दलितों, पिछडों, अल्पसंख्यकों व स्त्रियों की समस्याओं को रेखांकित करने वाली पत्रिका ‘’फारवर्ड प्रेस’’ पाठक क्लब एवं भारतीय लेखक संघ के संयुक्त तत्वाधान में एक साहित्य समारोह का आयोजन सासाराम, बिहार के कुशवाहा सभा भवन में 28 जून को किया गया। इसमें हिंदी के युवा लेखक हरेराम सिंह को ‘पहला फारवर्ड प्रेस साहित्य सम्मान (2012-13) से नवाजा गया। पुरस्कार के रूप में उन्हें 11 हजार रूपये नकद व प्रतीक चिन्ह प्रदान किये गये।
मुख्य वक्ता के रूप में ललन प्रसाद सिंह ने कहा कि दरअसल दलित साहित्य का जन्म रूढ़ीवादी और बहुप्रथा के टकराव की देन है। यह साहित्य भारत का समताकांक्षी जनता के संघर्षो एवं संकल्पों का आइना है। न्याय के लिए संघर्ष ही दलितों, पिछड़ों का मुख्य उद्देश्य है। ललन सिंह ने कहा कि ‘’फारवर्ड प्रेस’’ पूरे समाज के दबे कुचले लोगों को मुख्य धारा में लाने के लिए प्रतिबद्ध है। वक्ताओं के रूप में अपनी बात रखते हुए राम आशीष सिंह ने कहा कि बिना साहित्य के समाज का बदलाव संभव नहीं है। यदि दलितों , पिछड़ों का विकास हम करना चाहते है तो उसक लिए सबसे सशक्त माध्यम साहित्य है। वहीं मकरध्वज विद्रोही ने कहा कि देश का बेहतर नेता वही हो सकता है जो कलम की ताकत रखता हो और उसकी लेखनी से बहुजन समाज के लोगों के हितों की रक्षा होती हो। क्योंकि आज देश का यही समाज है जो विकास के मामले में हाशिए पर डाल दिया गया है।कार्यक्रम में आसपास के कई जिलों के वरिष्ठ साहित्यकार पत्रकार और बुद्धिजीवी शामिल हुए। इनमें डॉ अलाउद्दीन अंसारी, सीडी सिंह, राकेश कुमार मौर्य, डॉ अमल सिंह भिक्षुक, डॉ गिरिजा उरांव, डॉ शशिकला व शशि भूषण मौजूद थे। कार्यक्रम का स्वागतभाषण अशोक सिंह मंच संचालन प्रो सिंहासन सिंह व धन्यवाद ज्ञापन विदुषी ज्ञाति कुमारी ने किया।