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-राजीव नयन बहुगुणा||
जन सभा में भाषण देने के बाद हेमवती नंदन बहुगुणा खुली जीप में खड़े होकर नेहरु स्टाईल में हाथ हिलाते शहर से होते हुए डाक बंगले पंहुचे. यह डाक बंगला पुराने टिहरी शहर की कचहरी के पास था. नीम अँधेरे में करीब दो सौ फरियादियों से मिलते हुए सभी की अर्जियां लेने लगे. मै सबसे अंत में खड़ा था, और मैंने उनके हाथ में पहले से लिखित एक पन्ना थमा दिया, जिसमें मेरा सम्पूर्ण परिचय तथा उनसे दो मिनट अलग से मिलने की गुहार थी. करीब दस मिनट बाद हड्बडाता हुआ एक एस डी एम् मेरा नाम पुकारता आया. मुझे “सरकार” ने भीतर बुलाया था. इसका अर्थ यह हुआ कि बहुगुणा ने जनता से मिलने के बाद सारी अर्जियां पढ़ीं, उन्हें न तो रद्दी की टोकरी में फेंका और न किसी अधीनस्थ के हवाले किया. दिन भर की भाग दौड, धूल और भाषण बाज़ी से श्लथ होकर वह बिस्तर पर अकेले बैठे थे. यद्यपि उनका यह दौरा हेलीकोप्टर से हो रहा था, लेकिन बड़े लोग तो हवाई जहाज़ में भी थक जाते हैं. सामने मेज़ पर एक चम्मच में तीन – चार रंग बिरंगी गोलियाँ रखी थी. यह संभवतः उनकी ह्रदय रोग की दवा थी. ह्रदय रोग से उनका रिश्ता युवावस्था में ही जुड गया था. बहुत साल बाद उन्होंने एक बार प्रसंगवश मुझे बताया – मेरी माँ भी इसी बीमारी से मरी थी. वह मेरी – अस्कोट – आराकोट पद यात्रा की डायरी पलटने, बल्कि पढ़ने लगे. अचानक पढते पढते उन्होंने हांक लगाई — शुक्ला ! दरवाज़े पर चपरासी की जगह खड़ा कलेक्टर, जी सरकार, कहता हुआ दोनों हाथ जोड़ कर अर्ध धनुषाकार में अवनत खड़ा हो गया. यह नौकरशाहों पर उस ज़माने के शासकों का रूतबा था, क्योंकि वह कलेक्टर की पोस्टिंग पैसे खा कर नहीं करते थे.

अभी कुछ ही माह पहले उन्हीं के मुख्यमंत्री पुत्र ने कलेक्टर की शिकायत करने पर अपनी ही पार्टी के एक विधायक को शट अप कह कर हडका दिया. खैर…… बहुगुणा ने कलेक्टर से गुस्से में पूछा – यह नैट्वाड कहाँ है ? कैसे हो गया वह क़त्ल? वह मेरे जिले में नहीं, उत्तरकाशी में है सरकार, कह कर कलेक्टर ने राहत की सांस ली. उससे ( उत्तरकाशी के डी एम् से ) कहो कि मुझसे बात करे, कह कर बहुगुणा फिर मेरी ओर मुखातिब हुए, और डी एम् को बाहर जाने का इंगित किया. दरअसल मेरी यात्रा डायरी में एक जगह नैट्वाड में हुए एक ब्लाइंड मर्डर केस का ज़िक्र था, जिसे पढ़ कर बहुगुणा तुरंत हरकत में आये थे.
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