फरीदकोट के पूर्व महाराजा की बेटियों को 21 साल तक चली कानूनी जंग में जीत मिली है और अदालत ने 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति को लेकर उनके हक में फैसला सुनाया है.
चंडीगढ़ की अदालत ने फैसला दिया कि पूर्व महाराजा की वसीयत पर जाली दस्तखत किए गए जिसके अनुसार उनकी संपत्ति एक ऐसे चैरिटेबल ट्रस्ट को चली गई जो महाराजा के पूर्व नौकरों और महल के अधिकारियों ने बनाया था.
जिस जायदाद को लेकर अदालत ने अब महाराजा की बेटियों के हक में फैसला सुनाया है उसमें चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और आंध्र प्रदेश में कई संपत्तियां हैं.
इसके अलावा एक साढ़े तीन सौ साल पुराना किला, दो सौ एकड़ में फैली एक हवाई पट्टी, सोना के जवाहारात और कई विंटेज कारें शामिल हैं.
अब ये सारी संपत्ति महाराजा की दो बेटियों के नाम कर दी जाएगी.
चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने गुरुवार को सर हरिंदर सिंह बराड़ की बेटी अमृत कौर के पक्ष में फैसला दिया, जिन्होंने वसीयत को चुनौती दी थी.
अदालत ने घोषणा की कि वसीयत जाली थी और हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत अमृत कौर और उनकी बहन दीपेंदर कौर को बीस हजार करोड़ रुपये की संपत्ति का वारिस बताया है.
महाराजा के परिवार के वकील विकास जैन ने कहा कि चूंकि एक जुलाई 1982 को बनाई गई वसीयत को अदालत ने ‘गैरकानूनी’ और ‘अमान्य’ घोषित किया है, इसलिए ‘मेहरवाल खेवाजी ट्रस्ट’ भी गैरकानूनी हो जाता है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार महाराजा की तीन बेटियों में से एक अमृत कौर चंड़ीगढ़ में जबकि दीपेंदर कोलकाता में रहती हैं. उनकी तीसरी बेटी महीपिंदर कौर का कुछ वर्षों पहले शिमला में निधन हो गया था.
बताया जाता है कि जब इस जाली वसीयत तैयार की गई थी उस वक्त सर बराड़ अपने इकलौते बेटे टिक्का हरमोनिंदर सिंह बराड़ की मौत के कारण अवसाद के दौर से गुजर रहे थे.
(सौजन्य बीबीसी)
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