-अजय ब्रह्मात्मज॥
इस सदी में ऐसी कोई भारतीय फिल्म नहीं दिखती, जिसने पूरे देश के दर्शकों को समान रूप से आकर्षित किया हो। एसएस राजामौली की ‘बाहुबली’ के आरंभ और अंत के कलेक्शन ने ट्रेड पंडितों को चौंका दिया है। पूरे देश में ‘बाहुबली’ के प्रति खुशी और उत्साह की लहर है। ऐसे दर्शक घर से निकल कर सिनेमाघरों में पहुंच रहे हैं, जो सालों से टीवी पर ही फिल्में देख रहे थे। बाहुबली की लोकप्रियता अद्वितीय है। उसी अनुपात में उसका कलेक्शन भी है। सभी जानते हैं कि ‘बाहुबली 2’ ने 1000 करोड़ से अधिक का कलेक्शन कर लिया है। ‘बाहुबली’ के इस करोड़ से सभी फिल्मकारों की सोच में मरोड़ आया है। अच्छा है कि हिंदी के निर्माता-निर्देशक भी कुछ बड़ा सोच रहे हैं।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के बनारस और इलाहाबाद जाने का मौका मिला। बनारस में कंगना रनोट की ‘मणिकर्णिका- द क्वीन ऑफ झांसी’ के पोस्टा के अनाचरण के साथ फिल्म की घोषणा थी। इस अवसर पर कंगना रनोट ने दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती में हिस्सा लिया और गंगा में पवित्र डुबकी भी लगाई। कमल जैन के निर्माण और कृष के निर्देशन में बन रही इस फिल्म का वितान ‘बाहुबली’ के ही समान होगा। निर्माता कमल जैन ने ‘बाहुबली’ की क्रिएटिव और टेक्नीकल टीम को साथ में लिया है। उनकी यह फिल्म केवी विजयेन्द्र प्रसाद लिख रहे हैं। उम्मीदें बड़ गई हैं। माना जा रहा है कि ‘मणिकर्णिका-द क्वीन ऑफ झांसी’ हिंदी व भारतीय फिल्मों के लिए मिसाल बनेगी। निश्चित ही इसके बाद राष्ट्रवीरों के बॉयोपिक की झड़ी लग सकती है।
इस तथ्य से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि दर्शक ‘बाहुबली’ से मुग्ध है। फिल्म का अद्वितीय कलेक्शन उनकी मुग्धता को गाढ़ा कर रहा है। फिल्मों की कमाई दर्शक बढ़ाती है। आम दर्शकों पर दबाव बनता है कि वे इस लोकप्रियता से वंचित न रह जाएं। यही कारण है कि दिन और हफ्ता बीतने के बाद भी ‘बाहुबली’ के दर्शक कम नहीं हो रहे हैं। अभी कोई फिल्म के कंटेंट और क्वालिटी की बात नहीं कर रहा है। फिल्म की तारीफ में फिनहाल ‘क्यों’ पर विचार नहीं हो रहा है। अगर कोई सवाल खड़े कर रहा है तो उस पर समर्थक थू-थू कर पिल जा रहे हैं। किसी भी कृति के लिए यह अच्छी बात नहीं है। फिल्म हो या अन्य कोई सृजतात्मक कृति…हम उसकी कमाई और लोकप्रियता से प्रभावित होकर गुणगान में जुट जाएंगे तो उसका सही और संदर्भगत मूल्यांकन नहीं कर सकेंगे। और न ही उससे सबक ले पाएंगे।