अन्ना हजारे जिस तरीके से आंदोलन कर रहे हैं वह देश भर के नेताओं और महंगे प्रचार अभियान चलाने वालों के लिए एक उदाहरण बन गया है। अपनी मांगों को मनवाने के लिए अण्णा ने अनशन पर जाने का ऐलान किया तो देश भर का मीडिया खुल कर सपोर्ट में आ गया। लेकिन फ्री में पब्लिसिटी देने वाला अन्ना का यही जनआंदोलन कुछ अखबारों और चैनलों के लिए कमाई का जरिया भी बन गया है।
एक तरफ जहां खबरिया टीवी चैनलों की टीआरपी में भारी उछाल आया है वहीं दूर-दराज के इलाकों में भी अखबारों की मांग बेतहाशा बढ़ गई है। टैम के ताजा आंकड़ों के मुताबिक न्यूज़ चैनलों के दर्शकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस बार ये चैनल भी एसएमएस के जरिए दर्शकों का संदेश बटोर कर मोटी कमाई करने में नहीं जुटे हैं लेकिन कुछ अखबारो ने अपनी कमाई का नया जरिया ढूंढ लिया है। जब तुरत-फुरत विज्ञापनदाता नहीं बढ़े तो उन्होंने कमाई के लिए परिशिष्ट छापना शुरु कर दिया। दैनिक भास्कर के रोहतक एडीशन ने ऐसा ही एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। 19 अगस्त के संस्करण में अखबार ने अन्ना के समर्थन में एक पृष्ठ समर्पित किया तो उसमे नेताओं और अन्य विज्ञापनदाताओं से विज्ञापन का इंतजाम पहले से कर लिया गया। यह तो सिर्फ रोहतक का ही उदाहरण है। अन्य जगहों पर भी इसी प्रकार का खेल चल रहा है। ऐसा नहीं है कि इस दौड़ में सिर्फ यही अखबार शामिल है, बल्कि और भी पीछे नहीं हैं। दो दिन पहले ही हरिभूमि भी इसी प्रकार का एक संस्करण निकाल चुका है।
ऐसे में अब जनता या यूं कहें कि पाठकों को ही तय करना है कि कौन सही है और कौन गलत?
(खबर रोहतक से एक पत्रकार द्वारा भेजे गए मेल पर आधारित)
क्या कांग्रेस ही भर्स्ट है क्या अभी ही भार्स्त्चार हुआ है क्या न.डी.ऐ और जनता पार्टी के समय सुबकुछ ठीक था अगर कांग्रेस के अलावा सभी पार्टिया संसद में अन्नाजी के लोकपाल बिल पुर सहमत है तो अन्नाजी को अस्वासन देकर अन्नाजी का बिल संसोधन करवा कर अन्नाजी को अनसन से बहर नही ला सकती नही क्योकि अन्नाजी का आन्दोलन ही तो उन्हें सत्ता के नजदीक लेकर जायेगा और कई मह्त्माओ का हित भी सधेगा जिनके अन्नुययियो की भीड़ और बी.ज.प की भीड़ ही तो अन्नाजी के इरादों को मजबूत कुर रही है