“जमशेदपुर के टाटा स्टील प्लांट में गुरुवार दोपहर सवा 3 बजे के आस पास एक ऐसा धमाका हुआ कि शहर में दूर तक इसकी गूंज सुनी गई, ऐसा लगा कि भूकम्प आया है…हम लोग दौड़ कर सीधे प्लांट की ओर भागे लेकिन प्लांट के अंदर जाने की इजाज़त किसी को नहीं होती है…हम अस्पताल पहुंचे और इस धमाके लगभग पौन-एक घंटे बाद मरीज़ वहां पहुंचने शुरु हुए…जबकि अस्पताल की दूरी उस जगह से महज 3 किलोमीटर के लगभग है…” ये बयान है जमशेदपुर के एक पत्रकार का, जिन्होंने ऑन द रेकॉर्ड कुछ भी कहने से मना किया, और किसी भी बात की पुष्टि नहीं की लेकिन सवाल जस के तस हैं कि आखिर टाटा स्टील के प्लांट में गुरुवार दोपहर क्या हुआ था?
आखिर क्या था ऐसा जिसके कोई बड़ा हादसा न होने के बावजूद टाटा को तुरत-फुरत में आधिकारिक बयान जारी करना पड़ा? आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि बिल्ली और कुत्ते के सड़क हादसे को ख़बर बना लेने वाले समाचार चैनल और अंदर के पन्नों पर चेन स्नैचिंग और सड़कछाप झगड़ों को भी जगह देने वाले सारे अखबार इस दुर्घटना को पचा गए? क्या अगर टाटा के मुताबिक सिर्फ 15 लोग भी घायल हुए थे तो भी क्या ये ख़बर नहीं थी? क्या आंधी-पानी और सर्दी-गर्मी को भी शहर और देश पर आफ़त का मौसम बता कर पूरे पूरे स्पेशल प्लान कर लेने वाले टीवी चैनल, क्या आफ़त की बारिश और मुसीबत के बादल जैसे बुलेटिन चलाने वाले चैनल, 2012 में धरती के अंत से लोगों को डरा देने वाले टीवी समाचार चैनल्स के लिए, टाटा के स्टील प्लांट में ज़हरीली गैस लीक हो जाना आने वाले बड़े ख़तरे का संकेत नहीं था? क्यों आखिर ये तथ्य भुला दिया गया कि इसी प्लांट में गैस लीक से 2008 में एक मजदूर की जान गई थी और फिर से गैस लीक कहीं जमशेदपुर को भोपाल तो नहीं बना देगी? क्या अगर कोई मौत नहीं भी हुई है तो भी ये साफ इशारा नहीं है कि इस ख़बर को मुख्यधारा का मीडिया डाउनप्ले कर रहा है?
जमशेदपुर के ही एक पत्रकार का कहना है, “साहब हम लोग तो बारूद के ढेर पर बैठे हैं, किसी दिन संभला नहीं तो जमशेदपुर भोपाल बन जाएगा” लेकिन ज़ाहिर है मामला टाटा का है और जब उनके सम्पादकों की ख़बर दिखाने की हिम्मत नहीं है तो फिर वो अपना नाम ज़ाहिर होने देने का दुस्साहस कैसे कर सकते हैं, उनको उसी शहर में रहना है और जमशेदपुर में रह कर टाटा से बैर… लेकिन सवाल दरअसल ये है कि अगर 2008 में भी ऐसा ही एक हादसा हो चुका है तो फिर इस बार हुए इस हादसे को गंभीरता से लेने की बजाय इस ख़बर को दबाया क्यों जा रहा है?
गुरुवार की शाम को इस हादसे के तुरंत बाद एक पोर्टल पर इस ख़बर की ट्वीट शेयर की गई, जिसमें आर्मी बुलाए जाने और 15 लोगों के मारे जाने की ख़बर थी, ख़बर कुछ वेबसाइटों और फेसबुक-ट्विटर पर सक्रिय कुछ साथियों के माध्यम से आई…
लेकिन ख़बर को मुख्यधारा के मीडिया पर लगातार अंडरप्ले किया जाता रहा…टाटा की ओर से आधिकारिक बयान में कह डाला गया कि सिर्फ 12-15 लोग घायल हुए हैं… लेकिन जब हम दोबारा उन वेब पेजेस पर गए, तो हम ने पाया कि वो पेज ही लुप्त हो गए हैं…और उनकी जगह दूसरी ख़बर डाल दी गई है…तमाम वेबसाइट्स से ख़बर अचानक गायब हो जाने और मेन स्ट्रीम मीडिया के इसे बिल्कुल तूल न देने के पीछे की वजह क्या हो सकती है पता नहीं…लेकिन विश्वस्त सूत्रों की मानें तो ये बड़ा हादसा है…और इसे दबाने के लिए काफी दबाव है…हम दो वेबपेज के स्नैपशॉट्स दे रहे हैं…आप इनको देखें…
inagist.com/all/400949721378070528/?utm_source=inagist&utm…rss
इस लिंक पर अब जाने पर ये अनुपलब्ध बताता है…जबकि अब इसकी जगह खुलता है
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चलिए मान लीजिए टाटा का बयान ही सच है…जमशेदपुर प्लांट में हुए धमाके में किसी की जान नहीं गई, सिर्फ 5 लोग घायल हैं…लेकिन ये भी सच है कि इसी प्लांट में 2008 में इस प्लांट में हुए हादसे में एक कर्मचारी की जान भी गई थी…लेकिन टाटा के खिलाफ ख़बर कैसे चल सकती है, टाटा के प्लांट में कमियों की ये ख़बर संभवतः वैसे ही छुपाई जा रही है, जैसे कि डाउ केमिकल्स के भोपाल प्लांट की सुरक्षा खामियों पर पर्दा डाला गया था। जाहिर है टाटा न केवल सरकारें चलाता है, बल्कि टीवी चैनल्स को 20 बड़े ब्रांड्स के विज्ञापन देता है और साथ ही टाटा का 21वां ब्रांड हैं पीएम इन वेटिंग 2 नरेंद्र मोदी। ऐसे में सरकार समेत मीडिया कोई भी टाटा के बारे में नेगेटिव ख़बर चलाने का दुस्साहस कैसे कर सकता है? सम्पादकों की सेमिनार्स और प्राइम टाइम में कही जाने वाली बड़ी-बड़ी बातों पर अगर आप जाते हैं तो ये आपकी समस्या है…
ज़ाहिर है कि इस ख़बर को जान कर अंडरप्ले किया गया है, इस ख़बर को टिकर पर चला कर खत्म कर दिया गया। ये वो टीवी चैनल्स है, जो कानपुर की किसी मंडी में लग जाने वाली आग को दिन भर दिखाते हैं लेकिन इस ख़बर पर सब को सांप सूंघ गया है। जल्दी ही इस घटना की उपलब्ध फुटेज जो समाचार चैनलों ने नहीं चलाई भी उपलब्ध होगी और लोगों के सामने होगी…हां, वैकल्पिक मीडिया के ही ज़रिए क्योंकि वैकल्पिक मीडिया ही संभवतः कारपोरेट और सरकार के इस नेक्सस को तोड़ने का आखिरी विकल्प है, मुख्यधारा का मीडिया तो इसी नेक्सस का हिस्सा है।
अगली किस्त का इंतज़ार करें…
फोटुओ को केक खिलाकर जन्मदिन और जश्न मानते मुर्ख,
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नेताओ, अभिनेताओ और खिलाड़ियो के जन्मदिन पर उनके फोटो को केक खिलाते हुए अखबारो में छपे फोटो देखकर मुझे इन मूर्खो पर हंसी आती है,ऐसा करने वाले अनपढ़ कम और पढ़े -लिखे ज्यादा होते हैं,जो खुद अपनी मूर्खता दुनिया के सामने पेश करते हैं,,,अपने नेता,हीरो,और खिलाड़ी के जन्मदिन मानाने के बहुत से तरीके हैं,,,जाने क्यूँ लोग यही मूर्खतापूर्ण तरीका अपनाते हैं,,,,ये ज़हालत देखकर तो मुझे यक़ीन ही नही होता कि हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं,,,,,,,,
"""""अतीक अत्तारी""""
आज के इस दौर में मीडिया पर जनता सबसे जायदा भरोसा करती है लेकिन जब मीडिया जमशेदपुर जैसी घटनाओं पर चुप हो जाती है और अपना मुह सील लेती है तो जनता किस पर भरोसा करे मैं भी एक मीडिया से जुड़ा वयक्ति हूँ अगर हो सके तो मीडिया के ठेकेदारों आप सच का आइना दिखाओ
sir is se media walon ke llalach or auchi mansikta ka pata chalta hai
Ye mera desh Bharat,isse bhramo me jeene ki maharath.. rupyo k liye ye kuchh b kar sakta hai.. chenals kya akhbaar kya,social media kya,sab bike huye hain,bhadbhunje.. fir b koyi h jo jaise taise desh desh ghisit raha hai.. shayad Bhagvan bharose..!