-आलोक पुराणिक||
मुंबई के एक फिल्म-सीरियल डाइरेक्टर से बात हो रही थी. मैंने सुझाव दिया-कुछ ऐसा बनाइए, जिससे इंसान में इंसान के प्रति भरोसा जगे. जिससे लगे कि हम सियारों, भेड़ियों, बलात्कारियों, षडयंत्रकारियों के बीच नहीं रह रहे हैं.
डाइरेक्टर गुस्सा हो गया और बोला-अबी क्या है कि पब्लिक अच्छी बात से बोर हो जाती है. अच्छी बात नक्को. कुछ फूं-फां, शूं-शां, कुछ लाइटिंग-फाइटिंग चाहिए. अच्छी बात नक्को.
मुंबईया बोली में नक्को बोले तो नहीं. अच्छी बात नक्को,फिल्म फ्लाप हो जायेगी.
कल एक स्टूडेंट मिला और बोला-गुरुजी, कालेज के फंक्शन में क्या करा रहे हैं.
मैंने बताया-बाबा मायानंद को बुलाया-त्याग और नैतिकता पर लेक्चर देंगे.
वह बोला-गुरुजी हम कचुआ गये हैं, वो ही सुनते-सुनते. छात्र शक्ति, चरित्र, तेज, त्याग, बलिदान, अगड़म-बगड़म, कील कांटा. बाबाजी आ रहे हैं, तो कुछ बाबोचित कहें, क्या त्याग, बलिदान बेकार की बात कर रहे हैं. बाबा और बेबियां कुछ बाबोचित डांस करें- कुछ बंगले के पीछे, कांटा लगा, टाइप करवाइए ना.
मुझे लगा कि छात्र भी वही कह रहा है-अच्छी बात नक्को.
कल प्रबंधन पर भाषण देने गया था एक दफ्तर में. मैंने काम की महत्ता पर, मेहनत की महत्ता पर लेक्चर देकर निकल रहा था कि एक बंदा मेरे सामने आकर बोला. ये बुड़बकई की बातें काहे फिजूल में पेल रहे हैं. हमारे दफ्तर में जिनके प्रमोशन हुए हैं, वो या तो मैनेजर के साले हैं या साले के साले हैं. यह बताइए ना कि कायदे के बंदे के साले बनने की क्वालिफिकेशन कईसे डेवलप किया जाये. बाकी सब तो फिजूलैही है. मार बकर-बकर काम पर, और मेहनत पर किये आप.
मुझे लगा कि यह भी वही कह रहा है-अच्छी बात नक्को.
बीती पर दीवाली पर हुए शुभकामनाओं के कारोबार पर सोच रहा हूं, तो सामने आ रहा है कि जिनको मैंने कभी शुभकामना नहीं दी, वो सारे के सारे इस टनाटन पोजीशन में हैं. पूरे मुहल्ले की पब्लिक जिस गुंडे को गरियाती थी, वह आज विधायक है. गालियों का अनुपात और बढ़ेगा, तो हो सकता है कि मंत्री हो जाये.
अपने जिस छात्र को मैंने शुभकामना दी थी कि बेटा ईमानदारी से जीवन बिताना, वह कंज्यूमर फोरम में मुझ पर मुकदमा दायर करने की सोच रहा है कि गुरुजी ने बहुत गलत शिक्षा देकर जीवन चौपट कर दिया. वह बताता है कि मेरी गलत शिक्षा के प्रभाव से उसमें ईमानदारी इतनी घुस गयी है कि दीवाली तक पर रिश्वत लेने में हाथ कांपते हैं. घर वाले पहले उसे गालियां देते हैं, फिर मुझे गालियां देते हैं. अच्छी बात नक्को.
सोच रहा हूं कि क्या बेहूदी शुभकामना दी है-यही की आपकी दीवाली मंगलमय हो. मेरे किये से अपना ही मंगल नहीं हो पाता, किसी और मंगल का क्या होगा. अपना राशन कार्ड बिना रिश्वत दिये जो न बनवा पाये, वह किसी का क्या मंगल करेगा. और इस देश की पिच्चानवे फीसदी जनता इसी कैटेगरी में आती है.
सो अच्छी बात नक्को.
अब हर मौके पर यही शुभकामना सही हो सकती है कि सबका अमंगल करने की शक्ति आपमें आ जाये. सबका अमंगल करने की शक्ति आपमें आ जाये, तो फिर आपका मंगल अपने आप हो जायेगा. ईमानदार अफसरों का ट्रांसफर कराने में जुटे चोर नेताओं, कर्मठ अफसरों को निठल्ला बनाने को प्रतिबद्ध नेताओं को देखकर क्या यह बात आपको समझ नहीं आती.