-धीरज कुलश्रेष्ठ||
मुंह चलाना और दोनों जबडों के बीच में रख कर कुछ चबाना मनुष्य की आदिम फितरत है, इससे जबडे और मुंह की मांसपेशियों की कसरत हो जाती है और दिमाग को सुकून भी मिलता है. दूसरी ओर मनोवैज्ञानिक शोधों के अनुसार इससे अनावश्यक रूप से बोलने की इच्छा खत्म हो जाती है .इसका निहितार्थ यह भी है कि जो लोग कुछ चबाते नहीं हैं उनके ज्यादा बोलने की संभावना अधिक होती है. इसका राजनैतिक निहितार्थ यह भी है कि जहां चबाने की चीजें आसानी से उपलब्ध होंगी वहां लोग बोल कर भडास कम निकालेंगे अर्थात अराजकता कम होगी.
असल में इसीलिए चबाने का विश्व बाजार है और इस बाजार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा है और च्युइंगम उनका प्रिय प्रोडक्ट…लेकिन वे भारत के बाजार में गुटखे से हार गए . उनकी च्युइंगम गुटखे से हार गई. फिर शुरु हुआ दुनिया के सबसे बडे बाजार पर कब्जे का खेल. एनजीओ खडे किए गए….गुटखों के खिलाफ रिसर्च कराई गई. उनके आधार पर कोर्ट में केस किए गए. सरकार में गिफ्ट के बतौर रिश्वत बांटी गई . दूसरी तरफ गुटखा कंपनियों ने अपने रसूख और रिश्ते के साथ साथ रिश्वत का इस्तेमाल करके कोर्ट के आदेशों कों टालने की रणनीति अपनाई.
गुटखा असल में है क्या…पान मसाले और तम्बाकू का मिश्रण.हमारे देश में आज गुटखे का बाजार दस हजार करोड से ज्यादा का है और पान मसाले का बाजार चार हजार करोड से कम का नहीं है. ये चबाने का बाजार है …चालीस साल पहले इस बाजार पर पान का एकाधिकार था . लेकिन सत्तर के दशक में पान मसाले और गुटखे ने तेजी से लोकप्रियता हासिल की और चबाने के बडे बाजार पर कब्जा कर लिया. जबकि विदेशों में इस बाजार पर च्युंगम का कब्जा है.
नब्बे के दशक में जब देश में उदारीकरण की लहर चली तो चबाने के बाजार पर काबिज बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में पांव जमाने की पुरजोर कोशिश की,लेकिन गुटखे और पान मसाले के सामने उन्हें असफलता ही हाथ लगी. उन्हें सिर्फ चाकलेट के छोटे से बाजार से ही सन्तोष करना पडा. तभी से गुटखा बनाने वाली भारतीय कम्पनियों के साथ इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की लडाई जारी है.
इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में गुटखे और पान मसाले के खिलाफ अभियान छेड दिया…सबसे पहले इनके सेवन से होने वाले नुकसान पर शोध करवाए गए और फिर उनहें छपवा कर उनके खिलाफ माहौल बनाकर सरकार पर दबाब बनाया गया..और अन्तत जनहित के नाम पर कोर्ट की शरण ली गई. इस तिकडमी लडाई में गुटखा निर्माता हार गए और 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने गुटखे पर रोक लगाने के निर्देश दे दिए.सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद प्रभावशाली गुटखा लाबी ने येनकेन प्रकारेण इसे लागू नहीं होने दिया . लेकिन कोर्ट की अवमानना के डर और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव के चलते केन्द्र सरकार ने एक आदेश निकाल कर गेंद राज्य सरकारों के पाले में डाल दी है. अबतक राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश,बिहार,महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश की सरकार गुटखे पर पाबंदी लगा चुकी हैं. लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनियों लक्ष्य के अभी भी दूर है उनकी राह में पान मसाला अभी भी खडा है तो दूसरी ओर कानूनी लडाई हार जाने के बावजूद गुटखा निर्माता वाक ओवर देने के लिए तैयार नहीं हैं .उनके पास बाजार का अनुभव है मार्केटिंग का नेटवर्क है ब्रांड की साख है. वे अब हर्बल गुटखे के साथ बाजार में उतरने के लिए तैयार हैं, देखना यह है कि उनका यह तम्बाकूरहित उत्पाद उपभोक्ता को कितना रास आएगा.जबकि तम्बाकू की लत के आदी हो चुके उपभोक्ता के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने निकोटिनयुक्त च्युंगम बाजार में उतार दी है.
(धीरज कुलश्रेष्ठ वरिष्ठ पत्रकार है. प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में पत्रकारिता के अलावा थियेटर में भी इनका दखल है.)
Supreme court and all state govts. should treat it as contempt of court and take action against companies selling chewgum with nicotine.
sarkar puri tobaco industri pe ban q nhi lagati?
logon ko aise hi sahi jankari deten rahen.
बहुत अच्छी जानकारी है, साधुवाद
jan lok pal g…aap aisa kyon nhn kahete…….maa bimar ho to baap ko bhi bimaar kar kar do…..agar prattibandh lagana to sabhi tambaku product par lagao…..
सरकार को च्युइंगम पर भी शोध करवाना चाहिए !
Ye bat sach hei me aapki bat se sahmat hu
dekhiye guthke ke istemal se oral sub mucous fibrosis naam ki beemari ho jati hai..jo mainly asian subcontinent main hi payi jati hai/.is disease ke main complication hai.oral cancer mein hone wala badlav..isliye gutka aur tambakoo ke upar ban lagna ek achha kadam hai..aap jo nicotine chewing gum bata rahe hain..vo chewing gum aajkal gutka chudane ki therapy mein use ki jati hai..