पिछले साल 8 नवंबर 2016 को मोदी सरकार ने कालेधन पर कड़ा प्रहार करने लिए पुराने 500 और 1000 रुपए के नोट बंद कर दिए थे। इसके बाद उम्मीद से काफी कम मात्रा में काला धन बाहर आया और इसके बड़े हिस्से की हेरा-फेरी होने की बात सामने आई। सरकार नोटबंदी की सालगिरह को ऐंटी ब्लैक मनी डे के तौर पर मनाने की तैयारी कर रही है। मगर, इससे पहले ही ब्लैक मनी को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है।
दुनिया के सबसे बड़े व्यावसायिक घरानों, देशों के राष्ट्राध्यक्षों, राजनीति में वैश्विक पकड़ रखने वाले लोगों, मनोरंजन और खेल से जुड़ी शख्सियतों के नाम इस लिस्ट में शामिल हैं, जिन्होंने टैक्स हैवन कंट्रीज में अपना पैसा छिपाया है। यह जानकारी 1.34 करोड़ दस्तावेज के लीक होने के बाद सामने आई है, जिसे पैराडाइज पेपर्स के नाम से जाना जा रहा है।
#ParadisePapers – 13.4 million documents, 94 media partners, more than 120 politicians and world leaders. https://t.co/lHHyt9eLTS pic.twitter.com/mecTosLSxD
— ICIJ (@ICIJorg) November 5, 2017
कर चोरी का यह मामला काफी जटिल है और यह उन आर्टिफिशियल तरीकों को दिखाता है, जिनके जरिये अरबपति कानूनी रूप से अपना धन बचा रहे हैं। यह खुलासा जर्मनी के जीटॉयचे साइटुंग नामक अखबार ने किया है। बताते चलें कि इसी मीडिया हाउस ने 18 महीने पहले पनामा पेपर्स का खुलासा किया था। करीब 96 मीडिया ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर इंटरनेशनल कॉन्सोर्टियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) ने ‘पैराडाइज पेपर्स’ नामक दस्तावेजों की छानबीन की है।
इस खुलासे के जरिये उन फर्मों और फर्जी कंपनियों के बारे में बताया गया है जो दुनिया भर में अमीर और ताकतवर लोगों का पैसा विदेशों में भेजने में उनकी मदद करते हैं। पैराडाइज पेपर्स लीक में भी पनामा की तरह ही कई भारतीय राजनेताओं, अभिनेताओं और कारोबारियों के नाम सामने आए हैं।
प्राप्त किए गए दस्तावेज दो विदेशी सर्विस प्रोवाइडर्स और 19 टैक्स हैवन देशों में रजिस्टर्ड कंपनियों से मिले हैं। आईसीआईजे के भारतीय सहयोगी मीडिया संस्थान इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इस लिस्ट में कुल 714 भारतीयों के नाम शामिल हैं। वहीं, दुनिया भर की बात करें तो इस लिस्ट में कुल 180 देशों के नाम हैं। इस लिस्ट में भारत 19वें नंबर पर है।
इस खुलासे से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे सहित विश्व के कई बड़े नेताओं पर दबाव पड़ेगा, जो आक्रामक कर चोरी की योजनाओं को रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस जांच के प्रकाशन के लिए 380 से अधिक पत्रकारों ने एक साल तक जांच की। वे 70 साल पहले तक के आंकड़ों की जांच करते हुए इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
यह मामला ऐसे समय में सामने आया है, जब वैश्विक आर्थिक असमानता बढ़ रही है। प्रमुख अर्थशास्त्री गैब्रियल जुकमैन ने कहा कि वैश्विक असमानता बढ़ने के लिए जो सबसे बड़ा कारण है, वह है टैक्स हैवन देश। जैसे-जैसे असमानता बढ़ती जा रही है, ऑफशोर टैक्स इवेजन (कर चोरी) एक विशिष्ट खेल बनती जा रही है।
इस लीक के केंद्र में बरमूडा की लॉ फर्म ऐपलबाय है। यह कंपनी वकीलों, अकाउंटेंट्स, बैंकर्स और अन्य लोगों के नेटवर्क की एक सदस्य है। इस नेटवर्क में वे लोग भी शामिल हैं जो अपने क्लाइंट्स के लिए विदेशों में कंपनियां सेट अप करते हैं और उनके बैंक अकाउंट्स को मैनेज करते हैं। यह ऑफशोर इस्टैबलिशमेंट के लिए काम करती है, जो क्लाइंट्स को ऐसे स्ट्रक्चर मुहैया कराती है, जो कानूनी रूप से अपने टैक्स बिल को कम करने में मदद करें।
इन आरोपों पर कंपनी ने सफाई देते हुए कहा कि उसने सभी आरोपों की जांच की है और पाया है कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि उन्होंने या उनके क्लाइंट्ल ने कोई गलत काम किया है। इस कंपनी ने कहा कि हम एक लॉ फर्म हैं, जो क्लाइंट्स को उनका बिजनेस चलाने के लिए कानूनी रास्तों के बारे में बताते हैं। हम गैरकानूनी व्यवहार को बर्दाश्त नहीं करते हैं।
गौरतलब है कि मीडिया के चारणकाल में भारत से इंडियन एक्सप्रेस अख़बार की टीम ने यह शोध करने का काम किया और खुलासा भी..