बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी भोपाल से लोकसभा का टिकट न मिलने से एक बार फिर ‘कोप भवन’ में चले गए हैं और कथित तौर पर उनका नरेंद्र मोदी से मतभेद गहरा गया है. इसी के साथ पार्टी ने एक बार फिर उन्हें मनाने की कोशिशें तेज कर दी हैं.
बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी गुरुवार सुबह उन्हें मनाने पहुंचे. दोनों की मुलाकात करीब एक घंटे तक चली, जिसके बाद मोदी वहां से रवाना हो गए. इसके थोड़ी ही देर बाद लोकसभा में नेता विपक्ष सुषमा स्वराज आडवाणी के घर पहुंच गईं. इन मुलाकातों में क्या चर्चा हुई, यह पता नहीं लग पाया है.
बताया जा रहा है कि आडवाणी मध्य प्रदेश के भोपाल से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन बुधवार को बीजेपी ने उन्हें गांधीनगर से उम्मीदवार घोषित कर दिया. ऐलान के तुरंत बाद सुषमा स्वराज और पूर्व पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी आडवाणी के घर उन्हें मनाने पहुंच गए. लेकिन सूत्रों की मानें तो आडवाणी नहीं माने. यह मुलाकात करीब 45 मिनट तक चली. आडवाणी से मुलाकात के बाद सुषमा और गडकरी राजनाथ से मिले और आडवाणी की नाराजगी से अवगत कराया.
बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति की दिन भर चली बैठक में आडवाणी के मामले पर विचार-विमर्श के बाद यह फैसला किया गया और इस बैठक से आडवाणी यह कहते हुए गैर हाजिर रहे कि वह अपने निर्वाचन क्षेत्र से जुड़े मामले पर चल रही चर्चा में शामिल होना नहीं चाहते थे.
सूत्रों के मुताबिक, आडवाणी ने पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को संदेश भिजवा दिया था कि वह आगामी लोकसभा चुनाव गांधीनगर की बजाय भोपाल से लड़ना चाहते हैं. हालांकि गांधीनगर सीट का वह लोकसभा में पांच बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. आडवाणी इस बात पर अड़े हुए थे कि उन्हें कई अन्य नेताओं की तरह अपनी पसंद के निर्वाचन क्षेत्र का चुनाव करने का अधिकार होना चाहिए क्योंकि कई अन्य नेताओं को भी उनकी पसंदीदा सीटें दी गई हैं.
Vo duvidha me koi nirnaya nahi le pa rahe hai kee sahi kya hai or galat kya hai
अब तो अडवाणी गांधीनगर से चुनाव लड़ने के लिए मान गए हैं पर जिस तरह से उन्होंने यह ड्रामा शुरू किया उससे उनकी व पार्टी दोनों कि छवि धूमिल हुए है.बेहतर होता कि वे शुरू से इस बात पर निर्णय ले अपना बड़प्पन दिखाते. अच्छा तो यह होता कि वे चुनाव से दूर ही रहते और संगठन को परामर्श देते. पर पी ऍम बन्ने की उनकी लालसा ने उनके पिछले सारे कॅरिअर को नष्ट कर दिया.
अब तो अडवाणी गांधीनगर से चुनाव लड़ने के लिए मान गए हैं पर जिस तरह से उन्होंने यह ड्रामा शुरू किया उससे उनकी व पार्टी दोनों कि छवि धूमिल हुए है.बेहतर होता कि वे शुरू से इस बात पर निर्णय ले अपना बड़प्पन दिखाते. अच्छा तो यह होता कि वे चुनाव से दूर ही रहते और संगठन को परामर्श देते. पर पी ऍम बन्ने की उनकी लालसा ने उनके पिछले सारे कॅरिअर को नष्ट कर दिया.