-सबलसिंह भाटी||
सात समंदर पार से आने वाले कुरजां पंछी सितम्बर में राजस्थान के बाडमेर जिले के पचपदरा में हर वर्ष दस्तक देते है. तुर्र-तुर्र के कलरव के साथ परवाज भरते प्रवासी परिंदें यहाँ के नमकीनी माहौल में नई जान फूंक देते है. प्रवासी परिंदों के लिये यहाँ की आबोहवा अनुकूल है. हर वर्ष के सितम्बर के दुसरे या तीसरे सप्ताह में सात समंदर पार करके ठंडे मुल्कों के प्रवासी परिंदे शीतकालीन प्रवास के लिये पचपदरा पहुंचते हैं.
हजारों की तादाद में पहुंचने वाले ये परिंदे करीब छह माह तक यहां अठखेलियां करने के बाद फरवरी में पुन: स्वदेश के लिये उड़ान भरते हैं. पचपदरा के तालर मैदान, हरजी, इमरतिया चिरढाणी, नवोड़ा, इयानाड़ी तालाब के साथ ही मगरा क्षेत्र में हजारों की तादाद में कुरजां के समूह पहुंचते हैं. आसमान में किसी अनुशासित सिपाही की तरह कतारबद्ध उड़ान भरते इन परिंदों को निहारने के लिये लोगों में खास उत्साह बना रहता है.
छह माह के प्रवास के दौरान ये परिंदे यहां गर्भधारण के बाद फरवरी में स्वदेश के लिये उड़ान भरते हैं. प्रवासी पक्षी के नाम से प्रसिद्ध साइबेरियन क्रेन को स्थानीय भाषा में कुरजां कहते हैं. कुरजां के आगमन के साथ ही उनके कलरव एवं क्रीड़ा से मरूभूमि निखरने लगती है. कुरजां की उपस्थिति तालाबों की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. कुरजां अपने प्रजनन काल के लिये सामूहिक रूप से यहां आती है.
शीतकालीन प्रवास हेतु हजारों की संख्या में कुरजां आती है और शीत ऋतू समाप्त होने के साथ ही स्वदेश लौट जाती है. जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर कुरजां नामक गांव है. इस गांव का नाम भी साइबेरियन क्रेन के पड़ाव के कारण कुरजां पड़ गया. दशकों पूर्व यहां सुंदर तालाब था. इस तालाब पर सैकडों प्रवासी पक्षी आते थे. पक्षियों के आगमन पर स्थानीय लोग बाकायदा गीत गाकर इनका आदर स्वागत सत्कार करते थे. मगर बढ़ती आबादी ने तालाब के स्वरूप को बदल दिया तालाब किंवदंती बन कर रह गया. तब से गांव में प्रवासी कुरजां ने आना ही छोड़ दिया. राजस्थान के लोक गीतों में कुरजां पक्षी के महत्व को शानदार तरीके से उकेरा गया है. प्रियतम से प्रेमी पति, पिता तक संदेश पहुंचाने का जरिया कुरजां को माना गया है. कई लोक गीतों में कुरजां को ध्यान में रख कर गीत गाया गया है. “कुरजां ए म्हारी भंवर ने मिला दिजो” गीत में पत्नी अपने पति से मिलाने का आग्रह कुरजां से करती है तो “कुरजां ए म्हारी संदेशों को म्हारा बाबोसा ने दीजे” में महिला कुरजां के माध्यम से पिता को संदेश भेजती है. पिता अपनी पुत्री को “अवलू” गीत के माध्यम से संदेश पहुंचाते हैं. कुरजां पर कई गीत है, जो विभिन्न संदेशों को पिरोकर गाये गये हैं.
प्रवासी पक्षियों के तुर्र-तुर्र कलरव से गूंजने वाले इस जगह को राजस्थान सरकार ने रिफ़ाइनरी लगाने के लिए पसंद कर लिया है और अब इस पर अगस्त में ही शिलान्यास करने की योजना है. स्थानीय ग्रामीणों ने बताया की कुरंजा बहुत ज्यादा ही ‘संकोची’ स्वभाव का पक्षी है. ये मनुष्यों से बहुत दूर रहते है, लेकिन अगस्त में रिफ़ाइनरी के शिलान्यास के बाद यहाँ रिफ़ाइनरी से सम्बंधित कार्य आरम्भ हो जायेंगे जिससे इस इलाके में लोगों की आवाजाही बढ़ेगी और सितम्बर में आने वालें ठंडे मुल्कों के प्रवासी परिंदों को अन्य पनाहगाह देखना होगा. यहाँ के बुजुर्ग कहते है कि इस बार कुरंजा आ जायेगीं लेकिन इसके बाद अब आने वाली पीढ़ियों को शायद कुरंजा किसी कहानी में पढने, देखने और सुनने को ही मिले.
यह तो होना ही था.भोतिक जरूरतों के लिए इन बेचारों को ही बली देनी होगी.मनुष्य ने अपने लिए या तो जानवरों को या फिर पक्षियों को निर्वासित किया है.प्रकर्ति द्वारा किया गया प्राणियों का संतुलित विभाजन जिसमें सब का अपना अपना महत्त्व है,को मानव ने तहस नहस करने की ठान ली है .और यही भूल आगे चल कर हमारे लिए महँगी सिद्ध होगी.
यह तो होना ही था.भोतिक जरूरतों के लिए इन बेचारों को ही बली देनी होगी.मनुष्य ने अपने लिए या तो जानवरों को या फिर पक्षियों को निर्वासित किया है.प्रकर्ति द्वारा किया गया प्राणियों का संतुलित विभाजन जिसमें सब का अपना अपना महत्त्व है,को मानव ने तहस नहस करने की ठान ली है.और यही भूल आगे चल कर हमारे लिए महँगी सिद्ध होगी.