-जगमोहन ठाकन।।
गत छह माह से लखनऊ का एक वरिष्ठ पत्रकार पी जी आई लखनऊ में दोनों किडनी खराब होने के कारण जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा है . लाचारगी में बैड पर जीवन की डोर को पकड़े , किसी मदद की आस लगाये , लड़खड़ाते सांसों के सहारे संघर्षरत है यह विवश पत्रकार . परन्तु क्या किडनी ट्रांसप्लांटेशन पर होने वाले लाखों रुपये की सहायता लाचार पत्रकार को मिल पायेगी ? क्या सरकार के हाथ इस वरिष्ठ पत्रकार की जीवन डोर बचा पायेंगें ? ये मर्मान्तक प्रश्न उछल रहे हैं , लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार उदय यादव की लाचारगी पर.
यादव उत्तर प्रदेश के एक ईमानदार एवं दबंग वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं . परन्तु पिछले छह माह से किडनी के इलाज के चलते स्वयं तथा अन्य रिश्तेदारों के सभी साधन रिक्त हो चुके हैं. सरकारी सहायता मान्यता – अमान्यता के किन्तु –परंतुओं में हिचकोले खा रही है. क्या सरकारी मदद किसी अनहोनी का इन्तजार कर रही है ? खैर , सरकारी व्यवस्था की लचरता तो सर्व विदित है परन्तु ताज्जुब की बात तो यह है कि मानवीय मूल्यों की दुहाई देने वाले भामाशाहों के देश में कोई भी संस्था या व्यक्ति क्यों मदद को आगे नहीं आ रहा ?