प्रकृति के खेल निराले हैं, जिन्हें आज तक न तो आदमी समझ पाया है, और न ही अत्याधुनिक कही जाने वाली विज्ञान समझ पाई है. झारखंड के एक गांव में रेल पटरियों की विचित्र गतिविधियों ने रेल अधिकारियों और विज्ञान को अचंभे में डाल दिया है. रोज सुबह 8 बजते ही दोनों रेल पटरियां एक दूसरे के नजदीक आने और आपस में सटने लगती हैं, जो तीन घंटे के भीतर पूरी तरह चिपक जाती हैं. फिर दोपहर 3 बजे बाद स्वत: ही अलग भी होने लगती हैं. ग्रामीण इसे चमत्कार मानकर और अंध-विश्वास करके पूज रहे हैं, तो भू-विज्ञानी अपना सिर खुजाने को मजबूर हो रहे हैं.
यह पूरा वाकया एकदम अजीब और अचंभित करने वाला है. हजारीबाग – बरकाकाना रेल रूट पर बसे गांव लोहरियाटांड के पास से गुजरने वाली रेल लाइन पर यह प्राकृतिक अचम्भा घटित हो रहा है. अभी इस रूट पर ट्रेनों की आवाजाही शुरू नहीं हुई है. हालांकि इसका उदघाटन गत 20 फरवरी को प्रधानमंत्री ने किया था. ग्रामीणों और रेल पटरियों की देखरेख करने वाले इंजीनियरिंग विभाग के कर्मचारियों ने बताया कि उन्होंने इन रेल पटरियों की यह स्वचालित प्राकृतिक गतिविधि कई बार होते देखी है. उन्होंने इस बारे में बहुत छानबीन करने की कोशिश की है, लेकिन अब तक इसका कोई उचित कारण अथवा औचित्य उनकी समझ नहीं आ पाया है.
कर्मचारियों के साथ-साथ गांव वालों ने बताया कि इन रेल पटरियों के आपस में चिपकने या एक-दूसरे की ओर खिंचने की प्रक्रिया को उन्होंने कई बार उनके बीच मोटी लकड़ी अड़ाकर रोकने की कोशिश भी की, मगर एक पटरियों का खिसकना नहीं रुका. उनका कहना है कि पटरियों का खिंचाव इतना शक्तिशाली है कि सीमेंट के प्लेटफॉर्म (स्लीपर) में मोटे लोहे के क्लिप से कसी पटरियां क्लिप तोड़कर चिपक जाती हैं. ऐसा 15-20 फीट की लंबाई में ही हो रहा है.
इस बारे में साइंटिस्ट डॉ. बी. के. मिश्रा ने कहा कि वास्तव में ये हैरान करने वाली घटना है. उनका कहना है कि वैसे, ये मैग्नेटिक फील्ड इफेक्ट भी हो सकता है. उन्होंने कहा कि यह तो अब भूगर्भ में ड्रिलिंग से ही पता चल पाएगा कि जमीन के अंदर क्या हो रहा है? जूलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. डी. एन. साधु ने कहा कि अब यह देखना होगा कि जिस चट्टान के ऊपर से ये रेल लाइन गुजरी है, वह कौन सा पत्थर है.
जबकि रेलवे के इंजीनियर एस. के. पाठक ने बताया कि टेंपरेचर ऑब्जर्व करने के लिए लाइन में बीच-बीच में स्वीच एक्सपेंशन ज्वाइंट (एसएजे) लगाया जाता है. यह हजारीबाग-कोडरमा रेलखंड में तीन जगहों पर लगाया गया है. हो सकता है कि जहां पर यह विचित्र गतिविधि हो रही है, वहां अभी एसएजे सिस्टम नहीं लगाया गया हो. इसका असली कारण तो अब जांच के बाद ही पता चलेगा. आश्चर्य इस बात का भी हो रहा है कि रेल लाइन के सालों चलने वाले सर्वेक्षण में ऐसी किसी भूगर्भीय प्रक्रिया अथवा गतिविधि की कोई जांच या सर्वेक्षण किया गया था, या नहीं, इस बात की कोई जानकारी रेल अधिकारी देने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है.