40 साल का छोटेलाल, जो कि लखीमपुर जिले के नीमगाँव थाने के पकरिया गाँव का रहने वाला था, से उसकी पत्नी बोली,” आखिर कब तक दिलासा दिलावत रहियो जब नाय खियावे केर बुता रहे तो कान्हे ई तीन तीन पैदा कर दियो. ऊ समझावत रहा अब मिल खुलेवाली है अईसन प्रधान जी बताईन हैं . कब तक अईसे झूठे असरा दिहो अब हम थक गयेन हैं ई लरिकन का कई से समझाई”.
पत्नी की बात सुन के वह घर से निकला गाँव के पूरब चलता जा रहा और एक ही बात उसके दिमाग में थी पहले समाज के उच्च जाति के लोगों ने पासी जाति के कारण जिन्दगी भर अपमानित किया. सरकार आयी तो लगा की समानता आ जायेगी. नाम बदले लेकिन किस्मत वही थी. आखिर में वही आम का पेड़ उसका साथी बना और वही तहमद और गर्दन में तहमद का फंदा डाल आम के पेड़ पर लटक गया. फिर चीख पुकार मचने लगी.
फिजा में अजीब सी ख़ामोशी और सवाल वही पर घर वाले कह रहे हैं व्यक्तिगत समस्या है . प्रशासन कह रहा है कोई बकाया नही है. सवाल वही का वही है एक किसान या मजदूर के लिए जरुरी क्या गन्ने का बकाया ही है. पूरी स्थिति को थोडा विस्तार से समझते हैं. लखीमपुर खीरी जिला तराई क्षेत्र है यहाँ पर शारदा, घाघरा, गोमती, सरयू, जौहरा, सहित 10 बड़ी छोटी नदिया हैं.
यहाँ की खेती का बड़ा हिस्सा इन्ही खेतों के किनारों पर स्थित है. बाढ़ एक विकट समस्या है यहाँ की. इसलिए किसान के पास गन्ना बोने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नही है क्योंकि गेहूं और तिलहन के सिवा धान की फसल बहुत मुश्किल या नामुमकिन सी है. जिले में गन्ने पर निर्भरता इससे भी समझा जा सकता है कि 8 जनपद में और पडोसी जनपद की दो चीनी मिले मिलकर भी यहाँ के गन्ने की फसल को खपत नही कर पाते.
मज़बूरी वश किसान गन्ना बोता है. फ़सल का पिछला बकाया मिला नही चीनी मिल इस वर्ष शुरू नही हुयी. मजदूर जानवर किसान सब इसपर निर्भर ऊपर से गेंहूँ बोनें के लिए किसान कोल्हू पर 80 रूपये में गन्ना बेचने को मजबूर है जो उसकी लागत मूल्य से भी काफी कम है.