संवैधानिक पद की गरिमा क्यों हो रही तार तार..?
-नारायण परगाई||
देहरादून। राज्यपाल जैसे संवैधानिक व गरिमामयी पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा ऐसा कदम उठा लिया जाए जिसकी राज्य के हर व्यक्ति की जुबान पर कड़ी निन्दा होनी शुरू हो जाए तो वह व्यक्ति उस पद पर विराजमान नही रहना चाहिए। उत्तराखण्ड के राज्यपाल अजीज कुरेशी इन दिनो इन्दौर की यात्रा को लेकर विवादो के घेरे में हैं और बीती जनवरी माह में उनकी इन्दौर में दाउद की खबरी के दर पर दावत में जाना खासा चर्चा में शुमार हो गया है, इस खबर को इन्दौर से प्रकाशित होने वाली लोकस्वामी पत्रिका ने 6 पन्नो की आवरण कथा के साथ फोटो सहित प्रकाशित किया है, जिससे उनकी मुश्किलें बढती हुई नजर आ रही है। भाजपा इस मुद्दे को राजनैतिक रंग देने की कोशिश में भी जुट गई है।
संवैधानिक पद की गरिमा को यदि निश्चित रूप् से ठेस पहुचाने का प्रयास यदि राज्यपाल द्वारा किया गया है तो यह देश का पहला अवसर होगा जब पद पर बैठे राज्यपाल ने पद की गरिमा को तार तार किया होगा। उत्तराखण्ड के राज्यपाल बनने के बाद सरकार के कई विधेयको पर नाराजगी जताकर उन्हें राजभवन से वापस भेजने का काम राज्यपाल द्वारा किया जा चुका है
जिससे सरकार कर किरकिरी भी राज्य के अंदर बड़े पैमाने पर हुई है। वर्तमान में सरकार राज्यपाल के इन कदमो से खासी नाराज नजर आ रही है वहीं सूत्र यह भी बताते हैं कि जल्द ही उत्तराखण्ड के राज्यपाल पद से उनकी विदाई होनी तय मानी जा रही है। कांग्रेस सरकार भी उनकी विदाई के समय का इन्तजार कर रही है। सवाल यह उठ रहा ळै कि जब संवैधानिक पद पर बैठा कोई व्यक्ति असंवैधानिक गतिविधियो को अंजाम देता हुआ नजर आए तो क्या उस व्यक्ति को अपने पद पर बैठे रहना चाहिए। वहीं राजभवन में 15 फरवरी को हुई राज्यपाल अजीज कुरेशी की भान्जी की शादी भी चर्चाओ में गूंज गई है। राजभवन में निमंत्रण दिए जाने के लिए जिस कांग्रेसी नेता की ड्यूटी लगाई गई थी उन्होने निमंत्रण पत्रो को शहर में इस तरह बांटा कि राजभवन की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियो को भी एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा, यह पहला अवसर था जब उत्तराखण्ड के राजभवन में शादी का कार्यक्रम आयोजित हुआ हो। वहीं इस मुद्दे पर भी राज्यपाल की खिलाफत षुरू हो गई है कि क्या भान्जी के विवाह समारोह को राजभवन में आयोजित किया जाना उचित था जबकि इस कार्यक्रम को शहर के किसी वैडिंग प्वाठंट या होटल में भी आयोजित किया जा सकता था। सूत्रो से मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखण्ड के राज्यपाल अपने रसूख का फायदा लेना चाहते थे और इसी की तर्ज पर भान्जी की शादी को राजभवन में आयोजित करवा दिया।
सूत्रो से छनकर आ रही खबरो पर यदि यकीन किया जाए तो जानकारी आ रही है कि राजभवन में आयोजित की गई 15 फरवरी की शादी सरकारी खर्चे से अंजाम दी गई है।
अब यह जांच का विषय हो सकता है कि क्या राजभवन में आयोजित की गई शादी सरकारी खर्चे से की गई..? वहीं दूसरा बड़ा सवाल क्या भान्जी की शादी को राजभवन के अलावा किसी अन्य जगह आयोजित नही किया जा सकता था वहीं सूत्र यह भी बताते हैं कि राजभवन में आने वाली हर फाइल को मोटी रकम के बगैर मंजूरी नही दी जाती और बीते कुछ दिनो पूर्व ही दिल्ली से देहरादून वापसी के बाद जिन फाइलो को राजभवन से मंजूरी दी गई उसकी मोटी डील दिल्ली में बैठकर की जा चुकी थी जिस डील के बाद ही उन फाइलो को राजभवन से मंजूरी दी गई। हमारा मकसद किसी संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की गरिमा को ठेस पहुंचाना नही बल्कि संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के पद की गरिमा बनाए रखने का है।
kiya vakiyaaaaa meeee esaaaaa hai.