-श्याम मीरा सिंह।।
अभिजात्य वर्ग को भारतीय इतिहास के पूरे कालक्रम में ही आजादी मिली हुई थी, उनके लिए इतिहास का हर काल ही स्वर्णिम काल रहा है, लेकिन गरीब, मजलूम, दलित, कमजोर, पिछड़े कभी भी आजाद न थे. न ऋग्वैदिक काल में, न मौर्य काल में, न शुंग काल में, न मुगल काल में, न अंग्रेजों के काल में. पिछड़ों, कमजोरों की आजादी, सन 47 की किसी तारीख में नहीं है ,बल्कि भविष्य की किसी तारीख में है.
ऐसा कहने के पीछे तर्क हैं-
●CAA-NRC के समर्थन में की जाने वाली रैलियों के लिए आजादी है, लेकिन CAA-NRC से असहमति जताने वालों के लिए नहीं है. (अमित शाह लखनऊ में रैली कर सकते हैं, लेकिन प्रियंका गांधी, आईएएस ऑफिसर गोपीनाथ कृष्णन, चंद्रशेखर आजाद नहीं.)
● राजपूत एक फ़िल्म के लिए सड़क जाम कर सकते हैं, आर्थिक रूप से सुसक्षम “जाट” आरक्षण के लिए सड़क जाम कर सकते हैं, पटरियां उखाड़ सकते हैं, शहर जला सकते हैं, शिवसेना के हिन्दू मराठा मुम्बई में तोड़-फोड़ कर सकते हैं. लेकिन मुसलमान अपनी नागरिकता के अधिकार के लिए कहीं धरना नहीं दे सकते, अगर वह अपने संवैधानिक अधिकारों को रीक्लेम करने के लिए सड़क पर आते भी हैं, तो मीडिया उन्हें बताएगा कि उन्हें कोर्ट में लड़ाई लड़नी चाहिए, सड़क पर धरना नहीं देना चाहिए.
● सभी ऊंची जातियां अपनी बेटियों-बेटों की बरात पूरे गांव के बीच घुमा सकते हैं, लेकिन दलित घोड़ी पर नहीं चढ़ सकते. (कासगंज, द क्विंट की रिपोर्ट)
● नौजवान लड़के-लड़कियां चाहे वो दोस्त हों, चाहे प्रेमी-प्रेमिका हों, इस आजाद देश के किसी पार्क में नहीं बैठ सकते, बाइक पर साथ नहीं चलते, अगर बैठते भी हैं तो पुलिस ही उनकी सुताई कर सकती है ( एंटी रोमियो स्क्वाड )
● सरकार पूंजीपति अम्बानी के जियो इंस्टिट्यूट को एमिनेंस का स्टेटस दे सकती है, हर साल पूरे देश में पहले नंबर पर आने वाले JNU को नहीं. क्योंकि वहां से असहमति जताने वाले बच्चों की संख्या अधिक है. वहां की स्कॉलरशिप भी खत्म कर दी जाएंगी, वहां की फीस भी बढ़ा दी जाएगी, यानी उनके पढ़ाई- लिखाई के अधिकार को भी सरकार कुचल देगी।
● एक कंफ्लिक्ट स्टेट कश्मीर में सत्ता पार्टी के सांसद जा सकते हैं, लेकिन अपोजिशन के सांसद नहीं जा सकते, उन्हें एयरपोर्ट पर ही कैद कर लिया जाएगा.
● ऑक्सफोम की रिपोर्ट के अनुसार भारत के शीर्ष 1 प्रतिशत लोगों के पास देश के बाकी 70 फीसदी लोगों से करीब 400 प्रतिशत अधिक संपत्ति है. अब बताइए आय-सम्पत्ति के बीच की ये असमानता किसकी कीमत पर है? किसकी रोटियां काटी गई हैं इस आर्थिक असमानता के लिए.
● सरकारी MLA को एक लड़की का बलात्कार करने की आजादी है, उसके परिवार को कुचल देने की आजादी है. लेकिन पीड़ित को FIR लिखवाने के लिए भी कोर्ट में लड़ना पड़ता है.
● आपका प्रधानमंत्री एक पूरी कौम के कपड़ों पर कमेंट कर सकता है, गृहमंत्री दंगाइयों की भाषा बोल सकता है, मुख्यमंत्री तो दंगाई है ही, मोदी मीडिया पूरे दिन नागरिकों को देशद्रोही, नक्सली, जिहादी बोल बोलकर कार्यक्रम कर सकती है. लेकिन अपोजिट विचार का कोई व्यक्ति कार्टून भी बना दे, फेसबुक पोस्ट भी लिख दे, तो जेल में ठूंसा जा सकता है. इसके तमाम उदाहरण आपके सामने हैं हीं।
आजादी कोई इवेंट नहीं है, कोई घटना नहीं है, जो एक बार मिल गई, तो अब सो जाना है. आजादी हर रोज लड़ने की चीज है. हर रोज क्लेम करने की चीज है. बेशक हम आजाद हुए हैं. लेकिन हमारी आजादी सरकार की इच्छा पर इतनी आत्मनिर्भर है कि सरकार की गुलाम लगती है. जिसे सरकार जितना चाहे हिला-डुला, मार-पुचकार सकती है.
आप ही सोचिए एक खास संगठन के कार्यकर्ता, एक खास जाति के लोगों, एक खास वर्ग के पुरुषों के मुक़ाबले आप कितने स्वतंत्र हैं?
लेकिन इस बात का ख्याल भी रहे कि शांत मुर्दा नागरिक बनकर रोटी- पानी की व्यवस्था कर लेना आजादी नहीं है, अन्यथा हांगकांग के नागरिक दुनिया के सबसे समृद्ध नागरिक होते हुए भी अपनी आजादी को क्लेम करने के लिए, सड़कों पर पिट नहीं रहे होते, लाठियां न खा रहे होते. इसलिए कह रहा हूँ कमजोर, पिछड़ों की आजादी की तारीख सन सैंतालीस में नहीं है, बल्कि भविष्य की किसी तारीख में है.