों वाली – हम देते हैं। उसपर बात करने की जरूरत भी नहीं समझते। ऐसा हमारे ही मीडिया और इसी समाज ने ऐसा किया है। ऐसे में हम डरे हुए बच्चे ही पैदा कर रहे हैं और वो क्या करेंगे यह तय नहीं हो सकता। उससे निपटने के तरीके सही या गलत हो सकते हैं।