– चन्दन सिंह भाटी||
भारत पाकिस्तान सरहद पर दोनों देशो के मध्य हुए युद्धों के साक्षी रहे जैसलमेर जिले का तनोट मंदिर भारत वर्ष का संभवतया एक मात्र देवी मंदिर है जिसके परिसर में फ़क़ीर बाबा की दरगाह बनाई गई है. अक्सर देश भर में धार्मिक मान्यताओ के चलते दरगाह या मस्जिद मंदिरों में नहीं बनाई जाती. मूलतः तनोट राय माता का मंदिर है. जिसके भारत पकिस्तान के उनीस सौ पैंसठ और इकहतर के युद्धों के चमत्कार आज भी लोगो को रोमांचित करते है.
जैसलमेर से लगभग एक सौ पैंतीस किलोमीटर पकिस्तान सरहद के पास स्थित तनोट माता के मंदिर की देख भाग सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी और जवान ही करते है. यहाँ तक कि मंदिर का पुजारी भी सीमा सुरक्षा बल का है. इस मंदिर परिसर के मुख्य बरामदे में बाबा फ़क़ीर की सुंदर दरगाह बनी है. जो सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश करती है. हालांकि इस दरगाह का कोई ऐतिहासिक महत्त्व नहीं है और ना ही कोई पारम्परिक महत्त्व. इसके बावजूद सीमा सुरक्षा बल ने मात्र एक पत्थरनुमा दरगाह को मूर्त रूप देकर शानदार बना दिया.
सीमा सुरक्षा बल के सूत्रों ने बताया तनोट माता का मूल मंदिर है. पूर्व में यहाँ छोटा सा मंदिर था. मंदिर के बाहर एक पत्थरनुमा आकर में हरे कपडे से लिपटा स्थान था. इस स्थान पर कभी कोई सज़दा करने नहीं आता था. हां कभी कभार आस पास के लोग शुक्रवार को आते थे. मुस्लिम परिवार बड़ी संख्या में तनोट के दर्शन करने तो आते थे मगर उन्हें भी इस दरगाह के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. मंदिर का जब जीर्नौद्धार किया गया तो दरगाह को मंदिर परिसर में लेकर इसे खूबसूरत रूप दे दिया. तनोट माता के दर्शन करने आने वाले मुस्लिम भक्त इस दरगाह में भी पूजा पाठ करते है.
आस पास के गाँवो के मुस्लिम धर्म से जुड़े लोग भी नमाज़ अदा करने आते है. हमें ख़ुशी है की तनोट माता मंदिर सांप्रदायिक सद्भावना का प्रतीक बना. तनोऊ के पास स्थित गाँव रणियाई निवासी रोजे खान का कहना है कि जहाँ हिन्दू मंदिरों में मुस्लिमो का प्रवेश तक निषेध है, ऐसे में तनोत माता के मंदिर में दरगाह बना कर हमारे मन में सद्भावना जगा दी सीमा सुरक्षा बल ने. हम लोग शुक्रवार को तनोट जाकर पहले माता के दर्शन करते है फिर दरगाह में नमाज अदा कर पूजा पाठ करते है. तनोट माता मंदिर आने वाला हर श्रद्धालु इस दरगाह में प्रसाद चढ़ा कर अगरबती करता है. वाकई अद्भुत है. बाबा फ़क़ीर की दरगाह.
yese हजारो उदहारण मिल जाते हे और है भी मगर इएक भी घटना सामने कभी नहीं आये की किसी मुस्लमान ने किसी मंदिर का सम्मान किया या पूजा जी केवल हिन्दू जरुर सद्भावना के साथ सामने आते रहे है बस यही गाना गयाजता ये शाम्प्रदायक सद्भावना की मिसाल है केवल हिन्दुयो के द्वारा ही है इएक्तर्फ़ है कोयीमुसलमन मूर्ति पूजा मई सामिल नहीं हो सकता है फ़िर हिन्दू ही कियो ये बेबकुफिया करता रहे जिस दिन ये बात हिन्दुयो को समझ में आजाये ये गौयो हत्तियारे मान्शाहरी लूटेरे भी सुधर जाने के लायक हो जायेंगे ये भारत माता की जय बोल ने की हिम्मत करने लगेंगे हमारा विश्वाश है ये कभी सुधरने बाले नहीं है