-अयोध्या प्रसाद ‘भारती’||
चरित्र के मामले में काफी विवादित रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम ने घोषणा की है कि उनके पंद्रह सौ अनुयायी उत्तराखण्ड के केदारनाथ क्षेत्र में आयी आपदा के कारण विधवा हुई महिलाओं से विवाह करेंगे। इस मामले पर उत्तराखंड के शासन, प्रशासन और यहां के हर इनसाफ पसंद व्यक्ति को कड़ी नजर रखनी चाहिए। यहां पहले से ही लड़कियों और महिलाओं के तस्कर सक्रिय हैं। इसके अलावा देह व्यापार कराने वालों ने यहीं की लड़कियों को यहां भी इस धंधे में धकेला हुआ है।
उत्तराखंड जिसे देव भूमि कहा जाता है लंबे समय से अय्याशों की भूमि बना हुआ है और अय्याशों के कारण ही इतनी बड़ी त्रासदि घटित भी हुई है। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब नैनीताल जिले के भीमताल से खबर छपी कि पहाड़ खासकर कुमाऊं के दूरदराज के गांवों में ह्यूमन ट्रैफिकिंग का मामला कोई नया नहीं है पर सुंदरखाली में नाबालिग का ब्याह रचाने पहुंचे हरियाणा के नारबौड़ गांव निवासी दस लोगों ने उस सच से पर्दा उठाया है जिसके पीछे एक नाबालिग नहीं बल्कि कई बेटियां हालातों की बलि चढ़ी हैं। राजस्व पुलिस की पूछताछ में यह सामने आया कि सुंदरखाल की किशोरी का सौदा हो चुका था। बस एक विवाह के जरिए सामाजिक रूप से उसे ले जाने की तैयारी थी। ताकि कोई आवाज न उठा सके।
इस सौदे में स्थानीय बिचौलियों ने कहानी के महत्वपूर्ण किरदार की भूमिका निभाई है। पता चला कि पहाड़ से इसी तरह से बेटियों को ले जाया जाता है और हरियाणा, पंजाब या फिर दूसरे राज्यों में उसे किसी और के सुपुर्द कर दिया जाता है। बाद में यही बेटियां देह व्यापार में उतार दी जाती हैं। सात माह पहले भी सुंदरखाली तोक में एक गरीब विवाहित महिला का सौदा 80 हजार रुपये में होने की बात इन्होंने कुबूली है। यही नहीं खरीद-फरोख्त के लिए तब महिला का उसके पति से तलाक करवाया गया। इस पूरे मामले में गांव के वो गरीब परिवार भी शामिल हैं, जिन्होंने पैसे के लिए बेटियां बेचीं। स्थानीय बिचौलिये राज्य से बाहर के उस गैंग को गांवों में अविवाहित, तलाकशुदा और पति द्वारा छोड़ी गई महिलाओं के बारे में जानकारी देते हैं।
राजस्व पुलिस ने बताया कि हरियाणा के ह्यूमन ट्रैफिकिंग के बड़े गैंग के पहाड़ में होने की बात सामने आई है। लड़कियां खरीदने के बाद लोकल बिचौलियों को भी खरीद का हिस्सा मिलता है और यह गैंग सामाजिक ब्याह के बाद ही लड़कियां, महिलाओं को पहाड़ से लेकर जाता है।
कुछ महीने पहले हिंदी समाचार पत्रिका तहलका ने अपनी आवरण कथा में खुलासा किया था, कि उत्तराखंड से लड़कियांे महिलाओं की तस्करी की जा रही है, जिसके लिए यदि सीधे-खरीद नहीं हो पाती तो विवाह करके ले जाया जाता है। जिस लड़की पर नजर पड़ गई उसे तस्कर किसी सूरत में नहीं छोड़ते, अगर उसकी शादी भी यहां हो जाए तो तलाक दिलवा दिया जाता है और एकाध प्रकरण में तो पति की हत्या तक करा दी गई और फिर उस लड़की को यहां से शादी के बहाने ले जाया गया। यहां से शादी, नौकरी इत्यादि विविध बहानों से लड़कियां ले जाकर हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बेची जाती हैं जहां यह बच्चे पैदा करने, घरेलू काम-काज और वेश्यावृत्ति आदि में लगाई जाती हैं। मानव अंग तस्करी में भी इनका प्रयोग हो सकता है।
अनेक प्रकरण सामने आने के बावजूद यहां के एनजीओ, नेताओं, शासन-प्रशासन ने समस्या को गंभीरता से नहीं लिया है। आपदा के राहत कार्याें और पुनर्वास की आपाधापी के बीच मानव तस्करों ने भी अपना काम किया होगा, कर रहे होंगे और करेंगे, इस पर स्थानीय लोगों को नजर रखनी चाहिए। डेरा प्रमुख राम रहीम अनेक आरोपों में घिरे रहे हैं, उनके शिष्य भी इसी समाज के आम दुनियादार आदमी हैं। यद्यपि डेरा सच्चा सौदा द्वारा आपदा के बाद कई जगह राहत कार्य किए जा रहे हैं लेकिन समाज सेवा के काम तो उन धन्नासेठों, कॉरपोरेट द्वारा भी किए जाते हैं जो जनता का आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक शोषण करते हैं, जनता को उनके प्राकृतिक, सामाजिक और संवैधानिक अधिकारों से वंचित करते हैं, इन धन्नासेठों, कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार नीतियां बनाती है और अपने विभिन्न सुरक्षाबलों से जनता का कत्लेआम करती हैं।
इधर एक चीज पर और ध्यान देने की जरूरत है- अवकाश प्राप्त ले. जनरल मोहन चंद्र भंडारी ने कहा है कि सरकार के सम्मुख अब दैवीय आपदा के कारण अनाथ हुए नवयुवकों के संरक्षण की बड़ी चुनौती है। सरकार की छोटी सी चूक नवयुवकों को गैरकानूनी कदम उठाने के लिए मजबूर कर सकती है। राज्य बनने और पर्यटन पर अत्यधिक जोर देने के कारण राज्य में पर्यटन से संबंधित काम-धंधों की बाढ़ आ गई। यही कारण है कि नदियों किनारे बड़े पैमाने पर खतरनाक अवैध निर्माण हुए। यहां पिछले दस सालों में हजारों होटल खुल गये, इनमें स्थानीय और बाहरी लोग आकर अय्याशी करते हैं और इस गलीज धंधे में यहीं की युवक-युवतियां बड़े पैमाने पर शामिल हैं।
इसके अलावा लोगों ने दूर गांव छोड़कर रोड किनारे तमाम तरह की दुकानें खोल लीं और बहुत सारे लोग व्यापारिक-व्यावसायिक गतिविधियों में लग गये। नये जमाने की चमक-दमक में अधिकांश युवा सही-गलत की भावना से ऊपर उठ गये हैं और किसी भी तरह अधिकाधिक पैसा कमाने और मौज-मस्ती की कोशिशों में रहते हैं। इनमें से बहुतों के दिमाग में मेहनत और ईमानदारी से जीने के लिए जरूरी चीजें जुटाने जैसी भावना नहीं है, संघर्ष करने की क्षमता नहीं है, काहिली, नशे और मौज-मस्ती में इनकी हालत 40 की उम्र में ही 60 के बूढ़ों जैसी हो चली है। इन्हें आसानी से, अधिकाधिक पैसा और सुविधा चाहिए। ऐसे लोग तमाम चीजों के वैध-अवैध काम-धंधों में संलग्न हो जाते हैं और इसका असर व्यापक स्तर पर शेष लोगों पर पड़ता है। इन्हें शेष लोगों के सुख-दुख से कोई मतलब नहीं होता। ऐसो युवा शून्य से शिखर तक हैं। किसी आम किशोर से लेकर उत्तराखण्ड मूल के वर्तमान भारतीय क्रिकेट कप्तान महेंद्र सिंह धौनी तक। अपने परंपरागत खेती-किसानी और अन्यान्य धंधों को चौपट कर बैठे हजारों लोग आपदा के बाद खत्म हुए पर्यटन के कारण बेरोजगार हो गये हैं।
मध्य कमान के जीओसी लै0 जनरल अनिल चैत के अनुसार आपदा करीबी चालीस हजार वर्ग किलोमीटर में फैली है, पूरब से पश्चिम तक करीब 360 किलोमीटर तक इसका असर हुआ है, करीब 16 लाख लोगों को नुक्सान हुआ है और करीब 1 लाख लोग बेघर हो गये हैं।
इतना व्यापक असर रखने वाली आपदा से प्रभावित लोगों का पुनर्वास निश्चय ही बड़ी चुनौती है, अपनों के खो जाने, घर-संपत्ति और रोजी-रोटी का साधन खत्म हो जाने वाले लोगों में अवसाद भी है। अपने कारोबार और निजी क्षेत्र में कार्यरत लाखों लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ है। इसके बाद राहत तथा पुनर्वास में हो रही देरी से समस्याएं और गंभीर हो रही हैं। ऐसे में जबरदस्त पलायन तो होना ही है बहुत से लोग अपराधों की ओर भी बढ़ेंगे। मानव तस्कर अपना काम करेंगे। बच्चों, युवक-युवतियों को विभिन्न बहानों से यहां से बाहर ले जाया जाएगा। यहां का शासन-प्रशासन पूरी तरह गैरजिम्मेदार और असंवेदनशील है। अच्छी बात यह है कि उत्तराखण्ड में अच्छे पत्रकारों, जुझारू जनपक्षीय लोगों की अच्छी संख्या है। संवेदनशील लोगों की भी अच्छी तादाद है। यह लोग अपना काम बखूबी कर भी रहे हैं। इन्हीं सब लोगों को आगे आकर हालातों को संभालने का प्रयास करना चाहिए। लोगों के पुनर्वास और भविष्य में सामान्य सुविधाजनक जनजीवन के लिए गांधी के ग्राम स्वराज, कम्युनिज्म के कम्यून की तरह का कोई मॉडल पहाड़ों में खड़ा करना चाहिए। मनरेगा जैसी योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू कर भी पलायन को रोकने और जन-जीवन को सामान्य और सुविधाजनक बनाने का काम किया जा सकता है।
अयोध्या प्रसाद ‘भारती’ (स्वतंत्र लेखक-पत्रकार) संपादक-हिंदी साप्ताहिक: पीपुल्स फ्रैंड, रुद्रपुर, जनपद-ऊधम सिंह नगर, उत्तराखंड मो.9897791822 म्उंपसरूंचण्इींतंजप/लंीववण्बवउए चमवचसमेतिपमदक9/हउंपसण्बवउ
is news me asa kya kaha gaya hai
aapne likha hai dera chief ke anuyayi aam duniyadari wale log hn to unse vidhwao ki shadi me problem kya hai pta nhi kya bana diya news ka news dhang se post kiya karo yaar