स्वार्थ और महत्वाकांक्षा के चलते राजनैतिक धौंस में लोकसेवकों (नौकरशाही) को अनैतिक कार्यों के लिए विवश किया जाता रहा है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के गृह जनपद इटावा में चर्चित सविका आश्रम प्रकरण में 1992 व 2005 में सियासी धमक से जिला प्रशासन के माध्यम से कराये गये कदाचार से लोककसेवकों को ‘‘न्यायालय आदेश की अवमानना’’ की कार्यवाही झेलनी पड़ी. एक बार फिर वही रवैया देख स्थानीय लोकसेवक (प्रशासनिक अफसर) किंकर्तव्यविमूढ़ है. एक ओर शासन की दवाब रूपी खाई है और दूसरी ओर न्यायपालिका के सम्मान की मर्यादा रूपी गहरी ‘लक्ष्मणरेखा.
सात वर्ष पहले आज के दिन 21/22 अक्टूबर 2005 को रामलीला रोड स्थित सविका कालोनी के तीन दर्जन पक्के मकान बुल्डोजर से ढहाये गये थे. इस घटना को गंभीरता से लेते हुए उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने शासन तथा जिला प्रशासन के अधिकारियों के विरुद्ध ‘‘न्यायालय आदेश की अवमानना’’ की कार्यवाही की थी. सविका आश्रम व सविका कालोनी न्यायपालिका द्वारा निर्विवाद घोषित है फिर उस जमीन को नाजायज ढंग से हथियाने के लिए सत्ता की धमक पर नौकरशाही को गुमराह करने की चालें जली जा रही हैं. जिसके खिलाफ सविका कालोनी के वाशिंदों द्वारा सविका धर्मलाल चतुर्वेदी की अगुवाई में ‘‘कानून व्यवस्था एवं न्याय रक्षा समिति’’ बनाई गई है, जो 25 अक्टूबर से धरना-प्रदर्शन (आंदोलन) के साथ निर्माण कार्य जारी रखेगी. यह ऐलान सविका धर्मलाल चतुर्वेदी ने सविका आश्रम पर मीडिया से मुखातिब होते हुए की.
उन्होंने तहसील सदर मौजा सराय अर्जुन अंदर नगर पालिका के खाता सं. 75 कुल बीस किता रकबा 15.8 एकड़ आबादी घोषित भूमि से संबंधित कानूनी प्रक्रिया व धंधलगर्दी से जुड़े प्रामाणिक तथ्य मीडिया को उपलब्ध कराते हुए आरोप लगाया कि विरोधी पक्ष प्रशासन पर सियासी दबाव बनाकर इस जमीन को नाजायज तरीके से हथियाना चाहता है. हाल ही में इस भूमि पर निर्माण कार्य शुरू हुआ तो विरोधी पक्ष ने लखनऊ व दिल्ली जाकर जिला प्रशासन को एक वार फिर गुमराह किया जा रहा है.
श्री चतुर्वेदी ने बताया कि उक्त भूमि पर हिन्दू हाॅस्टल के निर्माण हेतु 56 साल पहले सन् 1956 में प्रचलित हुई अधिग्रहण की कार्यवाही में उच्च न्यायालय द्वारा एक सितंबर 1971 को अंतिम रूप से आदेशित कम्पेंशेषनके आधार पर कोई एवार्ड नहीं बना और न ही आवश्यक धनिराशि बतौर मुआवजा सरकारी खजाने में जमा की गई. जब सोसाइटी द्वारा अधिग्रहण एग्रीमेंट का अनुपालन नहीं किया गया तो प्रक्रिया समाप्त हो गई. इस जमीन पर दि हिन्दू एजूकेशन सोसाइटी कभी किसी आदेश से संक्रमणीय भूमिधर नहीं बनी और काश्तकार भूमि पर काबिज रहे, उन्हीं किसानों अपनी जमीन सन् 60 से 80 तक के दशकों में सविका धर्मलाल व अन्य को बेची थी.
उन्होंने बताया कि सोसाइटी द्वारा दायर सिविल वाद 82/89 की अपील में कमीशन रिपोर्ट 5 मई 1989 में उनका (धर्मलाल आदि का) कब्जा होना अंकित है. सिविल न्यायालय ने यह वाद 6 मार्च 1998 को खारिज कर दिया था. इसके बाद 1992 में हमें जबरन वहां से विपक्षी सोसाइटी के गुमराह करने पर प्रशासन ने बेदखल कर दिया था, इस कार्यवाही पर हाईकोर्ट द्वारा रिट सं. 9736/92 में 18 दिसंबर 1995 को अवमानना नोटिस के तहत धर्मलाल आदि के कब्जे को रेस्टोर करने का आदेश दिया गया. जिसके अनुपालन में 9 जनवरी 1996 को कब्जा दखल हमें वापस दिया गया. लगभग 10 साल बाद पुनः 21/22 अक्टूबर 2005 को बुल्डोजर जलवाकर सविका कालोनी के 36 मकान गिराये गये. जिसपर हाईकोर्ट ने शासन व जिला प्रशासन पर ‘‘न्यायालय आदेश की अवमानना’’ की कार्यवाही की.
श्री चतुर्वेदी ने बताया कि सोसायटी द्वारा दायर प्रकीर्णवाद मय मूलवाद 9 जनवरी 2009 को अंतिम रूप से अवैट हो चुका है और संबंधित जमीन के स्वामित्व का कोई वाद किसी कोर्ट में लंबित नहीं है. ऐसे में राजनैतिक दबाव बनाकर प्रशासन को पुनः गुमराह करने का प्रयास सीधे-सीधे संसदीय जनतंत्र के प्रमुख स्तंभ न्यायपालिका का अपमान होगा, इसीलिए पीड्ति सविका कालोनी के वाशिंदों ने कानून व्यवस्था एवं न्याय रक्षा समिति बनाकर 25 अक्टूबर से आन्दोलन का निर्णय किया.
अब किया सोचना है जब बकील भी उनिहिका बकालत भी उनिहिकी जज भी उनिहिका अदालत भी उइहिकी फंदा भी उनिहिका फंसी भी उनिकी कागज भी उसीका कलम भी उसीकी आप सब को इएक ही काम करसकते हो यतो सुखा कुंय देख लो या फ़िर रेल की पटरी उस दिन कियो नहीं सोचा जब आप के हाथ में निर्णय था इएन गुन्न्गद्दो को गद्दी देदी अब आप किसी समय विशेष की प्रित्क्छा करो ओर्र जड़ से उखंड देना