-सत्य पारीक।।
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद देश के शासन की बागडोर अघोषित रूप से संघ के निर्देश पर गृह मंत्री व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के हाथों में हैं, जो देर सवेर मोदी का स्थान लेने वाले हैं। जब ऐसा होगा तब मोदी को मार्गदर्शक मण्डल में बैठना होगा , सूत्रों का कहना है कि मोदी की योजना शाह के लिए प्रधानमंत्री का आसन खाली कर राष्ट्रपति का सिहांसन सम्भालने की है मगर उसके लिये स्वंय संघ प्रमुख मोहन भागवत तैयार हो चुके हैं जिन्हें रामनाथ कोविद को बनाने से पहले राष्ट्रपति पद की ऑफर दी गई थी लेकिन उन्होंने उस समय इसलिए मना किया था क्योंकि उनका उद्देश्य शेष था जो अब पूरा हो गया है , इसी के चलते उन्हें जेड प्लस सुरक्षा में रखा गया।
संघ ने जो भी देश के लिये अपना एजेंडा बनाया था उसे भाजपा को सौंप कर उसके चुनावी मुद्दे बनवाये थे जिन्हें विगत चुनावों में भाजपा लेकर चुनावों में उतरती थी , मगर सत्ता में आकर संघ के सिपाही रहे अटल जी , आडवाणी जी , मोदीजी , राजनाथ सिहं संघ का एजेंडा पूरा नहीं कर सके , इसी कारण अमित शाह को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ साथ गृह मंत्री बनाया गया उनके स्थान पर बैठे राजनाथ सिंह को रक्षा मंत्री बना कर मार्ग दर्शक मण्डल में जाने से बचाया गया , शाह ने गृह मंत्री बनकर रात दिन एक कर भाजपा/संघ के एजेंडे को सफलतापूर्वक पूरा करने की योजना पर काम किया ।
शाह से पहले उन्हें सौंपे कार्यों की जिम्मेदारी पिछली मोदी सरकार में नितिन गडकरी को सौंपी गई थी जो प्रधानमंत्री मोदी से तालमेल बिठाने में असफल रहे थे , उधर शाह को राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद सौंप कर देश में भाजपा के हाथ पैर फैलाने की खुली छूट संघ ने दी थी जिस पर उन्होंने पूरी ताकत से काम किया , भाजपा सरकार को 2019 के चुनावों में भारी सफलता का श्रेय संघ ने मोदी की बजाय शाह को दे रखा है , तभी तो संघ ने पूरे विश्वास के साथ शाह को गृह मंत्रालय सौंपा। अगर भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में से संघ के हिंदूवादी एजेंडे को निकाल दिया जाता है तो बाकी विकास की कोई ऐसी ठोस योजना नहीं है जिसके दम पर वह चुनाव लड़ कर सत्ता में आ सके। मोदी के झुठ पर आधारित भाषणों के साथ कांग्रेस की धारा प्रवाह आलोचनात्मक शैली को बुद्धिजीवी वर्ग सिरे से नकार चुका है। अतः उनके भाषणों पर केवल गोदी मीडिया के खबरिया चैनलों में मनचलों को चटकारे लेते सुना जा सकता है । विदेशी मीडिया ने मोदी के भाषणों को संघ के विचारक की लच्छेदार बातें कहकर बकवास घोषित कर रखा है ।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के भाषणों में जुमलों के अलावा गांधी परिवार के लिए ओच्छी भाषा के प्रयोग ने उन्हें भीड़ का मनोरंजन करने वाला जोकर मान रखा है , इतनी नाकारा और वाहियात बातें उक्त दोनों नेताओं में होने के बाद इनकी पार्टी को वोट कैसे मिलते हैं इस पर नजर डालें तो पता लगता है कि प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पास वोटरों को लुभाने वाले नेता नहीं है दूसरा कारण E V M भी हो सकता है तीसरा कारण भाजपा के हिन्दू एजेंडे का प्रभाव भी है , देश में महंगाई , बेरोजगारी , ओधोगिक विकास , व्यापार व अन्य विकास की योजनाओ पर संघ एजेंडा भारी है जिसे शायद अब जनता समझने लगी है लेकिन बहुत देर के बाद ।