तेजी से बाजार पर अपनी पकड़ खो रहे चैनल आजतक को अन्ना का वरदान मिला और वह फिर एक बार नंबर वन हो गया। उसने अपने महीनों पुराने प्रतिद्वन्दी इंडिया टीवी को कहीं पीछे ले जा कर पटक दिया। इंडिया टीवी के पिछड़ने की वजह ये बताई जा रही है कि ज्योतिषियों और ऑफ बीट या तंत्र-मंत्र की कहानियों को प्रसारित करने के कारण उस पर महिलाओं का कब्जा रहता है जो अन्ना एपिसोड में पुरुषों के हाथ टीवी का रिमोट सौंप बैठीं।
लेकिन ऐसा लगता है कि आजतक के लिए नंबर वन पोजीशन बचाए रखना आसान नहीं रहेगा। विशेषज्ञ इसके कई कारण बता रहे हैं। एक तो यह कि अन्ना का बुखार दो-चार हफ्ते का है और जिसके उतरने के साथ ही महिलाएं रिमोट वापस अपने कब्जे में ले लेंगी। दूसरे आजतक में कोई स्थापित पत्रकार नहीं है सो उसे स्टार का संकट बना रहेगा। तीसरे उसने जो रिपोर्टर मैदान में छोड़ रखे हैं वे चैनल की इमेज बनाने की बजाय उतार रहे हैं।
जनलोकपाल बिल पर वोटिंग के बाद का एक उदाहरण देखिए। 27 तारीख को रात नौ बजे के करीब कानून मंत्री सलमान खुर्शीद कार में बैठने से पहले इंटरव्यू दे रहे थे। अचानक आजतक के अशोक सिंघल ने एनडीटीवी पर चले शेखर गुप्ता के प्रोग्राम ‘वाक द टाक’ स्टाइल में बात करने की सोची। उन्होंने सवाल दागा.. कहा जा रहा है कि अन्ना जो चाहते थे वैसा सरकार ने नहीं किया.. खुर्शीद ने कहा कि सरकार ने उनकी प्रमुख मांग पूरी कर दी है और प्रस्ताव पारित हो गया। अशोक ने दोबारा सवाल दागा.. लेकिन अन्ना ने तो वोटिंग की मांग की थी… सलमान खुर्शीद के साथ-साय़ सभी दर्शक चौंक उठे.. कानून मंत्री ने लगभग झिड़कते हुए पूछा, जब प्रस्ताव ही पारित हो गया तो वोटिंग की क्या दरकार.?
ये वही अशोक सिंघल है जिसे कमर वहीद नक़वी ने निजी कारणों से कभी दीपक चौरसिया के समकक्ष ला खड़ा किया था। तब दीपक ने नौकरी छोड़ दी थी। कुछ और भी वजहें रहीं कि कभी हिन्दी न्यूज दर्शकों की आधी टीआरपी पर कब्जा जमा कर बैठे इस चैनल के पास एक चौथाई दर्शक भी नहीं बचे और महीनों उसे इंडिया टीवी के साथ कभी हम आगे- कभी तुम आगे का खेल खेलना पड़ा।
एक और चैनल है न्यूज-24… मालकिन अनुराधा प्रसाद के पति राजीव शुक्ला के मंत्री बनते ही चैनल की टीआरपी हाई हो गई। कुछ लोगों ने कहा कि टैम से सेटिंग हो गई है, कुछ ने कहा कि अजीत अंजुम की वापसी का असर है.. आदि आदि। लेकिन ‘अन्ना लाईव’ को प्रसारित करने की बारी आई तो नहीं चलाया। ऐसा नहीं है कि चैनल के पास एक्विपमेंट नहीं है। सारा लाइव का सेटअप लगा भी था, लेकिन ‘उपर’ से ऑर्डर आया कि अब लाइव नहीं होगा.. नतीजा ये रहा कि उसकी टीआरपी भी धड़ाम हो गई।
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर बाजार में ठहरना है तो निजी भावनाओं में बहने की जरूरत नहीं है। दर्शकों की नब्ज़ पकड़ें, सफलता अवश्य कदम चूमेगी।
मीडिया दरबार के मॉडरेटर 1979 से पत्रकारिता से जुड़े हैं. एक साप्ताहिक से शुरूआत के बाद अस्सी के दशक में स्वतंत्र पत्रकार बतौर खोजी पत्रकारिता में कदम रखा, हिंदी के अधिकांश राष्ट्रीय अख़बारों में हस्ताक्षर. उसी दौरान राजस्थान के अजमेर जिले के एक सशक्त राजनैतिक परिवार द्वारा एक युवती के साथ किये गए खिलवाड़ पर नवभारत टाइम्स के लिए लिखी रिपोर्ट वरिष्ठ पत्रकार श्री मिलाप चंद डंडिया की पुस्तक "मुखौटों के पीछे - असली चेहरों को उजागर करते पचास वर्ष" में भी संकलित की गयी है. कुछ समय के लिए चौथी दुनियां के मुख्य उपसंपादक रहे किन्तु नौकरी कर पाने के लक्खन न होने से तेईस दिन में ही चौथी दुनिया को अलविदा कह आये. नब्बे के दशक से पिछले दशक तक दूरदर्शन पर समसामयिक विषयों पर प्रायोजित श्रेणी में कार्यक्रम बनाते रहे. अब वैकल्पिक मीडिया पर सक्रिय.
ये अशोक सिंघल बहुत ही बड़ा डफर है.. uski किसी रिपोर्ट में न सर होता है न पैर.. फिर भी उसे पता नहीं क्यों ऐसे सर पे चढ़ाया हुआ है आजतक वालों ने जैसे वो मालिक या हेड का दामाद हो.. ऐसे चैनल की तो यही दुर्गति होनी ही है.
जब लोकतंत्र के चारों ही स्तंभों को व्यवसायीकरण और भ्रष्टाचार के सांप ने डस लिया हो तो इस देश का उद्धार कैसे हो पायेगा ?.
ये अशोक सिंघल बहुत ही बड़ा डफर है.. uski किसी रिपोर्ट में न सर होता है न पैर.. फिर भी उसे पता नहीं क्यों ऐसे सर पे चढ़ाया हुआ है आजतक वालों ने जैसे वो मालिक या हेड का दामाद हो.. ऐसे चैनल की तो यही दुर्गति होनी ही है.