दिल्ली में चुनावी समर अपने पूरे उफ़ान पर है। कुछ ही दिनों में दिल्ली के मतदाता अपने मतदान से चुनावों में हिस्सा ले रहें उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे। दिल्ली में मुख्य तौर पर चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच होते आए है। लेकिन इस मर्तबा आम आदमी पार्टी के चुनावी मैदान में कूदने से मुक़ाबला त्रिकोणीय होता नज़र आ रहा है।
किसी फिल्म के नायक की तरह बुराई के खिलाफ़ बिगुल बजाने की कसमें खाते हुए जिस साफ़ सुथरी राजनीति की बातें करते हुए ‘आप’ मैदान में उतरी उससें भाजपा और कांग्रेस दोनों पर दबाव बना। माना जाता है कि इसी दबाव के चलते भाजपा ने चुनाव से एन वक़्त पहले बीजेपी की तरफ़ से पार्टी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे विजय गोयल को ठेंगा दिखाकर साफ़ सुथरी छवि वाले हर्षवर्धन को मौका दिया। अब एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के आंकड़ों ने साफ़ सुथरी सरकार देने के बीजेपी के दावों की पोल खोल दी है। 2008 में जहां पार्टी ने 35 फीसदी आपराधिक छवि के उम्मीवार बनाए थे वही इस दफ़ा ये आंकड़ा बढ़कर 46 फीसदी पहुंच गया है।
दूसरी तरफ़ कांग्रेस और बीएसपी ने पिछली बार के मुक़ाबले कम आपराधिक छवि वाले लोगों को टिकट दिया है। ऐसा नहीं है कि ‘आप’ के उम्मीदवारों पर एक भी मामला दर्ज़ नहीं है। पार्टी के 7 उम्मीदवारों पर केस दर्ज़ है। एडीआर के मुताबिक चुनावी जंग लड़ रहे 796 उम्मीदवारों में से 129 यानी 16 फीसदी उम्मीदवार ऐसे हैं जिन्होंने अपने ऊपर आपराधिक मामलों का ब्यौरा दिया है। 2008 के चुनावों में 14 फीसदी उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज़ थे। 93 प्रत्याशियों के ऊपर हत्या का प्रयास, डकैती और महिलाओं के खिलाफ़ गंभीर अपराध के मामले दर्ज़ हैं। बीजेपी के 68 में से 31 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज़ हैं। कांग्रेस के 70 में से 15 पर, बसपा के 67 में से 14 पर मामले दर्ज़ है। आम आदमी पार्टी के 70 में से पांच उम्मीदावारों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किए हैं। पार्टी के जिन नेताओं पर आपराधिक मामले दर्ज़ हैं उनमें अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसौदिया और शाज़िया इल्मी जैसे नाम हैं जिनपर आंदोलन के दौरान केस लगाए गए। पार्टी ने राजौरी गार्डन से अपने उम्मीदवार प्रीत पाल सिंह सलूजा का टिकट वापस ले लिया है क्योंकि उनके खिलाफ़ घरेलू हिंसा का केस है जबकि ये जानकारी उन्होंने पार्टी से छुपाई थी।