अमेरिकी सेना की एक रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि वर्ष 2014 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के बाद पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठानों के तत्वों से शह प्राप्त लश्कर-ए-तय्यबा जैसे पाकिस्तान के कुछ आतंकी समूह कश्मीर में जारी टकराव में फिर से संगठित होकर और विस्तार से कार्रवाई कर सकते हैं।
दी फाइटर्स ऑफ लश्कर-ए-तय्यबा, रिक्रुटमेंट, ट्रेनिंग, डेवलपमेंट एंड डेथ शीर्षक की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी के कारण वहां होने वाले टकराव से पाकिस्तान स्थित कुछ आतंकी समूहों का ध्यान इस तरफ बंट गया।
न्यूयार्क के वेस्ट प्वांइट स्थित अमेरिकी सैन्य अकादमी ने रिपोर्ट में कहा है कि एक तरफ तो वर्ष 2008 के बाद अफगानिस्तान में आतंकी हमले बढ़े। वहीं दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर में 1990 के दशक के अंतिम वर्षों और 2000 के दशक के शुरुआती वर्षों में दिखे आतंकी हिंसा के स्तर में कमी दर्ज की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एक वक्त जिहाद के लिए रणभूमि रहा दक्षिण एशिया का कश्मीर पिछले दशक के दौरान जेहादियों के लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर इतिहास से सबक लिया जाए तो अफगानिस्तान से तत्कालीन सोवियत संघ की वापसी के बाद पाकिस्तानी आतंकियों ने जिस इलाके का रुख किया था, अफगानिस्तान में वर्ष 2014 में अमेरिका की मौजूदगी खत्म होने के बाद उसे बदलने में मदद मिल सकती है।
इस रिपोर्ट को तैयार करने में जिन पांच मुख्य लोगों ने योगदान दिया उनमें अनिरबन घोष, सी क्रिस्टीन फेयर और डॉन रसलर शामिल हैं। इसमें कहा गया है कि ऐहितासिक घटनाओं से ऐसे आभास मिलते हैं कि इनमें से कुछ आतंकी समूह फिर से कश्मीर का रुख कर वहां जारी टकराव में बड़े पैमाने पर शामिल हो सकते हैं। रिपोर्ट में इस साल जनवरी में कश्मीर स्थित सीमा पर भारत और पाकिस्तान के सैनिकों के बीच हुये सिलसिलेवार टकरावों का भी जिक्र किया गया है।