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-राजीव नयन बहुगुणा||
दो न्यायाधीशों में एक पंडित मदन मोहन मालवीय के पौत्र थे, जिनकी श्लाघा एक उर्दू शायर दशकों पहले कर चुके थे – ओ बनारस के बिरहमन मालवी, ओ मदन मोहन महामन मालवी. जस्टिस का नाम नहीं बताऊंगा, तुम खुद ही समझ जाओ, मैं नाम नहीं लूँगा. न्यायमूर्ति ने खड़े होकर, दोनों हाथ जोड़ कर, अवनत होकर मेरे पिता की अभ्यर्थना की. क्या एक न्यायाधीश के लिए ऐसा करना समीचीन था? मैंने अपने वकील मित्र से बाद में पूछा. हाँ, ऐसा हो जाता है कभी कभी. आखिर गांधी को कड़ी सजा सुनाने वाले ज़ज़ ने भी ऐसा ही किया था, मेरे वकील मित्र ने मेरी शंका का समाधान किया, जो आजकल खुद भी एक ज़ज़ हैं.
मेरे पिता सुंदर लाल बहुगुणा ने अदालत में खड़े होकर अपना बयान शुरू किया – मैं एक न्यायाधीश, पुलिस अधिकारी और वन संरक्षक का बेटा हूँ. दर असल मेरे अर्ध शिक्षित दादा अम्बा दत्त बहुगुणा टिहरी नरेश के कृपा भाजन होने के फलस्वरूप कई उच्च पदों पर काम कर चुके थे, जिस नरेश का ताज़ो – तख़्त मेरे पिता को नोच कर, सरदार वल्लभ भाई पटेल की शह पर नोच के फेंकना था.
तेरी निगाहे – करम है तो क्या कमी है मुझे
सामजिक, राजनैतिक और पारिवारिक तनावों से श्लथ हो कर मैं कभी अर्ध रात्रि के बारह बजे तो, तो कभी भोर के तीन बजे कमर वहीद नक़वी को फोन कर भौंकता – तू भी मर गया मेरे लिए, अब इस पृथ्वी नामक उपग्रह पर मेरा कोई खेवन हार नहीं है. मैंने शराब पीकर अपने पिता और नक़वी दोनों को सर्वाधिक सताया. लेकिन दोनों ने मुझे सदैव पनाह दी. सुबह दफ्तर आने पर नकवी के भाव विन्यास से लगता ही नहीं था कि कल रात कोई अप्रिय वार्ता हुयी है. आखिर बड़प्पन एक यथेष्ठ सहनशीलता चाहता है, जो दुर्लभ है.
यह चारागर

इलाहाबाद के सी एम ओ अपनी मण्डली के साथ इस न्यायालय में तत्काल पेश हों, न्यायमूर्ति ने यह हुकुम सुनाते हुए अपनी आँखें पोंछी. मी लार्ड, आपको विदित ही होगा की मैंने एलोपैथी इलाज़ सिर्फ मजबूरी में एक बार स्वाधीनता संग्राम के समय क़ैद में रहते हुए लिया था, मेरे पिता ने घबरा कर कहा. आप चिंता न करें, आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा, आपका पुत्र तथा वैयक्तिक डाक्टर भी साथ रहेगा. आपके बारे में मेरे पिता से मैं सब कुछ सुन चुका हूँ बहुगुणा जीं, न्यायाधीश ने कहा.
यस्य स्मरण मात्रेण
कस्टडी में लो इसे, यू पी सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ आईएएस एस को इंगित करते हुए न्यायमूर्ति ने आदेश दिया. सर यह तो मेरे रिश्ते के बड़े भाई हैं, आईएएस धीरेन्द्र बहुगुणा का बचाव करते हुए मैंने कहा.
तमीज़ से खडा रह . मुंह से हाथ हटा . गर्दन नीचे कर, आँख झुका, तू यहाँ बाप की शादी में नही आया है , न्यायाधीश ने आईएएस को कहा. या मैं सिखाऊं तुझे कोर्ट में खड़े होने की तमीज़? अतिशय विनम्र न्यायाधीश की इस धमकी पर मैं खुद भी हैरान था
(ज़ारी)
दो सब्द..सात लाइन में.
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खेल खेल में यूँ ही लिख डाला सच सारा इतिहास।.
अब जिस जिसको इसे पढ़ के परेशानी होगी,
वो तो करेगा इसकी कड़ी निन्दा संग बकवास।।.
होगी निन्दा संग बकवास मिले कानूनन धमकी।.
तब बढ़ेगी टीआरपी किताब की किस्मत चमकी।।.
हिट होगा संपादक और संतापक भी खुश होगा।.
कहेगा ये हीरा अपना ही है भाईयो चमक तो देगा।।.