-सत्य पारीक||
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जिस तरह ‘यस वी कैन, यस वी विल डू’ लगा कर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया और इस नारे को नरेन्द्र मोदी ने जिस अंदाज़ में हैदराबाद में आयोजित चुनावी सभा में दोहराया, वह नमो को प्रधानमंत्री बना पायेगा, इसमें संशय की काफी गुंजाईश है. जबकि देश को इस संक्रमणकाल में किसी वैकल्पिक राष्ट्रीय एजेंडे की ज़रुरत है.
एल. के. आडवाणी को धकिया कर वेटिंग इन पी.एम. की कतार में खडे हुए गुजरात के नरेन्द्र मोदी की हैदराबाद में चंदा देकर उमड़ी भीड़ से यह संदेश नहीं जाता कि यह भीड़ और और उसमें शामिल युवा भाजपा का वोट बैंक बन सकते है.
आन्ध्र प्रदेश की अन्दरूनी राजनीति को देखते हुए वहां कांग्रेस, भाजपा, तेलगुदेशम, वाई. एस. आर. कांग्रेस और टी. आर. एस के बीच चुनावी जंग होना तय है. आन्ध्र प्रदेश को विभाजित कर बनाए गए तेलंगाना में टी.आर.एस. के अलावा किसी दल के आगामी चुनाव में पांव जमना संभव नहीं है. यह तय माना जा रहा है कि तेलंगाना में टी. आर. एस के साथ कांग्रेस का चुनावी गठजोड़ हो चुका है तभी तो कांग्रेस ने सोची समझी रणनीति के तहत तेलगाना बनाया है.
भाजपा के साथ आन्ध्रा में टी.डी.पी के साथ गठबंधन रहा है. जो आगामी चुनाव में रहेगा या नहीं, यह भविष्य के गर्त में छिपा है. क्योकि टी. डी. पी अपना वर्चस्च कायम रखने के प्रयास में आन्ध्र और तेलंगाना में रहना होगा. तेलंगाना के लिए आंन्दोलन कर इसे अंजाम तक ले जाने वाले प्रमुख नेता चन्द्रशेखर राव है जो किसी समय टी.डी.पी. में थे. बाद में उन्होने तेलंगाना राष्ट्रीय समिति का गठन किया. अपने साथियों के साथ चुनाव जीत कर लोकसभा पंहुचे तथा यू.पी.ए का घटक दल बन कर केन्द्रीय मंत्रिमडल में शामिल हुए. अलग राज्य की मांग मंजूर नहीं होने पर यू.पी.ए से नाता तोडक़र बाहर आए और अब तेलंगाना बनने से वहां के राजनीतिक मसीहा बन चुके है.
मोदी को दक्षिण में इससे पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में देखा जा चुका है. वहां उनकी लोकप्रियता के ग्राफ पर उन्ही की पार्टी से अलग हुए येदुरप्पा भारी पड़े थे. मोदी ने दक्षिण में भाजपा का चुनावी बिगुल बजाने के लिए हैदराबाद को चुना. जहां उनके समर्थको ने भाजपा के बैनर पर मोदी सभा का आयोजन किया. सभा में आने वालो से पांच रूपए प्रति व्यक्ति लिया गया. ऐसा भाजपाईयों का कहना है. मोदी ने अपने भाषण का दायरा केन्द्र की यू.पी.ए सरकार की आलोचना करने पर केन्द्रित रखा. साथ ही युवा वर्ग पर अपने डोरे डाले. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा आजमाए गए नारे ‘यस वी कैन, यस वी विल डू’ को नरेन्द्र मोदी ने अपना चुनावी प्रचार मंत्र बनाने की कोशिश की.
किसी भी चर्चित व विवादित नेता को सुनने के लिए भीड़ का आना स्वाभाविक है. मोदी जैसा विवादित नेता देश की राजनीति में दूसरा नहीं है लेकिन पूरा देश गुजरात नहीं हो सकता है. मोदी चर्चित अवश्य है मगर इनकी छवि राष्ट्रीय नेता की नहीं बन पाई है मगर राष्ट्रीय राजनीति और राष्ट्रीय नेताओ के निशाने पर मोदी लम्बे समय से है.
किसी राज्य में तीन दफा चुनाव जीत कर सरकार बनाना ही मापदंड नहीं हो सकता कि वह नेता राष्ट्रीय मंच पर सफल हो सकता है. भाजपा का चुनावी राजनीति में स्वर्णकाल लाने वाले नेता आडवाणी के समय में जितनी सफलता इस दल को मिली थी उतनी अब मिलना संभव नहीं लगता है. मोदी की पॉकेट में एक भी राष्ट्रीय मुद्धा ऐसा नहीं है जिससे देश का वोटर उनकी तरफ खिंचता चला जाए. युवा राजनीति का नारा तो कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी दे रहे हें जो मोदी से युवा है. उत्तर प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी तो दक्षिण में जोर देगे ऐसी स्थिति में मोदी की सभा में आई भीड़ के वोट भाजपा की झोली में गिरेगे संभावना कम ही है. नमो की पॉकेट में राष्ट्रीय मुद्दों की बजाए केन्द्र की आलोचना ही ज्यादा है, जबकि उन्हें अपना वैकल्पिक एजेंडा राष्ट्र के सामने रखना था.
देश को वैकल्पिक राष्ट्रीय एजेंडा चाहिए मोदी जी…
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aap ki sadi gaali soch apki soch ki seema bata rahi hia lekhakh mohoday yah naara kisi obaama ka nahi yah swaami vivekananad ji ka diya hua naara hai or obaama se pahle svyam modiji ne ye sabd gujraat me kahe hen …….? और उन्हें सार्थक किया है जीवन में और गुजरात में
लेखक को हड्काने की जगह अपना सामान्य ज्ञान बढाइये. शिकागो में दिए गए स्वामीजी के प्रवचन का शब्दानुशः पाठ इस लिंक में पढ़ें.
http://www.facebook.com/l.php?u=http%3A%2F%2Fwww.viveksamity.org%2Fuser%2Fdoc%2FCHICAGO-SPEECH.pdf&h=UAQESM247
यूट्यूब पर लगे इस वीडियो को भी सुना जा सकता है, जो कि किसी अन्य की आवाज़ में है.
यह सब हैदराबाद रैली से पहले के हैं, इसलिए यह मत कहियेगा कि बाद में लगाये गए.