पिछले साल बर्लिन फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अदाकार का अवार्ड जीतने वाले बोस्नियाई अभिनेता को शरणार्थी के तौर पर जीना पड़ रहा है. उसे अवार्ड मिला, काम नहीं.
नजीफ मुजिच, बर्लिन फिल्म महोत्सव के दौरान लाल कालीन पर चल चुके हैं. सुर्खियां बटोर चुके हैं. उन्हें सिल्वर बीयर भी मिल चुका है. लेकिन आज वह जर्मनी की राजधानी बर्लिन की बाहरी सीमा पर शरणार्थियों के लिए बने घरों में अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं.
1992-95 के बोस्निया युद्ध के पूर्व सैनिक मुजिच को उम्मीद थी कि इस फिल्म “एन एपिसोड इन द लाइफ ऑफ आयरन पिकर” से उनके लिए एक्टिंग में नए दरवाजे खुलेंगे लेकिन भारी पीठ दर्द और डायबिटीज के कारण उन्हें कोई ऑफर नहीं मिला.
पिछले नवंबर उन्होंने तय किया कि वह उसी शहर लौटेंगे जहां उन्हें शोहरत मिली. कुल 250 यूरो के टिकट के साथ 24 घंटे की यात्रा के बाद वह बर्लिन पहुंचे. लेकिन यहां मुश्किलें उनका इंतजार कर रही थीं. उनका शरणार्थी आवेदन अस्वीकृत कर दिया गया. उन्हें अब डिपोर्ट किया जाना है.
(समाचार एजेंसी एएफपी की खबर)
(वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र बोरा की फेसबुक वाल से)