-संजय कुमार सिंह।।
योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग कर दिया गया। मामला योजना और नीति का नहीं है, योजना आयोग अब नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया यानी भारत को बदलने के लिए राष्ट्रीय संस्थान है, राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान। आप समझते रहे कि योजना आयोग नीति आयोग हो गया है पर असल में वह भारत को बदलने वाला राष्ट्रीय संस्थान बन गया है। नाम के लिए अंग्रेजी का एनआईटीआई तो ठीक है पर हिन्दी में उसे नीति नहीं निति होना चाहिए। नीति नाम से अनावश्यक भ्रम होता है। भारत को बदलकर क्या बनाना है, बदलना कब तय हुआ मुझे यह सब नहीं मालूम है। ना मैंने उसे चेक किया।
योजना आयोग नाम से लगता था कि भविष्य की जरूरत के अनुसार सामान्य योजनाएं बनाता है। नीति आयोग से भी ऐसा ही आभास होता है। लगता है योजना और नीति में ज्यादा फर्क नहीं है। नीति आयोग दरअसल निति है अंग्रेजी के उसके नाम में ‘आयोग’ है ही नहीं। अब यह एक संस्थान है और बदलाव के लिए काम करता लग रहा है। संयोग से या दुर्भाग्य से इस बदलाव के लिए काम करने वाले ऐसे लोग हैं (सदस्य और पूर्व डीआरडीओ चीफ वीके सारस्वत) जो कहते हैं कि, ”अगर कश्मीर में इंटरनेट न हो तो क्या फर्क पड़ता है? आप इंटरनेट पर क्या देखते हैं? वहां क्या ई-टेलिंग हो रही है? गंदी फिल्में देखने के अलावा आप उस पर (इंटरनेट) कुछ भी नहीं करते हैं।”
इंटरनेट के बारे में यह सोच दो कौड़ी की भी नहीं है। इंटरनेट पर मैं क्या करता हूं मैं जानता हूं। और फिल्म भी देखता हूं। उससे किसी को क्या तकलीफ? पर वह गंदी है या अच्छा – यह कौन तय करेगा? आप अपने बच्चों के देखने के लिए फिल्में तय कीजिए 18 के बाद वो भी नहीं मानेगा आप चले पूरे देश (या कश्मीर) के लिए तय करने। दुनिया बदलकर रख देने वाले इंटरनेट के बारे में ऐसी सोच रखने वाला भारत बदलेगा या बदलने के लिए चुना गया है तो क्या करेगा आप समझ सकते हैं।
जहां तक गंदी फिल्म की बात है, क्या गंदा होता है उसमें? उस गंदे काम के बिना कौन पैदा हुआ है? कौन नहीं करता है वो गंदा काम? फिर उससे इतनी चिढ़ क्यों? भारत बदल गया है इसीलिए अब ऐसी घटिया सोच वालों को हटाने या निकालने की बात नहीं की जाती है। पहले अपराधी, अपराध के आरोपी से बचा जाता था। अब तड़ी पार किया जा चुका व्यक्ति गृहमंत्री है। भारत बदल रहा है। बदलने वालों को कौन चुन रहा है वह भी देखिए। क्या गृहमंत्री बनाने के लिए किसी बेदाग को नहीं चुना जाना चाहिए था। और दागी को कुर्सी पर बैटा दिया जाना जाना सामान्य है? पार्टी अध्यक्ष के रूप में अच्छा काम कर रहे थे तो इस प्रशासनिक काम में लगाने की क्या जरूरत थी?
जब भारत का बदलाव करने वाले संस्थान के सदस्य ऐसे लोग हैं तो समझिए भारत बदल नहीं रहा है, बदल गया है। सोचिए कब बदला और संभल सकते हैं तो संभल जाइए। जेएनयू ऐसे ही निशाने पर नहीं है। जेएनयू बदल रहा है और उसके मुखिया यानी वीसी बदल चुके हैं। वे संस्थान में नकाबपोश गुंड़ों के हमले में घायल छात्रों को देखने नहीं जाते हैं। कहते हैं मेरे पास कोई भी आ सकता है। घायल डॉक्टर के पास जाएगा, शिकायत करने पुलिस के पास जाएगा या वीसी के पास? ऐसे वीसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होना – भारत बदल गया है का संकेत है। कितना बदलेगा यह समय बताएगा। फिलहाल, अखबार बदल चुके हैं, टेलीविजन बदल चुके हैं, सिनेमा हॉल बदल चुके हैं, खरीदारी बदल चुकी है।