जिस तरह मीडिया ने अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी अनशन को दिखाया, उससे बहुत लोगों को अपनी पहले की सोच पर या तो शक हुआ होगा, या ऐसा भी लगा होगा कि मीडिया ने सच बताया। आमतौर पर साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है, लेकिन इस मामले में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने यह सिद्ध करने की कोशिश की कि वह जो सोचता है, वही समाज सोचे। चूंकि भ्रष्टाचार एवं महंगाई का मुद्दा इतना ज्वलंत हो उठा था कि लोग इस आंदोलन से जुड़ते गए। वरना नवंबर 2010 में जब अन्ना हजारे ने इसी मुद्दे पर जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया, तो मुश्किल से 100 लोग इकट्ठा हुए थे।
इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने परोक्ष या अपरोक्ष रूप से अभियान चला रखा है कि संविधान में सैंकड़ों पेच हैं, अत: इसे बदलना चाहिए। दबी जुबान से मध्यवर्ग के कुछ सवर्ण सोचते एवं कहते भी हैं कि देश को ठीक करने के लिए संविधान को बदलना चाहिए, जबकि बदलना उन्हीं को चाहिए। अमेरिका का संविधान 200 वर्षों से ज्यादा पुराना है और उसमें संशोधन भी बहुत कम हुए हैं, फिर भी वहां की राजनीतिक व्यवस्था कितनी मजबूत है। दरअसल लोगों की नीयत अगर ठीक नहीं हो, तो संविधान बदलने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। इस आंदोलन में नौजवानों ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की। यदि यही नौजवान, जब 2008 में महंगाई एवं भ्रष्टाचार बढ़ने लगे थे, उठ खड़े होते, तो आज यह दिन देखने को न मिलता।



भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लड़ाई में असत्य बोलना या सत्य को न दिखाना या एक पक्ष को बढ़ा-चढ़ाकर बताना या दिखाना और दूसरे पक्ष को पूरी तरह से नजरंदाज करना, क्या भ्रष्टाचार नहीं है? कुछ चैनल जोर-जोर से कह रहे थे कि पूरा देश अन्ना हजारे के साथ है। अगर ऐसी बात है, तो भला अनशन करने की जरूरत ही क्या थी? चुनाव लड़कर अपनी संसद बनाते और उसमें जन लोकपाल बिल आसानी से पास हो जाता। अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों ने अखिल भारतीय परिसंघ एवं अन्य संगठनों के माध्यम से 24 अगस्त को इंडिया गेट पर एक रैली का आयोजन कर पूछा कि क्या इस देश में दलित, पिछड़े एवं अल्पसंख्यक नहीं रहते? अगर रहते हैं, तो अन्ना हजारे की टीम में इन वर्गों का प्रतिनिधित्व कहां है? अन्ना हजारे के आंदोलन की रीढ़ मध्यवर्ग है, जो स्वयं कुछ करता नहीं और मतदान करने भी बहुत कम जाता है। 24 अगस्त की रैली को टीवी मीडिया ने पूरी तरह से नजरंदाज किया, क्या यह सच को छुपाना नहीं है? अगर इस प्रवृत्ति से नहीं बचा गया, तो भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए आंदोलन को ही नुकसान पहुंचेगा। जयप्रकाश का आंदोलन इसलिए सफल था, क्योंकि उसकी रीढ़ में नौजवान और पिछड़ा वर्ग ही था।
पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों की सिविल सोसाइटी ने प्रधानमंत्री और संसद की स्थायी समिति को बहुजन लोकपाल बिल का मसौदा सौंपा है, जिसमें उन तथ्यों और मांगों को भी रखा गया है, जो अन्ना टीम के बिल में शामिल नहीं हैं। यह भी सवाल खड़ा किया गया कि क्या लोकपाल भ्रष्ट नहीं हो सकता? लोकपाल और कमेटी में किन-किन वर्गों के लोग होंगे-यह न तो सरकारी बिल में और न ही जन लोकपाल बिल में है। इसलिए नौकरियों में दलितों- पिछड़ों के आरक्षण की तरह लोकपाल समिति में भी उनके प्रतिनिधित्व की मांग बहुजन लोकपाल बिल में की गई है।
सामाजिक क्रांति के बिना राजनीतिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार मिटाने की बात बेमानी होगी। जाति व्यवस्था भ्रष्टाचार का मुख्य कारण है। इस पर चोट किए बिना भ्रष्टाचार से निजात संभव नहीं है। समाज को दिशा देनेवाली मीडिया अगर वह कुछ लोगों को समाज मानकर उससे प्रभावित होने लगे, तो इसे सही नहीं कहा जा सकता।
लेखक इंडियन जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष हैं।
आज के समय मे मीड़िया ही एक ऐसा रास्ता है जो साथ दे तो देश की लाखो जिंदगीया जिने के काबिल हो सकती हैं अगर मीड़िया सहि समय पर मदद करे तो कानून को सहि का साथ देना ही पड़ेगा मैँने देखा है कि बड़े लोगो की चीख तो एक दम सुनती है छोटे लोगो चीख तो सुनाई भी नही देती जिससे मुज़रिम बड़ रहे हैं क्योकि उनकेँ पास और कोई रास्ता ही नहीं बचता फिर उन्हे लगता है कि ये बच्च सकते है तो हम क्यो नही बच सकते और कुछ हो चाहे न हो जेल में कैदियो की संख्या तो बड़ ही जाती है VIJAY SINGH
PH NO. 917696014677 or 917696014678
जाति व्यवस्था भ्रष्टाचार की जड मे निहित है इसका खात्मा किय बिना भ्रष्टाचार न्ही ह्टेगा
इस मन्दबुध्दि लेखक के लेख को इस साइट पर जगह नही देनी चाहिए । इसके अनुसार तो जाति क्या धर्म व्यवस्था को भी खत्म कर देना चाहिए । कैसी बेवकूफी है…
बेसिक स्ट्रक्चर को छोड़कर सविधान में कही भी संशोधन किया जा सकता है. संशोधन समय की जरूरत होती हैं. अमेरिका के २०० साल पुराने संविधान में अनगिनत संशोधन हो चुके हैं और होते रहते हैं. ये कांग्रेस की राजनीती की एक बिसात है जिस पर कांग्रेस दलित वोट बैंक को भुनाती आ रही है.
अब ये आदमी जाती प्रथा मिटाने की बात कह रहा है. ये दलितों के नाम पर कलंक हैं. जब भी किसी ने दलित उत्थान के लिए कोई अच्छा सुझाव दिया है, इसने उसका विरोध किया है. जब भी कोई कुछ करता है तो इसका टांग अडाना जरूरी होता है. अन्ना का विरोध कर रहे हैं ये कह कर कि अन्ना संविधान के खिलाफ जा रहे हैं. कभी ये इस बात को समझाएगा कि अन्ना का आन्दोलन किस तरह से सविधान के खिलाफ है. उस दौरान इसने घंटों टीवी चैनलों पर राग अलापा पर एक लाइन भी नहीं बोल पाया जो ये कह सके कि कैसे ये सविधान के खिलाफ है.
अगर है भी तो क्या सविधान जनता से बढ़कर है? ये दलित उत्थान पर कार्य कर रहे हैं या सविधान पर राजनीती? टीम अन्ना में किसी दलित या मुस्लिम के होने या ना होने से क्या फर्क पड़ता है? क्या दलितों के लिए भरष्टाचार अलग है? क्या जाती व्यवस्था दूसरी जातियों के प्रति घृणा भाव रखने से दूर होगी?
बिलकुल सही कहा सर आपने ..अनशन से नहीं जातिवाद को ख़तम करने से ही होगा भ्रष्टाचार का खात्मा. और भला वो लोग जातिवाद को क्यों ख़तम करेंगे ..जिनको इसका लाभ मिलता है ..जातिवादी व्यवस्था तो उन लोगो को ख़तम करना चाहिए जिनको इससे तकलीफ होती है. इस देश की सबसे बड़ी समस्या जातिवाद अर्थात मनुवाद है ..उसे ख़तम करने के लिए कोई आन्दोलन क्यों नहीं …? और जो आन्दोलन हो भी रहे है वो मीडिया से पूरी तरह गायब है क्यों ? पिछले २५ साल से बामसेफ जातिवाद के खात्मे के लिए सामाजिक चेतना निर्माण कर रहा है ताकि भारत में एक लोकतान्त्रिक समाज व्यवस्था का निर्माण हो सके , लेकिन उसके कार्यो को मीडिया में कोई स्थान मिला है क्या ? उदित राज जी के नेत्र्त्वा में अनुसूचित जाती और जनजाति कर्मचारी परिसंघ और जस्टिस पार्टी के बैनर से भी लगातार आन्दोलन होते रहे है जातिवादी व्यवस्था के खिलाफ ……लेकिन मीडिया में इसकी बहुत कम चर्चा होती है ………ऐसा क्यों है ? ……… धन्यवाद् मीडिया दरबार सच कहने के लिए ….
लगता है उदित राज जी को और कोई काम नहीं है ,मुद्दा चाहे कोई भी हो ,जाती व्यवस्था की याद जरूर दिलाते हैं बार बार बेकार में .