– आशीष सागर दीक्षित||
आज विश्व पर्यावरण दिवस है. चलिए एक बार फिर सरकारी मिशनरी के कागजी आंकड़ों को देख लिया जाय. क्योकि फलसफा ये ही है. इस दिवस के बाद हमें वैसे भी पर्यावरण को भूलकर अपने कंक्रीट के जीवन में रमते जाना है. उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र पानी के संकट , पहाड़ो के खनन से तरबतर है और जंगल में वनविभाग का कब्ज़ा है. यह तीनो ही पारिस्थितिकी तंत्र के मूल घटक है. आमजन की दिनचर्या का बेस आधार इनसे ही होकर गुजरता है. जहाँ पहाड़ ज़मीन के पानी को पम्प करके से ऊपर लाते है तो वही मानसून की हवाओ को बदल में तब्दील करने के भी ये बड़े कारक है. जंगल यानि पेड़ से ही वायु मंडल आक्सीजन से भरता है.
बुंदेलखंड की जब भी चर्चा होती है आँखों में सूखा जनित , बंजर होते खेत का बदरंग नजारा सामने आता है. “ गगरी न फूटे , चाहे खसम मर जाये “ यही सच है इस ठेठ सुखी हिंदी पट्टी का. हर साल लगाये जाने वाले हरे – भरे पोधे कहाँ खोते चले जा रहे है इसकी कहानी भी समझ से परे है.
वित्तीय वर्ष 2014 – 15 में शासन ने चित्रकूट मंडल के चार जिलो में 4466 हेक्टेयर भूमि में 29 लाख , 2 हजार, 900 पौध रोपण का लक्ष्य रखा है. गत वर्ष 3040 हेक्टेयर भूमि में 23 लाख 81 हजार पौधे वन विभाग ने लगाये थे. चार जनपद में जिनमे बाँदा , चित्रकूट , महोबा और हमीरपुर है. इस वित्तीय वर्ष में बाँदा में 256 हेक्टेयर पर 1,66,400 लाख , हमीरपुर में 1548 हेक्टेयर में 10,6,200 पौध , महोबा में 701 हेक्टेयर में 12,074,650 पौध रोपित किये जाने है. वन विभाग का ये भी दावा है कि हमने पिछले वर्ष लक्ष्य से अधिक 3635.85 हेक्टेयर भूमि में 24 लाख 91 हजार 501 पौधे लगाये थे. लेकिन जब भी सूचना अधिकार में समाजसेवी लोगो ने इनके लगाये जाने का स्थान पूछ लिया तो उत्तर नदारद मिला.
उल्लेखनीय है कि पूर्व बसपा सरकार में समस्त उत्तर प्रदेश में 100 दिन के काम का अधिकार अभियान में मनारेगा योजना से अकेले बुंदेलखंड के 7 जनपद में ही 10 करोड़ पोधे अलग से लगाये थे. तत्कालीन प्रदेश के ग्राम्य विकास मंत्री दद्दू प्रसाद के सानिध्य में उनकी चहेती संस्थाओ को इनके ठेके दिए गए और यह पोधे अब कहाँ लगे इसका जवाब वनविभाग के पास नही है. राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार 33 % वन क्षेत्र किसी भी जिले में उपलब्ध भूमि के सापेक्ष वन आवश्यक है. बुंदेलखंड में 1441 वर्ग किलोमीटर भूमि परती है जिस पर कोई कृषि कार्य नही होता है. बुंदेलखंड में वनविभाग के हर वर्ष किये जा रहे पौध रोपण अभियान पे सूचना अधिकार से जुटाए गए आंकड़ो के बाद अध्यनन करने पर पड़ताल का मुलम्मा ये निकलता है कि यहाँ बाँदा में 1.21 %,महोबा में 5.45 %,हमीरपुर में 3.6 %, झाँसी में 6.66 % , चित्रकूट में 21.8 % , जालोन में 5.6 %, ललितपुर में 7.5 % मात्र वन क्षेत्र शेष है. यानि 10 फीसदी भूमि में भी वन नही बचे है. हर साल लगने वाले यह पौधे किस रसातल में समा जाते है यह वनविभाग ही जाने. हाँ इनके नाम पर लाखो का बंदरबाट अवश्य होता है. यदि इनकी सीबीआई से जाँच करवा ली जाये तो कई आला अफसर जेल के अन्दर होंगे.
वित्तीय वर्ष 2005 से 2012 तक लगाये गए पौधों का ब्यौरा –
जनपद पौध रोपण लाख में खर्च किया गया धन लाख में
बाँदा 37.84 2533.85 लाख रूपये
चित्रकूट 43772443 2533.85
महोबा 43772443 2533.85
हमीरपुर 16733780 2533.85
जालोन 9865952 4394.963
झाँसी 45009461 5496.963
योग 159154117 20027.326 लाख
इतनी बड़ी धनराशि भ्रष्टाचार में डूब गई मगर बुंदेलखंड को हरियाली नही मिली. ये अहम् सवाल है सरकारी आला अफसरों से जो एक दिन का पर्यावरण दिवस कार्यशाला मनाकर इतिश्री कर लेते है.