हिंदी डे पर खबर आई कि बिहार के मुजफ्फरपुर में डॉक्टरों ने एक मरीज के पैर की बजाय पेट का ऑपरेशन कर दिया। इमोशनल लोग प्रतिक्रिया में डॉक्टरों को गरियाने लगे, लेकिन मैं फौरन समझ गया कि गल्ती कहां हुई होगी। खा-म-ख्वाह डॉक्टर को गाली देने से समस्या का समाधान नहीं ढूंढा जा सकता। ये तो बढ़िया हुआ कि पैर का इलाज कराने आए मरीज के पेट का भी इलाज हो गया।
ये हिंदी-हिंदी का शोर मचाने वालों को कम से कम इस हादसे से सबक तो लेना ही चाहिए। उस बेचारे मरीज के साथ-साथ उन बेचारे अंग्रेजीदां डॉक्टरों के बारे में भी तो सोचना चाहिए। डॉक्टरी की पढ़ाई हिंदी में तो होती नहीं है। कभी सुना था कि जो लोग रूस (पूर्व सोवियत संघ) में जुगाड़ लगा कर डॉक्टरी पढ़ने जाते थे उन्हें रशियन सीखनी पड़ती थी। अभी चीन में सस्ती डॉक्टरी पढ़ने जाने वाले होनहार छात्रों को चाइनीज़ सीखनी पड़ती है, लेकिन भारत में यह पढ़ाई हिंदी में तो हुई नहीं?
अलबत्ता हमारे गांव की पाठशाला में पढ़े मुखिया जी के लड़के देवेन्दर को डोनेशन से मेडिकल में दाखिला मिला था तो उसने कैसी शोखी बघारी थी यह जरूर याद है। वी डोंट टॉक इन हिंदी देयर.. मेडिकल में कितना अंग्रेजी पढ़नी पड़ती है तुम्हें क्या पता.. आदि-आदि। यहां तक कि जब वो मेडिकल कॉलेज में चार के बदले सात साल लगाने लगा तो मुखिया जी ने कैसे गर्व से बताया था, देवेंदर को तो कॉलेज वालों ने उसकी बढ़िया अंग्रेजी के लिए रोक लिया था.. नए दाखिल होने वाले बच्चों को उसकी मिसाल दी जाती है और कॉलेज में एडमिशन बढ़ता है।
अब आप ही बताइए कि इसमें भला डॉक्टरों का क्या कुसूर? बल्कि मेरा तो मानना है कि इस मामले में कार्रवाई उस क्लर्क पर होनी चाहिए जिसने मरीज की पर्ची बनाई थी। उससे भी ज्यादा कड़ी कार्रवाई उस आदेश को जारी करने वाले पर होनी चाहिए जिसने हस्पताल का कामकाज हिंदी में करने की बात कही होगी। खैर, हमारे-आपके लिखने-पढ़ने से क्या होता है? होइहें वही जो राम रचि राखा।
– खबरची
आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने हमारी मातृभाषा हिंदी को सम्मान दिए ….हमें तो नफरत है उन अंग्रेजो की औलादों से जो पैदा तो इस देश में हुए हैं और गुणगान फिरंगियों की करते हैं ! हमें ज़रूरत है एक बदलाव की जो स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था – हमें अपनी राज भाषा हिंदी का सम्मान करना चाहिए हमें दुसरे की भाषाओँ का अनुसरण नहीं करना चाहिए बल्कि हमें कुछ ऐसा करना चाहिए की दुसरे हमारी भाषा का अनुसरण करे ” !
आज कल की पीढ़ी को पता नहीं क्या हो गया है कि उन्हें अपनी मातृभाषा नहीं समझ में आती ..ऐसा ही रहा हो हम हमेशा ही पिछलग्गू ही बने रहेंगे…..अब क्या होगा हमारे देश का हे ! भारत माँ अब आप ही कुछ कर सकती हो…!
आपका बहुत ही शुक्रिया जो आपने इस दिशा में कदम बढाया ! इस कार्य में मैं आपका कदम से कदम मिला कर साथ दूंगा ! और मैं गर्व से कह सकता हूँ कि मैं अपनी मातृभाषा का सम्मान कर रहा हूँ ..!
आपका शुभचिंतक
आशीष देहाती
नहीं लिखूंगा कुछ भी . . . कोई फ़ायदा नहीं होने वाला है . . .