पिछले दो साल में लगातार पांच ऐसे फैसले आये है जब सबूत के अभाव में नरसंहार के आरोपियों को पटना उच्च न्यायालय द्वारा बरी किया गया है.
पिछले सप्ताह पटना उच्च न्यायालय द्वारा बिहार के खगड़िया जिले के अमौसी नरसंहार के सभी 14 आरोपियों को बरी कर दिया गया. इन 14 आरोपियों में से 10 को खगड़िया जिला अदालत ने सज़ा-ऐ-मौत की सज़ा सुनाई थी. 2009 में हुए इस नरसंहार में पिछड़ी जाति के 16 लोगो की हत्या कर दी गई थी. पीड़ितों को उम्मीद थी कि उन्हें न्याय अवश्य मिलेगा लेकिन सबूत के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया. शुक्रवार को जब पटना उच्च न्यायालय ने खगड़िया जिले के अमौसी नरसंहार के आरोपियों को बरी किया को तो चौकना लाज़मी था. क्योंकि लगातार ऐसे फैसले आ रहे है जब नरसंहार के आरोपियों को उच्च न्यायालय ने ‘सबूत’ के अभाव में बरी कर दिया है.
अक्टूबर 2013 में लक्ष्मणपूर बाथे नरसंहार के सभी 26 आरोपियों को पटना के उच्च न्यायालय द्वारा बरी कर दिया गया था. 1 दिसम्बर 1997 को प्रतिबंधित रणवीर सेना द्वारा 58 दलितों की हत्या कर दी गई थी जिसमे 27 औरते और 16 बच्चे शामिल थे प्रतिबंधित रणवीर सेना के करीब 100 सदस्यों ने जहानाबाद के लक्ष्मणपुर बाथे गाँव में नरसंहार को अंजाम दिया था. इस मामले में विशेष अदालत ने 7 अप्रैल 2010 को 26 आरोपियों को सज़ा सुनाई थी जिसमे 16 को फांसी और 10 को उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई थी और 19 आरोपियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया गया था.
3 जुलाई 2013 को औरंगाबाद जिले के मियांपुर नरसंहार मामले में पटना उच्च न्यायालय ने निचली अदालत से उम्रकैद की सज़ा पाए 10 आरोपियों में से 9 को सबूत के अभाव में बरी कर दिया था बस 1 की सज़ा बरक़रार रखी गई थी. 16 जून 2000 को औरंगाबाद के मियांपुर में नरसंहार हुआ था, जिसमे 32 पिछड़ी जाति के लोगो की हत्या की गई थी ये सेनारी कांड के बदले के तौर पर की गई थी.
मार्च 2011 को पटना उच्च न्यायालय निचली अदालत के फैसले पलटते हुए नगरी बाज़ार नरसंहार के सभी 11 आरोपियों ने सबूत के अभाव में बरी कर दिया. 1998 में भोजपुर के नगरी बाज़ार नरसंहार को प्रतिबंधित रणवीर सेना ने अंजाम दिया था जिसमे 11 दलितों की हत्या कर दी गई थी.
इन नरसंहारो में एक भी अभियुक्त को सज़ा नहीं मिलना बिहार सरकार और बिहार पुलिस पर गंभीर सवाल करते है ये फैसले बिहार सरकार के उन सभी दावों को खोखला साबित करते है जिसमे बिहार पुलिस महकमा सभी प्रकार के अनुसंधान से न्याय दिलाने की बात करता है. इन सभी मामलो में निचली अदालत ने अभियुक्तों को सज़ा सुनाई थी. सज़ा तो बिना साक्ष्य के नहीं सुनाई होगी आखिर वो साक्ष्य कहाँ गए. इससे पुलिस पर गंभीर सवाल खड़े होते है. साक्ष्य और अनुसंधान के कारण बिहार सरकार गरीबो, दलितों और कमजोर वर्गों को न्याय दिलाने में असफल हो रही है. ताकतवर आरोपी न्यायालय से बरी होते जा रहे है. इन मामलों में सभी आरोपी अगर निर्दोष थे, तो आखिर दोषी कौन है? जब नरसंहार में हत्याए हुई तो कोई-ना-कोई तो हत्यारा होगा. इतने वर्षो में पुलिस हत्यारों तक क्यों नहीं पहुंच पाई? वैज्ञानिक अनुसंधान का दावा करने वाली पुलिस पर्याप्त साक्ष्य क्यों नहीं जुटा पाई?