-जे पी यादव।।
‘मूंगफली तोड़नी नहीं और पगार छोड़नी नहीं’ के सिद्धांत पर चलने वाला कर्मचारी ही जीवन में सच्चे कामचोर का दर्जा पा सकता है। हालांकि इससे नुकसान होते हैं, लेकिन कामचोरी जैसे परम आनंद के आगे सबकुछ फीका पड़ जाता है। यही काम अगर बॉस की निगरानी, कहने का मतलब शागिर्दी में हो, तो क्या कहना। हनुमंत शुक्ला ऐसे ही बॉस हैं, जिन्हें ‘ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं’ की उपाधि और उपलब्धि इंटर में पढ़ाई के दौरान ही हासिल हो गई थी। नौकरी में आते-आते आलसी भी हो गए। आलसी भी इतने कि सड़क पर उबासी लेने के दौरान कोई बदतमीज चिड़िया अगर बीट कर दे, तो जब तक नगर निगम का कर्मचारी माफी मांगने के साथ उनका मुंह न धुला दे। आगे नहीं बढ़ते। कई बार ऑफिस लेट आने का हनुमंत शुक्ला का यह बहाना मैनेजमेंट के सामने बिलकुल सटीक बैठा है, ‘क्या बताऊं, आज मेरा पैर गऊ माता के द्रव्य प्रसाद पर पड़ गया, इसलिए मीटिंग में नहीं आ सका।’ इस पर कोई यह सवाल भी दाग सकता है, ‘पैर धोकर भी आ सकते थे ऑफिस। भाई कौन ऐसे अपवित्र हो गए थे कि गंगा नहाने जैसा काम करना पड़ा। ‘ … लेकिन बॉस होने के कारण हनुमंत शुक्ला को समझाना हाथी को बाथरूम में नहलाने जैसा है। अगर कोशिश करूं तो हाथी को बाथरूम में नहला भी सकता हूं, लेकिन बॉस को समझाना…। ‘न बाबा ना, क्योंकि बॉस इज ऑलवेज राइट। अगर बॉस अनजाने ही घोड़े को घोड़ी कह दे, तो बॉस को समझाने की बजाय घोड़े का लिंग बदलवाना ज्यादा फायदे का सौदा होता है।
बस यहीं से हनुमंत ने अपने बॉस को मक्खन लगाना शुरू कर दिया। और देखते-देखते वे फिर से आला दर्जे के कामचोर हो गए। जल्द ही ‘मूंगफली तोड़नी नहीं, पगार छोड़नी नहीं’ के सिद्धांत को नैतिक शिक्षा की तरह अपने जीवन में उतार लिया। इस तरह हनुमंत से बॉस और जूनियर दोनों खुश। पिछले तीन साल से वे एक ही जगह टिके हुए हैं, बिना कोई काम किए। साथ में तीन प्रमोशन भी मिल चुका है। हनुमंत को प्रमोशन क्यों और कैसे मिले? यह सवाल कौन बनेगा के लिए सुरक्षित है, जिसमें प्रतियोगी से सवाल किया जाएगा। हनुमंत शुक्ला को प्रमोशन को प्रमोशन किस आधार पर मिला?
ऑप्शंस
ए- चाटुकारिता
बी- चमचागिरी
सी- मक्खनबाजी
डी- इनमें से सभी
इस अंतिम सवाल का सही जवाब देकर एक प्रतियोगी करोड़पति हो जाएगा।
खैर, अब हनुमंत शुक्ला के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए उनके जूनियर भी चमचागिरी के नए पायदान चढ़ रहे हैं। और जो नहीं चढ़ रहे हैं, उन्हीं के दम से ऑफिस की इज्जत बची पड़ी है। वरना हनुमंत अपने बॉस की नजर में कुख्यात कर्मी हैं और उन्हें दो बार सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी का खिताब भी मिल चुका है। दरअसल, हनुमंत काम करने के दौरान काम चालू रखने का ऐसा माहौल तैयार करते हैं और इस दौरान खूब शोर करते हैं। इस गलती पर इस चीखे, उस गलती पर उस पर चीखे… यह सब करने के दौरान काम ठप पड़ जाता है। इससे साथी कर्मियों और मैनेजमेंट को लगती है कि यही शक्स काम कर रहा है, बाकी सब कामचोर हैं। उन्होंने जो कुछ अनुभव किया, सब अपने जूनियरों को भी सिखा दिया। सीखने-सिखाने का सिलसिला जारी है।
आज ही की घटना को लीजिए। आज हनुमंत शुक्ला ऑफिस में लेट आए। उनके साथी सक्सेना जी ने कहा, ‘सर आपको याद कर रहे हैं।’ हनुमंत भी मूड में थे, सो झनझनाती जवाब भी दे दिया। ‘याद स्वर्गीय को किया जाता है, हम तो अभी जिंदा हैं सक्सेना। सर मुझसे मिलना चाहते होंगे।’ ‘ हां-हां’ कहते हुए सक्सेना हनुमंत के सेंर ऑफ ह्यूमर को ताड़ गए और बेवजह ही ठहाका मार कर हंस पड़े।
उधर, हनुमंत बॉस के कमरे में 12.20 मिनट पर बदहवास दाखिल हुए और बोले, ‘सर गुड मॉर्निंग’ यह सुनकर बॉस को गुस्सा आया, आटे में नमक की तरह। यहां तक तो ठीक था, लेकिन वाटर प्रूफ से लैस बॉस के हाथ में बंधी घड़ी, भरी दोपहरी में 12.20 मिनट पर ‘सर गुड मॉर्निंग’ सुनकर पानी-पानी हो गई, गनीमत रही कि खराब नहीं हुई।
इस बीच सुपर बॉस बोले, ‘क्या इरादा है’ हनुमंत तुरंत बोल पड़े, ‘सर सेलरी मिलते ही गर्मी की छुट्टियों में घूमने जाने का इरादा है।’ यह सुनते ही सुपर बॉस की आंखों में चमक आ गई। बोले, ‘ भई हनुमंत मेरे बीवी, बच्चों का भी टिकट करवा देना। मैं भी तुम्हारे साथ चला चलूंगा।’



‘ हो जाएगा सर’। यह कहते हुए हनुमंत सुपर बॉस के केबिन से बाहर निकले और काम में तल्लीन सक्सेना जी को टोकते हुए कहा, ‘सक्सेना जी मैं कुछ दिनों के लिए छुट्टियों पर जा रहा हूं, ऑफिस की जिम्मेदारी मुझ पर है।’
इतना कहने के साथ ही हनुमंत शुक्ला ऑफिस से ऐसे गायब हो गए, जैसे दिन में तारे। ठीक 5 मिनट बाद अपने केबिन से निकले और काम में तल्लीन सक्सेना जी को बिना कोई आदेश दिए निकल गए। सक्सेनाजी ठगे से रह गए। साथियों ने सक्सेना से सहानुभूति जताने की बजाय उन्हें हिकारत भरी नजर से देखा और सभी बाहर निकल गए सुपर बॉस के साथ हनुमंत शुक्ला को हैप्पी जर्नी कहने…
जे पी यादव एक नवोदित व्यंगकार हैं। उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।
I am working in icici Bank hamare yahe per bhe chamcho ki kami nahi ha. per mare khoon me chamcha giri nahi hai.
Aman Kumar
8802315447
सरजी यही सत्य है, आजकल सभी दफ्तर चमचो से भरे पड़े है, इसी लिए नोकरी कर रहे है, बहुत अच्छा लगा आपका लेख ……!!!!!!!!!!!
J.P. BHAI BAHOOT KHOOB. AAJKAL HAR OR ISI KA BOLBALA HAI. BAHOOT KHOOB.
Thanks & Regards:
R N YADAV
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AFC-PROJECT,NFL,PANIPAT
Mob:-+918930900936
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आपने वहुत अच्छा लिखा है सर कीप एट उप
J. P. sahab aapne bahut hi achha likha hai…..you are right….
आपका लेख आज के सन्दर्भ में बिलकुल सटीक बैठता है और मैं कामना करता हूँ की बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी.
बहुत अच्छा लिखा है सर …….धन्यवाद्
SIR JE PRANAM
BAHUT ACHA
ANAND KUMAR
MAU
J.P. BHAI BAHOOT KHOOB. AAJKAL HAR OR ISI KA BOLBALA HAI. BAHOOT KHOOB.
यादव जी एकदम मजा आ गया. आप वाकई में बहोत ही उम्दा किस्म के लेखक हैं.
मनोज यादव