-नीतीश के सिंह||
पांच दिन पूर्व 26 मई को नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी. इसके साथ ही देश उम्मीदों से सराबोर हो गया. प्रधानमंत्री कार्यालय से आने वाली सबसे पहली खबर धारा 370 को हटाने की कवायद शुरू करने के बारे में थी. राज्यमंत्री जीतेन्द्र सिंह ने मीडिया को दिए अपने पहले बयान में ये साफ़ कर दिया कि भाजपा और सरकार की नीति जम्मू और कश्मीर को लेकर काफी स्पष्ट है. पार्टी वहाँ पर लागू होने वाले प्रतिबंधो से काफी नाखुश है और वो वहाँ कॉर्पोरेट जगत के लिए दरवाज़े खोलने को आतुर है.
शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्ष आये थे जिससे ये उम्मीद की जा रही थी कि भारत अपने पडोसी देशों के साथ एक बेहतर सम्बन्ध बनाने की दिशा में कोई घोषणा करेगा. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं और बात सिर्फ कश्मीर पर आतंरिक बहस में सिमट कर रह गयी.
बीते पांच दिनों में कॉर्पोरेट जगत में भी घटनाक्रम अनअपेक्षित ही रहे जब रिलायंस ने नेटवर्क 18 का अधिग्रहण कर लिया. चुनाव के पहले से ही इसकी अपेक्षा थी और औपचारिक रूप से इंतज़ार किया जा रहा था इस अधिग्रहण की घोषणा का और इसकी शर्तों का. इस बीच सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में पूर्ण रूप से ऍफ़ डी आई लागू करने की बात कह कर सबको चौंका दिया.
अभी न्यूज़ मीडिया में 26% और मनोरंजन में 100% की निवेश की अनुमति है. इससे पहले रक्षा खेत्र में भी एफडीआई लाने की बात हो चुकी है. भाजपा के लिए सीधे विदेशी निवेश का समर्थन उसके अब तक के व्यव्हार से अलग है. भाजपा इससे पहले ऍफ़डीआई की ज़ोरदार विरोधी रही है.
मंत्रिमंडल में मंत्रियों को मंत्रालय के बटवारे के साथ ही एक और विवाद सामने आया जब स्मृति ईरानी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय दिए जाने पर प्रधानमंत्री को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. विवाद की जड़ में शिक्षा मंत्रालय रहा जिसे स्मृति ईरानी को दिए जानी की खूब आलोचना हुयी. गौरतलब है कि स्मृति ने दो अलग अलग हलफनामों में अपनी शैक्षिक योग्यता अलग अलग बताई है. इसी तरह गोपीनाथ मुंडे की डिग्री फर्जी होने सम्बन्धी दस्तावेज़ सामने आये हैं.
मंत्रालय के बटवारे के फैसलों पर अभी रार ठंडी नहीं पड़ी थी कि सरकार ने यूपीए सरकार के एक विवादित फैसले जिसमे पेट्रोलियम की कीमतें हर महीने बढ़ाई जानी थी, को बदलने से इनकार करते हुए इसे बरक़रार रखने का निर्णय लिया और एक जून से कीमतें पूर्ववत बढ़ाये जाने की दिशा में मुहर लगा दी.
इस तरह मोदी सरकार के पहले पांच दिनों में कोई विशेष छाप छोड़ने वाला निर्णय नहीं लिया गया है. चिन्तक जगदीश चतुर्वेदी के शब्दों में कहें तो मनमोहन सरकार के डीएनए अगली सरकार में भी स्थानान्तरित हो गए हैं. भाजपा ने जिन मुद्दों का विरोध कर के चुनाव लड़ा था अब सरकार बनाने के बाद लगभग यू टर्न की स्थिति में है और पुरानी सरकार की कार्यशैली अपना रही है. फ़िलहाल तो यही कहा जा सकता है – पूत के पाँव पालने में दिख रहे हैं.
वाह,लेखक महोदय ने पांच दिन के कार्य के आधार पर घोषणा कर दी कि यह सरकार क्या करेगी इतना शीघ्र मूल्यांकन तो विपक्षी दल भी नहीं कर सके जो आपने कर दिया भारतीयों की यह विशेष बात है किहम बदलाव करने वाले से सब कुछ , कुछ घंटों में ही करा लेना चाहते हैं एक पार्टी को हम साठ साल देते हैं ,कुछ पूछते भी नहीं लेकिन बदलाव के लिए कोई दूसरा आया है तो उससे हर घडी,हर काम का हिसाब मांगने ,व उसमें मीन मेख निकलाना शुरू कर देते हैं यह मात्र खिन्नता है या फिर दल विशेष के प्रति झुकाव की वजह से पूर्वाग्रहिता