-तेजवानी गिरधर||
चुनावी सरगरमी की शुरुआत में भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर दो राहे पर खड़ी है। पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी के बयान से तो यही साबित होता है। उन्होंने दिल्ली में पार्टी के महिला मोर्चो के एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा है कि उनका दल न तो मुस्लिम विरोधी है और न ही दलितों के खिलाफ, लेकिन उसके विरुद्ध इस मामले पर बहुत दुष्प्रचार हुआ है। उनके इस बयान से साफ जाहिर है कि एक ओर जहां वह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसे चेहरों के नाम पर हिंदुओं के वोट बटोरना चाहती है, वहीं अपने धर्म और जाति निरपेक्ष स्वरूप की दुहाई देकर मुसलमानों व दलितों के वोटों की अपेक्षा भी रखती है। अपना हिंदूवादी एजेंडा भी साथ रखना चाहती है और मुसलमानों को रिझाना भी। ये दोनों परस्पर विरोधी अपेक्षाएं ही उसे दो राहे पर खड़ा करती हैं।
गडकरी ने जिस प्रकार पार्टी की छवि खराब किए जाने को पार्टी का दुर्भाग्य करार दिया है, उससे जाहिर होता कि उन्हें मुसलमानों व दलितों के वोट न मिलने की बड़ी भारी पीड़ा है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर उसे मुसलमानों के वोटों की इतनी ही चिंता है तो क्यों कर मोदी जैसों को फ्रंट फुट पर खड़ा करती है। क्यों कट्टरवादी चेहरे के नाम पर गुजरात में हैट्रिक बनाना चाहती है। यानि कि गुजरात जीतना है तो पार्टी का चेहरा हिंदूवादी रहेगा और देश जीतना है तो चेहरा धर्म व जाति निरपेक्ष रहेगा। पार्टी जानती है कि अगर प्रधानमंत्री पर काबिज होना है तो उसे अपना हिंदूवादी एजेंडा साइड में रखना होगा। भारतीयता की संकीर्ण परिभाषा वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपने जुड़ाव और हिंदुत्व की विचारधारा की वजह से बीजेपी के समर्थकों की संख्या एक वर्ग विशेष से आगे नहीं जा पा रही है और पार्टी को मालूम है कि सिर्फ उनके बल वो सत्ता में नहीं पहुंच सकती है। अकेले अपने दम पर सरकार बना नहीं सकती और सहयोगी दलों का पूरा साथ चाहिए तो कट्टरवाद छोडऩे की जरूरत है। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने तो साफ तौर पर ही कह दिया कि उन्हें उदार चेहरा की स्वीकार्य है। समझा जाता है कि सहयोगी दलों के दबाव की वजह से ही भाजपा को अपनी छवि सुधारने की चिंता लगी है। लेकिन जानकारों का मानना है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे लोगों के प्रधानमंत्री की रेस में शामिल होने और पार्टी द्वारा बार-बार उनका बचाव करने जैसे मुद्दों की वजह से बीजेपी के लिए अपनी छवि में बदलाव लाने की कोशिश किसी कारगर मोड़ पर नहीं पहुंचेगी।
जहां तक उसके दलित विरोधी होने का सवाल है, असल में ऐसा इस वजह से हुआ है क्योंकि भाजपा को ब्राह्मण-बनियों की पार्टी माना जाता है। संघ व भाजपा में ऊंची जातियों का वर्चस्व रहा है। इन ऊंची जातियों ने सैकड़ों साल तक दलितों का दमन किया है। इसी कारण दलित कांग्रेस के साथ जुड़े रहे। बाद में वे जातिवाद व अंबेकरवाद के नाम पर बसपा, सपा जैसी पार्टियों की ओर चले गए। अगर संघ व जनसंघ शुरू से दलितों पर ध्यान देते तो भाजपा का हिंदूवादी नारा कामयाब हो जाता, मगर ऐसा हो न सका। दलित हिंदूवाद की ओर आकर्षित नहीं किए जा सके। और यही वजह है कि अस्सी फीसदी हिंदूवादी आबादी वाले देश में भाजपा का हिंदूवादी कार्ड आज तक कामयाब नहीं हो पाया है। ऐसे में भाजपा को धर्मनिरपेक्षता की याद आ रही है। मगर जानकार मानते हैं कि इससे कुछ खास फायदा होने वाला नहीं है, क्योंकि अधिसंख्य भाजपा कार्यकर्ताओं को मोदी जैसा नेतृत्व पसंद है और इसका इजहार खुल कर हो रहा है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स मोदी के फोटो व नाम से अटी पड़ी हैं। ऐसे में भला मुसलमान कैसे आकर्षित किए जा सकेंगे। जो मुसलमान भाजपा से जुड़ रहे हैं, वे सच्चे मन से भाजपा के साथ नहीं होते, ऐसा खुद हिंदूवादी भाजपा कार्यकर्ता मानते हैं। कुछ मुसलमान शॉर्टकट से नेतागिरी चमकाने के लिए भाजपा के साथ आ रहे हैं, मगर धरातल पर मुसलमान उनके साथ नहीं हैं। वे मुसलमान नेता हाथी के दिखाने वाले दांतों के रूप में दिखाने के काम आते हैं।
कुल मिला कर भाजपा दो राहे पर खड़ी है और समाधान निकलता दिखाई नहीं देता।
तेजवानी जी आप जैसे पत्रकार हि इस देश व समाज के दुश्मन है जो सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए हिन्दुओं और बीजेपी का विरूद्ध करते रहते है
आपका बहुत बहुत साधुवाद
…………..भारतीयता की संकीर्ण परिभाषा वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपने जुड़ाव और हिंदुत्व की विचारधारा ………………..जहां तक उसके दलित विरोधी होने का सवाल है, …….
उपरोक्त अंश दिए हुए लेख से ही उद्धृत किये गए है. इनसे स्पष्ट है की लेखक महोदय को संघ के विषय में समस्त जानकारी अनेक समाचार पत्रों एवम रजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ताओ के बयानों से हुई है. कम से कम इन दो मुद्दों पर तो कोई दोराय नही की संघ की विचारधारा भारतीयता एवं जातीय विषयों पर बड़ी स्पष्ट एवं स्वस्थ है……..हा यह अनेक राजनीतिक पार्टियों के अजेंड़ो से मेल नही खाती.
मान्यवर मेरी जानकारी दुरुस्त है, हालांकि यह कडवी है, और यही एक मात्र कारण है कामयाबी हासिल न होने का
बड़ा आश्चर्य होता है आदरणीय तेजवानी गिरधर जी आप इतने बड़े पत्रकार है फिर भी आपकी सोच संघ के बारे में इतनी अच्छी है|
मैंने पहले आपका परिचय पढ़ा नहीं था, अब पढने के बाद फिर कुछ आप से निवेदन कर रहा हूँ….
संघ ने कभी नहीं कहा दलित????
क्या दलित कोई जाती है, आप हिन्दू भी कह रहे हो और दलित भी, बड़ा आश्चर्य हो रहा है मुझे आपके शब्दों पर,
आपको मैं एक वृत्तांत सुना रहा हूँ , समझने का प्रयास कीजियेगा की मैं क्या कहना चाहता हूँ….
एक बार गांधी जी को जब नागपुर में चल रहे संघ के शिविर को देखने बुलाया डॉ साहेब ने ( संघ के संस्थापक ने ) तब सभी स्वयंसेवक एक साथ बैठ कर भोजन कर रहे थे तो गांधी जी बड़े आश्चर्यचकित होते हुए पास ही बैठे किसी स्वयसेवक से पूछा की “भाई तुम्हारी जाती क्या है?” तो उस स्वयंसेवक ने कहा की “हिन्दू”, गांधी जी ने कहा “अरे भाई! मैं जानता हूँ तुम हिन्दू हो पर तुम्हारी जाती भी तो है कोई? वह क्या है ?” तो उस स्वयंसेवक ने फिर वही दोहराया की “हमे यही सिखाया जाता है की हम सब हिन्दू है, और भाई है |”
इस पर गांधी जी ने डॉ. साहेब की तरफ देखा, तब डॉ. साहेब का इशारा पाकर उस स्वयंसेवक ने अपनी असली जाती हरिजन बताया, तब गांधी जी ने उसके बगल वाले से पूछा तो पाया की वह ब्रह्मण है |
इस पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए गांधी जी ने कहा “हम इतने सालों में नहीं कर पाए और आपके संघ ने कुछ ही दिनों में जातीवाद मिटा दिया सच बहुत अच्छा कार्य कर रहा है संघ |”
और आप एक पत्रकार होते हुए भी ऐसी जातिवाद , बहुत अच्छे!!!!
भाई मुझे बहुत हंसी आ रही है भाई जी, और परिचय पढने के बाद तो ज्यादा आ रही है|
क्षमा प्रार्थी हूँ,
अगर कुछ गलत कहा हो तो ???
वैसे मैं गलत कहता नहीं हूँ, और यदि संघ समझना हो तो आ जाइए में समझा दूंगा |
शुभ-दिवस,
वन्दे-मातरम…
आपकी सोच कितनी अच्छी है ये आपके इस लेख से स्पष्ट है श्रीमान तेजवानी गिरधर |
मुझे बहुत हंसी आती है जब आपके जैसे बुद्धिमान लोगो के लेख पढता हूँ, हालांकि बाद में मुझे केवल पछतावा ही होता है की मैंने अपना अमूल्य समय इसे पढने में गवाया | जैसा की आपने कहा की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में आपका संकीर्ण मत, ज्यादा ना सोचे कहने का मतलब उसकी सोच को संकीर्ण बताने का मतलब आप संघ को भली भांति और बहुत अच्छी तरीके से जानते ही होंगे |
उसे जानते है इसका मतलब आप कभी शाखा भी गये होंगे, क्योंकि मेरे हिसाब से जानने के लिए कम से कम उसमे जाना या उससे जुड़ना जरुरी होता है |
आप पत्रकार है अथवा आपने इतना अच्छा लेख लिखा अत: आप बुद्धिजीवी भी प्रतीत होते है |
कृपया मेरी समस्या का निवारण करे मैं कई सालों से शाखा जा रहा हूँ पर मुझे उसमे कोई संकीर्णता दिखी नहीं या मुझे दिखाई नहीं दी????
कृपया मेरी आँखों पर लगा संघ का चस्मा जो फिट है उसे उतारने की कृपा करे मैं आपका आभारी रहूँगा !!!
अन्यथा मैं,
दुनिया का सबसे बड़ा मुर्ख होने की उपाधि आपको देने वाला हूँ |
कृपया स्पष्ट करें….
खुली चर्चा है आपके लेख के माध्यम से,
धन्यवाद….
आप अगर संघ में जा कर भी नहीं समझ पाए हैं तो मेरे स्पष्टीकरण से कुछ नहीं होने वाला, आप बडी खुशी से मुझे दुनिया का सबसे बडा मूर्ख करार दे दीजिए, आपसे बहस करने की बजाय यह उपाधि लेना ज्यादा श्रेयस्कर है
अंत में आपको जानकारी दे दूं कि मै मुख्य शिक्षक रहा हूं
महोदय दुनिया जानती है,दैनिक भास्कर एक कांग्रेसी अख़बार है,अतः आपका कांग्रेसी एजेंट की तरह व्यव्हार करना स्वाभाविक है .
आपके सर्टिफिकेट के लिए बहुत बहुत साधुवाद, जब कोई उपयुक्त जवाब नहीं होता तो आप जैसे लोग एक ही गाली देना जानते हैं, हालांकि भास्कर से मेरा कोई ताल्लुक अब नहीं, मगर आपको जानकारी दे दूं कि ताल्लुक को राजस्थान में भाजपा नेता रामदास अग्रवाल ले कर आए थे