पदना सियार के चलते सैकड़ों पत्रकार काल-कलवित, पदना सियार का मतलब सीधा प्राणान्त, राणा-सांगा जैसे सियारों की घेराबंदी शुरू
-कुमार सौवीर||
नोएडा: एक फिल्म थी- अतिथि तुम कब जाओगे। अजय देवगन की इस फिल्म में परेश रावल प्रमुख भूमिका में हैं। फिल्म में पूर्वांचल से आये परेश रावल का पादना खासा चर्चित रहा, जब टांगें खोलकर भड़ाम की आवाज से पादते हैं। सारे पात्र हक्का-बक्का रह जाते हैं, लेकिन जल्दी ही माहौल सामान्य हो जाता है, जब केवल आवाज ही होती है, बदबू हर्गिज नहीं। जबकि आमिर खान वाली थ्री-इडियट्स में रामालिंगम नामक पात्र की पदाई प्राण-घातकम होती है। सतह पर बेहद शांत, मगर देखन में छोटन लगै, घाव करै गंभीर। इतनी गंभीर, कि उसके साथ कमरे में कोई रह ही नहीं सकता।
तो अब एक तीसरी पाद पर भी चर्चा हो जाए। यह पाद वाकई विनाशकारी होती है। वाकया है वाराणसी के हिन्दुस्तान अखबार का। शेखर त्रिपाठी के बाद यहां प्रमुख बने थे विश्वेश्वर कुमार। दिनभर चूतियापंथी करते थे विश्वेश्वर कुमार। नमूना देखिये कि लोकसभा चुनाव की गतिविधियों पर लिख मारा इस संपादक ने कि राजा बनारस को अपने खाते में जोड़कर क्षत्रियों में राजनीतिक सुगबुगाहट शुरू हो गयी है। लोगों ने इस चूतियापंथी का खुलासा कर दिया कि बनारस का राजा, ठाकुर नहीं भूमिहार है। ऐसी ही मूर्खतापूर्ण अग्रलेखों की धज्जियां उड़ते देख विश्वेश्वर कुमार के हाथों से तोते उड़ गये, तो अपने सहयोगियों को अर्दब लेने के लिए विश्वेश्वर कुमार ने दफ्तर का पूरा माहौल ही बिगाड़ दिया।
खैर, अब बात इससे भी ज्यादा खतरनाक पाद पर। वाराणसी में अपने अखबार के दौरान हम लोगों ने यहां के कुछ लोगों की बेहाल करती सड़ांध पाद पर कई बार चर्चा की थी। इनका तो नाम ही पद्दन पड़ गया था। जब बात प्राणों पर हो, तो पूरे दफ्तर में कोहराम तो मचता ही था। आजकल दिल्ली में बहुत बड़े दो पत्रकार तो उस सीट के आसपास फटकते भी नहीं थे, जहां पद्दन होते थे। हालांकि पद्दन-नाम वाले ने एक बार बताया कि उन्हें साजिश के तहत फंसाया गया था।
वाराणसी में मेरे सहयोगी थे विजय नारायण सिंह, आजकल विजय भोपाल या कानी का रायपुर के एक अखबार में बड़े ओहदे पर हैं। खैर, रोजमर्रा की ही तरह एक दिन विजय नारायण सिंह ने पाद-पुराण और उसका महत्व हम सभी लोगों के सामने खुलासा किया। विजय नारायण ने इन्हीं लोगों की इस हरकत पर एक अन्य महत्वपूर्ण सूचना दी, जो प्राण-घातक ही नहीं, विनाशकारी थी। विजय के बाबा ने बताया कि उन्हें यह खास सूचना बातचीत में उनके बाबा ने बताया था, जब वे बहुत छोटे थे। बकौल विजय नारायण सिंह, जाड़े के दिनों में कौरा-कौड़ा या अलाव तापते समय सियार को भगाते-दौड़ाते कुत्तों का आर्तनाद अचानक सुना था। बाल-सुलभ जिज्ञासा में विजय ने बाबा से कुत्तों के इस आर्त-निनाद का कारण पूछ ही लिया।
बकौल बाबा, रात को सियार अपनी चोर-प्रवृत्ति के चलते गांव के करीब तक पहुंच जाते हैं। उनकी नजर गांववालों की बकरी-मेमने या नवजात बछड़ों पर होती है। लेकिन चूंकि कुत्ते गांववालों के सुरक्षाकर्मी होते हैं, इसलिए सियारों की भनक मिलते ही वे सियारों पर हमला करने के लिए उनके पीछे दौड़ पड़ते हैं। सौ-दो सौ मीटर दूर जैसे ही यह कुत्ते के पास जब दबोचने की कोशिश करते हैं, अचानक ही यह कुत्ते कुंकुंआते हुए और अपनी पूंछ अपने पेट में घुसेड़कर लौट आते हैं और इस पीड़ा के बीच जमीन पर बेतरह लोटते भी हैं। विजय ने बताया कि उनके बाबा के अनुसार अपनी प्राण-रक्षा के लिए दरअसल सियार उस समय पाद करता है जब उसका पीछे करते कुत्ते उनकी जद में पहुंच जाते हैं। बाबा के अनुसार सियार की पाद की बू इतनी बदबूदार होती है कि कुत्ते तक से उससे बिलबिला उठते हैं और हारकर वापस लौट आते हैं।
ऐसे देशज किस्म के मुद्दे पर बातचीत में विजय नारायण सिंह को महारत है। मैंने इस घटना को इलेक्ट्रानिक चैनल के सियारों की करतूतों को मौजूदा प्रवृत्ति में तौला तो सन्न रह गया। पता चला कि न्यूज-मैननुमा बैड-मैन की हालत भी पदने-सियार जैसी ही होती है। पहले तो यह सियार जैसे लोग दूसरे के हिस्से को हड़पने या चोरी करने की कोशिश करते हैं, लेकिन जैसे ही बाकी लोग उसका विरोध करते हैं तो ऐसे सियार इतनी गंध छोड़ देते हैं कि विनाशकारी माहौल हो जाता है।
दिल्ली एनसीआर में ऐसे ही एक राणा-सांगा जैसे सियार महाशय हैं, जिन्होंने पहले तो समाचारकर्मियों के हितों के खिलाफ चोरी-डाका डाला, खबरों की जमकर दलाली की और दूसरों की नैतिकता को सरेआम नीलाम कर दिया। लेकिन अपनी छवि न्यूज-मैन की पेश करने के लिए अपने चेला-चपाटियों के साथ पूरे चैनल प्रबंधन को बेच डाला। किसी महान योद्धा राणा-सांगा की तरह बड़ी-बड़ी डींगें हांकी। प्रबंधन के सामने हालात ऐसे प्रस्तुत किये कि उन्हें बचाने की हरचंद कोशिशें कर रहे हैं। इसके लिए प्रबंधन से भारी रकम वसूली। लुब्बोलुआब यह कि अपने चैनल में अपना भविष्य खोजने के बजाय इस सियार ने अपने नये-नये निजी ठीहे खोजे-बनाये और उसे समृद्ध किया। कुल मिलाकर प्रबंधन-मेमने का शिकार कर ही लिया गया।
लेकिन इसी बीच प्रबंधन को भनक मिल गयी। लेकिन इसके पहले कि इस सियार को इस चैनल में निकाल बाहर किया जाता, इस राणा-सांगानुमा सियार ने अपने साथियों-चेलों के साथ ऐसी हालात पैदा कर दीं कि पूरा चैनल ही बंद हो जाए। नतीजा इस खबरी चैनल की तबाही आपके सामने है। हालत इतने बिगड़ गये हैं कि करीब डेढ़ सौ कर्मचारी बेरोजगार हैं, उनके घरों में दो जून की रोटी तक मयस्सर नहीं है। बिलबिलाते बच्चे दूध के लिए तरस रहे हैं। बताते हैं कि इस सियार ने चैनल बंदी के आदेश के दिन नोएडा अपार्टमेंट में अपने करीबी लोगों के साथ आलीशान मुर्गा-दारू की पार्टी दी थी।
बहरहाल, यह सियार अब पहचाना जा चुका है। लोग-बाग लगे-जुटे हैं, जैसा ही मौका मिलेगा, इस रंगे सियार को दबोच लिया जाएगा। उम्मीद है कि अब इसकी पदाई पर प्रतिबंध लगाया जाएगा।
इस सियार का नाम है राणा जसवंत. छपरा के रहने वाले हैं. सियार! सियार! सियार! सियार! सियार! सियार!
इस सियार का नाम है राणा जसवंत. छपरा के रहने वाले हैं. इनके पिता जी छपरा के एक सरकारी कॉलेज में डेमोंस्ट्रेटर थे…शायद अब प्रोमोशन हो गया हो! उनका भी यही हाल था..विद्यार्थियों को कक्षा में अपने लड़के की डींग हांकते रहते थे कि उनका लड़का इतना बड़ा पत्रकार है की उसके लिए राष्ट्रपति इंतज़ार करता है…और इस तरह वो अपनी क्लास का वक़्त काट अपनी नौकरी चलते रहे. राणा बहुत बड़े जातिवादी हैं. मीडिया में बड़ा पद हासिल करना इन जैसों के लिए आम बात है. और इन्होने जो महुआ चैनल के कर्मियों के साथ किया है…. ये इनकी पुरानी आदत है.